अब राम या गांधी नहीं हैं

चारों ओर मार-काट मची है। बम, मिसाइलों और बारूद की अन्य किस्मों से विध्वंस किए जा रहे हैं। हररोज, हर पल अनेक नरसंहार भी किए जा रहे हैं। दुनिया का एक हिस्सा खंडहर और मलबा हो चुका है। ये किसी बुराई के खिलाफ अच्छाई अथवा असत्य पर सत्य की जीत के युद्ध नहीं हैं। साबित किया जा रहा है कि मानव विभिन्न हथियारों के सामने कितना बौना, असहाय और असमर्थ है! मानवता और इनसानियत के मूल्य गायब हैं। लगता है, इन देशों में कोई राम या गांधी नहीं हुए! कोई तो आराध्य होंगे? किसी धर्म, मजहब और उनके मूल्यों को तो ये देश मानते होंगे! दशहरा और दीपावली सरीखे मानवीय सरोकार और सौहार्द के पर्व ऐसे जंगी देश कहां मनाते होंगे! वे बुनियादी तौर पर आतंकवादी हैं, अमानवीय हैं, जैसे किसी युग में दैत्य होते थे। उन्हें सिर्फ मारना या प्रतिशोध लेना आता है। ये तो ‘रावण’ भी नहीं हैं, क्योंकि उस महाज्ञानी, महाशक्तिशाली राजा के प्रतिशोध का भी मकसद था। इजरायल और हमास युद्ध के संदर्भ में देखें, तो लगभग पूरी दुनिया ‘कुरुक्षेत्र’ में मौजूद लगती है। अथवा औसत देश एक पक्ष जरूर है। हमास के आतंकियों ने इजरायल पर अचानक हमला किया और कुल 1400 से अधिक मासूमों की हत्या कर दी और 200 बेकसूर लोगों को बंधक बना लिया। यकीनन यह आक्रमण नरसंहार की परिधि में आता है। इजरायल पलटवार क्यों न करता? नैतिकता, धर्म, मूल्य उसे क्या सिखाते हैं? प्रभु राम ने भी रावण पर हिंसक पलटवार किया था। मासूम और बेगुनाह उस युद्ध में भी हताहत हुए थे। यह तो किसी भी युद्ध की नियति है। लेकिन राम का आखिरी मकसद युद्ध नहीं था। वह युद्ध के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने अपने दूत भेजकर रावण को समझाने और माता सीता को लौटाने के अनुरोध किए थे। अहंकार ने इसे कायरता समझा, लिहाजा राम पक्ष को युद्ध के लिए बाध्य किया गया था। प्रभु राम के राजक्षेत्र में युद्ध नहीं होते थे, लिहाजा उनकी जन्मस्थली को ‘अयोध्या’ नाम दिया गया। बहरहाल इन रूपकों का अब कोई मतलब नहीं है।

हमास ने 7500 से ज्यादा ‘हत्यारे’ रॉकेट और मिसाइल दागे हैं, तो इजरायल ने भी गाजा पट्टी, लेबनान, सीरिया में 11,000 से अधिक बम बरसाए हैं। विध्वंस अभी जारी है। दुनिया के प्रमुख देश विभाजित हो चुके हैं। एक तरफ अमरीका, ब्रिटेन, यूरोपीय देश आदि इजरायल के समर्थन में हैं। दूसरी तरफ ईरान, लेबनान, चीन, रूस आदि फिलिस्तीन समर्थक हैं, लिहाजा परोक्ष रूप से हमास के हिमायती हैं। इनमें से कोई भी देश हमास को ‘आतंकी’ करार देने को तैयार नहीं है, अलबत्ता इजरायल को ‘आतंकवादी’ और ‘हत्यारा’ करार देने में ये देश बिल्कुल तैयार हैं। बहरहाल अभी तक दोनों पक्षों के 5100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इनमें बीते 24 घंटे में मौत के घाट उतार दिए गए 436 ऐसे लोग भी हैं, जिनमें 182 बच्चे भी शामिल थे। ये प्राणी की दया नहीं पालते, तो अहिंसक कैसे बनेंगे? मूल्यों को क्यों मानेंगे? घायलों की संख्या भी 15,000 से अधिक बताई जा रही है। ये वे आंकड़े हैं, जो सार्वजनिक किए जा चुके हैं। हकीकत तो दुनिया को पता ही नहीं है। चीन ने मध्य-पूर्व में अपने 6 युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। रूस का युद्धपोत ‘काला सागर’ में तैनात है। इन युद्धपोतों पर ‘हत्यारे हथियार’ भी लगे हैं। अमरीका ने इजरायल का सुरक्षा-कवच तान लिया है। यमन के हूती आतंकियों ने हवाई हमले किए थे, तो अमरीका ने उन्हें निरस्त कर दिया था। ब्रिटेन और कनाडा के लड़ाकू विमानों को चीन ने इंटरसेप्ट किया था। हालांकि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, बहरीन, मोरक्को और मिस्र सरीखे अरब और इस्लामी देश युद्ध के किसी भी पाले में नहीं हैं, लिहाजा ‘सांप्रदायिक’ आधार पर लामबंदी बहुत मुश्किल लगती है। मुसलमान देश दूसरे मुस्लिम देश के खिलाफ ‘वर्चस्व की लड़ाई’ में भी उलझा है, लेकिन ईरान जैसा ताकतवर देश अमरीका और इजरायल को लगातार धमकियां भी दे रहा है। वह जिस पल युद्ध में उतरा, तो तय है कि यह ‘महायुद्ध’ में तबदील हो जाएगा। सवाल है कि यदि आज के दौर में राम या गांधी होते, तो क्या युद्धों को शांत कर सकते थे? क्या मानवता आपस में भाईचारे के साथ जिंदा रह सकती थी?