नई सदी नए मुखौटे…

सुरेश सेठ

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अपने देश में जो काम होता है, पूरी निष्ठा के साथ होता है। इसीलिए तो इस देश को निष्ठावान देश कहा जाता है। आज से नहीं सदियों से कहा जाता है। यह मामूली बात है कि वक्त गुजरने के साथ-साथ यहां लोगों की निष्ठा के पैमाने बदल गए हैं। मुखौटे तशरीफ ले आए हैं। वे दिन गए जब अध्ययन के दिनों में पूरी निष्ठा से पढ़ाई और अध्यापन के दिनों में पूरी निष्ठा के साथ अध्यापन होता था। इस देश के लोगों के प्रतिबद्ध संस्कारों की कसम पूरी दुनिया में खाई जाती रही। अब वक्त बदल गया। संस्कार तो वही हैं। निष्ठा भी वही है और प्रतिबद्धता भी वैसी ही है। लोगों की स्थिति को देखने, सपनों की उड़ान भरने के दृष्टिकोण बदल गए हैं। पहले तप-तपस्या और मेहनती लोगों की भूमि था यह देश। बरसों तप करते और तब लोग अपना अभीष्ट सिद्ध करने का साहस करते। अब तो प्यारे, दुनिया अजब हड़बड़ी में नजर आती है। आज भी यहां संस्कृति और संस्कार की बातें होती हैं, लेकिन ये बातें शार्टकट संस्कृति की हैं, हथेली पर सरसों जमाने के संस्कारों की हैं। अब यहां हर हवेली में चोर दरवाजे रखने आवश्यक हो गए हैं और उम्र भर भरपूर मेहनत के साथ सीधी सपाट राह पर चलते हुए सफलता प्राप्त करने की इच्छा को बौड़म माना जाता है। कभी पढऩे-लिखने को तप-तपस्या से जोड़ा जाता था, लेकिन अब तपस्या ऐसी हो जो महाग्रंथों को पढऩे के स्थान पर उनकी सरल गाइड बनाए, और अध्यापक ऐसा जो आपको नकल के मोरपंख लगा कर उडऩा सिखाए। न भी उड़ सको तो क्या? सफलता की खबर आजकल सफल होने से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गई है।

प्रचार खबरों में जियो बन्धु! सच्ची नहीं तो अपने लिए झूठी खबरों का तूमार खड़ा कर लो। खलनायक से नायक बनने में देर ही कितनी लगती है? सिर्फ मीडिया को गोद में लेने की बात है। तभी तो आजकल इसे दुलार कर गोदी मीडिया कहा जाता है। इसे पटा लो, तुम्हारी सात समुद्र पार तक अपनी विजय पताका लहराते देर नहीं लगेगी। नई सदी की नई हवा बही है, ‘पढ़ाई नहीं नकल में महारत हासिल करके ठेले पर हिमालय लाद कर ला सकते हो।’ अध्यापक वह जो कक्षा में पढ़ाए तो न, केवल आपके लिए नम्बरों का जुगाड़ करे। जुगाड़ क्यों, आजकल तो मौसम गारंटी देने का है। बस, अपनी धरती छोड़ परायी धरती पर जा बसने की इच्छा रखने वालों को परीक्षा में उचित बैंड दिलवा देने की गारंटी दे दो, फिर तुम्हारी पौ-बारह है। जिसे आपने वैध या अवैध रूप से पराये देश भिजवा दिया, वह तो आपकी चरणरज्ज को स्वर्ण रज्ज बना ही देगा। जिन्होंने ‘अधिक गलत काम सही तरीके से’ आपको विदेश भिजवाने का काम जमा लिया है, उन्होंने तो अपने देश में ही अमरीका, कनाडा बना लिया। देखते नहीं हो, रुपये का मूल्य डालर के मुकाबले रिकार्ड स्तर पर गिर गया है।

लोग विनिमय दर के बदल जाने से बैठे बिठाए करोड़पति हो गए। उनके पास न हींग था न फिटकरी, लेकिन देखो रंग कितना चोखा आ गया। इसी को तो ठेले पर हिमालय लाद कर लाना कहते हैं। आजकल न जाने कितने चतुर सुजान अपने-अपने ठेले पर हिमालय लाद कर ला रहे हैं, और तुम उसी प्रकार पूरी निष्ठा के साथ रोजगार दफ्तरों के बाहर अपने प्रमाणपत्रों का पुलिंदा उठाए खड़े हो। काश! इस पुलिंदे की जगह तेरे पास नोटों का पुलिंदा होता तो तुझे किसी कतार में खड़े होने की जरूरत न पड़ती। अपना हांका देकर नौकरी लेता, और फिर नेता जी की जय का नारा बुलंद करके कह देता, देखो इनके आते ही नौकरियों का चाहवानों में चोरी छिपे बिकना बंद हो गया। अब तो खुली बोली लगती है। जो मोल चुका सके, नौकरी बेगम उसी की हुई। कहानी सुनते थे न, जो रानी थी जो वह गोली हुई, और जो गोली थी, वह रानी। बस यही होता आज दिन-रात देखते हैं, और सत्ता के दलालों को खपरैल से प्रासाद बन जाता पाते हैं।