बलात्कार से बिक्री तक

महाकाल ज्योतिर्लिंग, महादेव और मंदिरों के शहर उज्जैन में 12 वर्षीय नाबालिग कन्या के साथ न केवल क्रूर बलात्कार किया गया, बल्कि उसे घायल कर लावारिस छोड़ दिया गया। उस बच्ची की रक्षा करने न तो कोई दैवीय करिश्मा हुआ और न ही किसी नागरिक ने उसकी पीड़ा साझा कर मदद करने की कोशिश की। उसे अस्पताल तक पहुंचाने की इनसानियत भी नदारद रही। बच्ची रोती-बिलखती, दर-दर गुहार करती रही, लेकिन उस कथित पवित्र शहर का असली चेहरा लगातार बेनकाब होता रहा। इतनी बेरुखी, संवेदनहीनता, तटस्थता सामने आती रही कि एक जिंदगी मर रही है, लेकिन घरों के दरवाजे बंद हैं! यही घोर कलियुग है। यह हमारे समाज और देश में हररोज घट रहा है। हररोज बलात्कार और सामूहिक दुष्कर्म, हत्या अथवा जला देने के जो औसत, दर्ज आंकड़े सामने आते रहे हैं, वे बेहद कम हैं। यह दरिंदगी, हवस और पाशविकता हम राजधानी दिल्ली में भी देखते रहे हैं। अभी हाल ही में ‘आज तक’ ने छिपे कैमरे से एक ऑपरेशन किया। मन-मस्तिष्क चीत्कार कर उठा। बेटियां अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। मामा, चाचा, मौसी आदि परिजन ही घर की बेटियां बेच रहे हैं। लाखों रुपए में बेटियों-बहनों की सौदेबाजी की जा रही है। हलफनामे भरे जा रहे हैं। ग्राहकों को तसल्ली दी जा रही है कि आप लड़कियों के साथ कुछ भी कर सकते हो! भारत के भीतर का एक और भारत यह भी है। एक रपट ने खुलासा किया है कि करीब 13 लाख बेटियां, बहनें, माताएं और देश की महिलाएं गायब हैं, लापता हैं।

वे स्त्रियां कहां गईं? कैसे लापता हुईं? पुलिस-व्यवस्था ने क्या किया? उन्हें कौन ‘दरिंदे’ लूट गए? क्या वे भारत की नारियां ‘वेश्यालय’ तक पहुंचा दी गई हैं अथवा विदेशों में तस्करी की गई हैं? बेहद झकझोर देने वाले सवाल हैं। किसी देश की 13 लाख कन्याएं और महिलाएं लापता हो जाएं और यह मुद्दा संसद में न उठे, इससे बड़ी हैरानी और संवेदनहीनता क्या होगी? संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण अब एक कानून बन चुका है। राष्ट्रपति हस्ताक्षर कर चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे चुनावी मुद्दा बना दिया है और महिलाओं का व्यापक समर्थन हासिल करने को व्यग्र हैं। रोड शो के दौरान प्रधानमंत्री के वाहन के चारों ओर महिलाओं का घेरा बनाया जाने लगा है। स्पष्ट अर्थ है कि प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी भाजपा को महिलाओं का समर्थन और सहयोग सुनिश्चित किया जा चुका है, लेकिन प्रधानमंत्री से हमने आज तक इस सरोकार के शब्द तक नहीं सुने कि 13 लाख स्त्रियां क्यों, कहां गायब कर दी गईं? वे सभी देश की सम्मानित नागरिक हैं, आधी-शक्ति की प्रतीक हैं और कई लाख तो मतदाता भी होंगी! वह देश के प्रधानमंत्री हैं, सभी संसाधन, स्रोत और शक्तियां उन्हें संविधान ने प्रदान की हैं। जिस देवनगरी में नाबालिग की इज्जत तार-तार की गई थी, वह मध्यप्रदेश का ही एक शहर है, जहां भाजपा की सरकार है।

प्रधानमंत्री उस राज्य में वोट मांग रहे हैं, सत्ता को बरकरार रखने के प्रयास और प्रयोग किए जा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने राज्य के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को तलब कर पूछा क्यों नहीं कि महादेव के शहर में ऐसा क्यों हुआ? आज मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला आया है, जिसमें तमिलनाडु के 215 अफसरों, कर्मचारियों को पुन: दंडित किया गया है। 1992 में वाचथी गांव में 18 महिलाओं के साथ दरिंदगी की हदें पार की गईं। 32 साल बाद फैसला आया है। इस बीच 54 आरोपितों की मौत भी हो चुकी है। तब 8 माह की गर्भवती औरत और 13 साल की बच्ची को भी दुष्कर्म का शिकार बनाया गया। यह देश का कैसा न्याय है? दुष्कर्म, क्रूरता, हवस के मामलों में भी 32 साल तक मामला अदालतों में लटका रहेगा, तो फिर किसकी जिंदगी सुरक्षित मानी जा सकती है? राक्षस तो किसी की भी जिंदगी में टकरा सकते हैं। किसी की भी इज्जत से खिलवाड़ कर सकते हैं? फिर महिला सशक्तिकरण, आर्थिक विकास, आत्मनिर्भरता, शिक्षा आदि के जुमले क्यों उछाले जाते रहे हैं? यदि बच्चियां बचेंगी, तो फिर आगे बढ़ पाएंगी, पढ़-लिख सकेंगी! उनकी इज्जत पर ही हमले जारी रहेंगे, तो फिर हमारा देश ‘भारत महान’ कैसा? इस तरह की घटनाओं पर तुरंत रोक लगनी चाहिए और सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।