मन के विचार

मीठी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।।

मीठी वाणी बोलने वाला सदा प्रसन्न रहता है। शांति के भाव उसके चेहरे से प्रकट होते हैं। ऐसा व्यक्ति अधिक कर्मशील होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण जी विपरीत परिस्थितियों में भी प्रसन्न मुद्रा में रहते थे और वे सदा मुस्करा तथा मधुरता से ही सब के साथ पेश आते थे।

प्रेम व माधुर्य उनका स्वभाव था। बाबा जी कहते हैं, आप संतजन मुझ से तो नम्रता से बात करते हो, लेकिन बात तब बनेगी जब आप सब से नम्रता और मीठी वाणी से बात करें तब सब आप का सम्मान करेंगे। यदि कोई कड़वा भी बोले तो भी उत्तर मीठे वचनों से ही देना है। तभी सद्गुरु प्रसन्न होंगे क्योंकि सद्गुरुस्वयं मधुर भाषी होते हैं। वे किसी अपराधी से भी कड़वी बात नहीं करते। पवित्र गुरबाणी में सद्गुरु के विषय में लिखा है।

मिठ बोलड़ा जी हरि सजनु सुआमी मोरा।
हउ संमलि थकी जी ओहु कदे न बोले कउरा।।

बाबा हरदेव सिंह जी महाराज संतों को संबोधित करते हुए प्यार, नम्रता और मीठी वाणी अपनाने पर बल देते हुए कहते, सदा प्यार ही व्यावहारिक जीवन का आधार होना चाहिए। घृणा व वैर का भाव किसी के भी प्रति न हो।

आप ऐसी मधुर भाषा का प्रयोग करें कि मानव से मानव गले मिले। संसार में सभी नम्रता और प्यार का पाठ पढ़ें व पढ़ाएं। बाबा जी के इन वचनों को अमल में लाकर संसार में शांति का वातावरण बनाने में हम सब अपना योगदान दें। जीवन में व्यवहार में यदि मधुर भाषा भी होगी तो घर संसार सब जगह का वातावरण स्वस्थ और सुंदर बनेगा। कड़वे वचन कड़वे तो होते हैं साथ ही कठोर भी होते हैं, जो सदैव दुखदायी होते हैं।

मधुर वचन है औषधि कटु वचन है तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर।।

फालतु और बहुत अधिक बोलने से भी कई बार गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिन का निदान कठिन हो जाता है। गुरु नानक देवजी फरमाते हैं।

नानक फिका बोलिए तन मन फिका होए।

कोयल और कौआ दोनों पक्षी एक समान काले रंग के होते हैं, किंतु दोनों की बोली में बहुत अंतर है। कौए की कर्कश वाणी को कोई भी सुनना पसंद नहीं करता उसे उड़ा दिया जाता है। कोयल की मधुर वाणी मन में प्रसन्नता पैदा करती है, जी चाहता है थोड़ी देर और बैठी रहे। इस के मधुर स्वर कानों में रस घोल रहे हैं। इसी प्रकार कठोर और तीखे वचनों वाले के पास कोई खड़ा होना भी पसंद नहीं करता।

मधुर भाषी को देखकर ही हृदय प्रसन्न हो जाता है। होंठों पर मुस्कान आ जाती है। उसके स्वागत में हाथ जुड़ जाते हैं। आज निरंकारी मिशन के महात्मा अपने मधुर वचनों और प्यार सत्कार से संसार को अमन शांति और सद्भावना का संदेश दे रहे हैं।

मिठत नीवी नानका गुण चंगिआइया ततु।

अर्थात वही शब्द उच्चारण किए जाएं जिनसे किसी को कष्ट न हो और मन को भी शीतल कर दें। ऐसे शब्द जिनसे उदास मन को मुस्कराहट मिले। इसलिए हमेशा मीठे व सुख पहुंचाने वाले वचन ही कहने चाहिए। कड़वे-कर्कश वचन एक सुंदर और मनोरंजक वातावरण में विष घोल देते हैं। बाबा जी यही समझा रहे हैं कि बोलने से पहले अपने बोलों पर विचार कर लेना चाहिए। -क्रमश: