अतिक्रमण से सिकुड़ी चंबा की सडक़ें

प्रशासनिक ढील के चलते अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद, राहगीरों को पेश आ रही दिक्कतें
दिव्य हिमाचल ब्यूरो-चंबा
शहर के विभिन्न हिस्सों में रेहड़ी-फड़ी वालों के बढ़ते अतिक्रमण से सडक़ें सिकुड़ कर रह गई है। फेस्टिवल सीजन के दौरान इन दिनों हालात इस कद्र बिगड़ चुके हैं कि शहर के मुख्य बाजार का कोई भी हिस्सा रेहड़ी-फड़ी वालों के अतिक्रमण से अछूता नहीं है। प्रशासनिक ढील के चलते अतिक्रमणकारियों के हौसले इस कद्र बुलंद हो चुके है कि जहां मन कर रहा हैं वही सडक़ पर दुकानदारी सजा रहे हैं। पिछले कुछ समय से पोस्ट आफिस के जरिए नए बस अड्डे को जाने वाले मार्ग पर अतिक्रमण इस कद्र बढ़ चुका है कि राहगीरों की पैदल आवाजाही भी मुश्किल भरी हो गई है। इतना ही नहीं शहर में अतिक्रमण से सिकुड़ी सडक़ों के चलते ट्रैफिक जाम की समस्या भी आम होकर रह गई है। उल्लेखनीय है कि चंबा शहर का मेन बाजार पहले ही दुकानदारों के अतिक्रमण के चलते सिमटकर रह गया है।

ऐसे में अब रेहडी-फड़ी वालों के अतिक्रमण ने हालात मुश्किलों भरे कर दिए हैं। शहर में पहले सब्जियों की रेहड़ी-फड़ी वालों का कब्जा था, लेकिन वर्तमान में अब गर्म वस्त्र बेचने वालों ने भी सडक़ों पर दुकानें लगानी आरंभ कर दी हैं। जिला प्रशासन व नगर परिषद के ढुलमुल रवैये के चलते अतिक्रमणकारियों ने लोगों के लिए दिक्कतें खड़ी कर दी हैं। उन्होंने बताया कि शहर के मेन बाजार सहित न्यू बस अड्डे को जाने वाले तमाम मार्गों पर अतिक्रमण हो चुका है। उन्होंने बताया कि शहर में अतिक्रमण को रोकने के लिए जिला प्रशासन व नगर परिषद की ओर से कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि नगर परिषद की अतिक्रमण हटाओ मुहिम केवल कागजों तक सिमटकर रह गई है। कभी-कभार नगर परिषद शहर में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर रही है।

बैंक के काम को 30 किलोमीटर का सफर
सुरंगानी। चंबा व तीसा विकास खंड के अधीन पडऩे वाली करीब छह-सात पंचायतों के लोगों को बैकिंग सुविधा हासिल करने के लिए 25 से 30 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है। ग्रामीणों का तर्क है कि कोटी से लेकर कल्हेल तक के क्षेत्र में पडऩे वाले पंचायतों के दर्जनों गांवों में किसी भी बैंक की शाखा न होने से काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं। ग्रामीण फारूक मुहम्मद, चैन लाल, बिट्टू, सलीम मुहम्मद, गुलजारी, रमेश कुमार, अजय कुमार, अनिता देवी व भारती देवी आदि का कहना है कि कल्हेल से कोटी तक के बीच पडऩे वाले लोगों को बैंक शाखा न होने से मजबूरन 25-30 किलोमीटर सुंरगानी, जबकि तिलमिली, कंदला, कड़ोह व कुठार के लोगों को सुंडला का रूख करना पड़ रहा है।