गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

जो ब्रह्मांड में है, वह ही पिंड में है। इन सब प्रमाणों से यही सिद्ध है कि योगियों के हृदय में ब्रह्म प्रकट होता है तब योगी अपने ही शरीर में पूरे ब्रह्मांड तथा सूर्य, चंद्रमा, वसु, रुद्र आदि सभी का दर्शन करता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को इसी विद्या का ज्ञान दे रहे हैं…

गतांक से आगे…
अत: समस्त ब्रह्मांड को उन्होंने अपने अंदर दिखा दिया। यह सभी ऋषि-मुनि महापुरुषों का अनुभव है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एवं परमेश्वर मनुष्य के शरीर के अंदर ही है। अथर्ववेद मंत्र 3/20/8 में कहा कि साधक ईश्वर की प्रेरणा से सूर्य आदि सब लोकों को अपने अंदर देखने का प्रयत्न करें। ऋग्वेद मंत्र 10/114/7 एवं 8 में कहा कि ध्यान में लीन योगीजन उस परमात्मा को अपने अंदर बिठाते हैं। जो ब्रह्मांड में है, वह ही पिंड में है। इन सब प्रमाणों से यही सिद्ध है कि योगियों के हृदय में ब्रह्म प्रकट होता है तब योगी अपने ही शरीर में पूरे ब्रह्मांड तथा सूर्य, चंद्रमा, वसु, रुद्र आदि सभी का दर्शन करता है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को इसी विद्या का ज्ञान दे रहे हैं। यह वर्णन अर्जुन के लिए अलौकिक है और था भी अलौकिक ही। कृष्ण ने कहा, हे अर्जुन! जो पहले तूने कभी नहीं देखे ऐसे आश्चर्यों को देख। मरूत: अर्थात वायु को देख। उस ब्रह्मलीन अवस्था में योगी के अंदर प्राण-अपान वायु का आश्चर्यजनक कार्य होता है। हर समय दिव्य प्राणायाम चलता रहता है जिस कारण शरीर में अद्भुत कर्म चलते रहते हैं। श्रीकृष्ण महाराज द्वारा मरुत/वायुओं का इस तरफ भी संकेत है। ब्रह्मलीन अवस्था में यदि कोई योगी किसी को कुछ कहेगा भी तब भी उसकी वाणी उस समय आश्चर्ययुक्त होती है। तब उस समय उसके शरीर में होने वाली दिव्य, योगिक क्रियाएं तो और भी अधिक आश्चर्ययुक्त होती हैं, जिन्हें दर्शन करके कभी तो सुनने वाला साधक डर सा जाता है तो कभी प्रसन्न हो जाता है। इसी कारण श्रीकृष्ण महाराज कह रहे हैं कि हे अर्जुन! जो तूने पहले कभी नहीं देखे ऐसे आश्चर्यों को भी देख। – क्रमश: