प्रतिभा हो तो ऐसी; मंडी की नेत्रहीन बेटी बनी प्रोफेसर, अंतर्मन की आंखों से पाई कामयाबी

विप्लव सकलानी-मंडी 

मंडी। जब कुछ करने की ठान ली हो, तो बड़ी से बड़ी बाधा भी चुटकियों में पार हो जाती है। जुनून हो तो अंधेरे में भी उजाला मिल जाता है। कहते हैं कि कुछ लोग स्पेशल होते हैं और कुछ अपने काम से स्पेशल बन जाते हैं। आज हम उस प्रतिभा की बात करेंगे, जिसने जन्म से नेत्रहीन होने के बाद भी अंतर्मन से ख्वाब देखे और उन्हें पूरा कर अपने जीवन को रोशन किया। यह है मंडी सदर क्षेत्र की तरनोह पंचायत की प्रतिभा, जिनका चयन अस्सिटेंट प्रोफेसर पोलिटिकल साइंस के पद पर हुआ है।

प्रतिभा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान में पीएचडी कर रही हैं। प्रतिभा के पिता खेमचंद शास्त्री बताते हैं कि उन्होंने बचपन में बेटी का बहुत इलाज करवाया, मगर उसकी आंखों की रोशनी न लौट सकी। प्रतिभा स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन उसे स्कूल भेंजें भी तो कैसे। फिर घर में ही पढ़ाने की व्यवस्था की। प्रतिभा ने स्व. धनीराम ठाकुर मैमोरियल राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बरयारा से जमा दो और वल्लभ कालेज मंडी से बीए, एमए, बीएड और एमएड प्रथम श्रेणी में पास की। प्रतिभा बचपन से ही शिक्षा के क्षेत्र में या फिर विदेश मंत्रालय में सेवाएं देने की इच्छा थी और उसने कभी अपनी दिव्यांगता को अपनी राह में रोड़ा नहीं माना। यही वजह है कि वह आज असिस्टेंट प्रोफेसर बनी हैं। पढ़ाई के अलावा समाज सेवा और साहित्य लेखन में भी प्रतिभा की रूचि रही है। खासकर कविता और लघु कथांए लिखने शौक भी है। वह अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता और गुरूजनों प्रो. अजय श्रीवास्तव, प्रो. महेंद्र यादव, प्रो. चमन लाल क्रांति को देती हैं।