विकास के नए भूखंड

अधोसंरचना निर्माण के अगले दौर में हिमाचल की पृष्ठभूमि को भविष्य के जैसे सपनों की जरूरत थी और इस लिहाज से सुक्खू सरकार की प्राथमिकताएं देखी और समझी जाएंगी। काफी कुछ कहा जाता रहा है, लेकिन जब से प्रदेश की दिशाओं का मिलन मुकम्मल अधोसंरचना व कनेक्टिविटी के सेतु चुन रहा है, तब से राज्य के संतुलन में भौगोलिक अपेक्षाएं देखी जाने लगी हैं। परवाणू-शिमला और कीरतपुर-मनाली जैसी फोरलेन के बाद अब जिक्र शिमला-मटौर और पठानकोट-मंडी जैसी फोरलेन परियोजनाओं का होने लगा है, तो यह आबादी के आधार पर प्रदेश का सबसे अहम घनत्व है और इसके भीतर से लांघती ऐसी महत्त्वाकांक्षा का महत्त्व किसी भी सरकार की विश्वसनीयता बढ़ा देता है। सुखद पहलू यह कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ऐतिहासिक विरासत के दरवाजे खोलकर खुद में कांगड़ा को समाहित करते संदर्भ ओढ़ लेते हैं, जबकि इससे पूर्व नेताओं ने सियासत के अंकगणित में कांगड़ा को टुकड़ों में विभाजित करके न केवल क्षत्रप तैयार किए, बल्कि केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे संस्थान की अहमियत को भी टुकड़ों में विभाजित कर दिया। बहरहाल दो फोरलेन परियोजनाओं की माटी पर ऐसे सपने शृंगार करने लगे हैं, जो शिमला की दूरी को सीमित तथा पर्यटन की जरूरत को हल करने का संकल्प ले रहे हैं। ऐसे में यह एक अवसर की तरह मुख्यमंत्री के व्यक्तित्व को परिभाषित कर सकता है। प्रदेश में कमोबेश हर मुख्यमंत्री ने अपने नाम के साथ विकास के खूबसूरत अर्थ जोड़े हैं। यहां पानी से लेकर सडक़ वाले मुख्यमंत्री रहे हैं, तो क्या विकास की अगली उड़ान पर सुक्खू भविष्य की अधोसंरचना के रचयिता के रूप में सिद्धहस्त होंगे। कांगड़ा में पर्यटन की राजधानी खोजते उनके संकल्प अगर कनेक्टिविटी को भी सुदृढ़ कर पाए, तो आधे से अधिक काम पूरा हो जाएगा। इसी दृष्टि से कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार उनके इरादों की बुलंदी को माप रहा है। फोरलेन व हवाई अड्डा विस्तार के साथ-साथ रानीताल-बिलासपुर रेल लाइन की परिकल्पना सारे परिदृश्य की आर्थिकी को संबल देगी। सौ किलोमीटर लंबी प्रस्तावित रेल लाइन वास्तव में ऐसी परियोजना साबित होगी, जो हिमाचल के दिल के करीब रहेगी। अब तक हिमाचल अपने रेल विस्तार को नंगल-तलवाड़ा के संपर्क के साथ देखता रहा है या लेह रेल के ख्वाबों से खुद को जोड़ता रहा है।

पाठकों को याद होगा कि हमने शुरू से ऊना ट्रेन का रुख ज्वालाजी की ओर मोडऩे तथा बाद में इसे बिलासपुर, कांगड़ा और मंडी की ओर बढ़ाने की बार-बार सलाह दी थी। दरअसल हिमाचल में रेल विस्तार की सारी संभावनाएं या तो सेब ढुलाई व सीमेंट उद्योग या धार्मिक पर्यटन से जुड़ती हैं। रानीताल से बिलासपुर तथा बाद में अंब-अंदौरा से ज्वालाजी मंदिर रेल लाइन से जुड़ जाता है, तो हिमाचल के प्रमुख धार्मिक स्थलों की क्षमता में निखार आएगा। रेलवे विस्तार को आर्थिक दृष्टि से देखें तो रानीताल-बिलासपुर का प्रस्ताव पहली बार हिमाचल के दिल को छू रहा है। हम पुन: दोहरा दें और यह हमारा शुरू से मानना रहा है कि हिमाचल की सडक़ों का केंद्र बिंदु हमीरपुर, रेल विस्तार के लिए ऊना से ज्वालाजी का जुडऩा और हवाई सेवाओं का अहम पड़ाव कांगड़ा एयरपोर्ट साबित होगा। इसी के साथ जल परिवहन की दृष्टि से कोल बांध, गोविंद सागर तथा पौंग डैम की क्षमता को देखा जाए, तो कई अनछुए आकर्षण तथा आर्थिक संभावनाएं सामने आएंगी। हिमाचल में विकास के वास्तविक अर्थ कनेक्टिविटी के अलावा सार्वजनिक सेवाओं में गुणवत्ता लाने तथा जनापेक्षाओं के समुद्र में नई किश्तियां चलाने के रहेंगे। सरकारी ढांचे की उपयोगिता बढ़ाने के लिए यह अहम कदम होगा कि अनावश्यक कार्यालय बंद किए जाएं और जब सुक्खू सरकार ऐसा कर पाएगी, तो इसका गुणात्मक प्रभाव भी देखा जाएगा। प्रदेश को सही मायने में पर्यटन राज्य बनाने के लिए सुक्खू सरकार अगर ग्रामीण स्तर तक आवश्यक ढांचा विकसित कर पाती है, तो यह क्रांतिकारी रूप से इस उद्योग को समृद्ध करेगा। राजनीति से ऊपर उठकर प्रदेश के विकास की समग्रता में हर कोना जुडऩा चाहिए और इस दृष्टि से भविष्य की अधोसंरचना का संकल्प तैयार करना होगा।