संपदा हिमाचल की, तो मुआवजे में देरी क्यों

शानन विद्युत परियोजना को पंजाब सरकार हिमाचल को देने के मूड़ में नजर नहीं आ रही है। यह न्याय की मांग है कि केंद्र हिमाचल को उसकी संपदा का मुआवजा दिलाए…

हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्य में स्थित है जिसे देवभूमि के साथ साथ वीरभूमि के रूप में भी जाना जाता है। राज्य के अधिकांश मंदिर नक्काशीदार लकड़ी में काष्ठकुणी शैली के अलावा अद्भुत स्थापत्य कला के साथ पत्थरों से बने हुए हैं। हिमाचल अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं की वजह से देश विदेश में अनूठी पहचान रखता है। यहां की छायादार घाटियां, वृहद चट्टानें, हिमनद और विशाल देवदार और मधुर संगीतमय ध्वनि पैदा करने वाली नदियां, श्रेष्ठ वनस्पतियां और पहाड़ी जीव-जंतु बरबस ही यहां आने वाले सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जहां तक हिमाचल के वर्तमान स्वरूप की बात करें तो 27000 वर्ग किलोमीटर में फैली 30 रियासतों के एकीकरण के परिणामस्वरूप 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया था। राज्य के पुनर्गठन पर पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को राज्य में मिला दिया गया और हिमाचल का आकार बढक़र 55673 वर्ग किलोमीटर हो गया।

अपने अस्तित्व में आने के बाद से विकास के मामले में हिमाचल प्रदेश ने एक लम्बी छलांग लगाई है और शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं के विकास का एक सफल मॉडल यहां देखने को मिलता है। आजादी से पहले और 25 जनवरी 1971 में भारतीय संघ का 18वां राज्य बनने तक हिमाचली भू-सम्पदा, जल जंगल और जमीन का भरपूर दोहन हुआ और उसका लाभ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान राज्यों को मिला, लेकिन हिमाचल आज भी अपने हक की लड़ाई केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में दशकों से लड़ता आ रहा है, लेकिन मुआवजे के नाम पर आज भी इसकी झोली खाली है। वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश में चल रहे तीन बड़े जलविद्युत प्रॉजेक्ट्स से रॉयल्टी, चंडीगढ़ में हिस्सेदारी और शानन जलविद्युत परियोजना के आगामी मार्च 2024 में हिमाचल सरकार को सौंपने जैसे मुद्दे अहम हैं। हिमाचल सरकार के लिए बीबीएमबी परियोजनाओं में अपने हक के 4250 करोड़ रुपए करीब की राशि पर पिछले ढाई दशक से पड़ोसी राज्य हिमाचल के हक पर कुंडली मार कर बैठे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हरियाणा व पंजाब हिमाचल का हक उसे नहीं दे रहे हैं। जाहिर है 4250 करोड़ रुपये काफी बड़ी रकम है और इससे हिमाचल में आई हालिया प्राकृतिक आपदा से निपटने में सरकार को मदद मिल सकती है। 1998 में तत्कालीन हिमाचल सरकार द्वारा दायर याचिका के प्रत्युत्तर में सुप्रीम कोर्ट ने बीबीएमबी परियोजनाओं के कुल उत्पादन की 7.11 फीसदी हिस्सेदारी के लिए हिमाचल को हकदार ठहराया था।

इसके तहत भाखड़ा-नंगल में 6.095 फीसदी, ब्यास-एक में 5.752 फीसदी और ब्यास-दो में 2.984 फीसदी हिस्सेदारी तय की थी। इसके अतिरिक्त हिमाचल की दावेदारी तय करते हुए अदालत ने पंजाब और हरियाणा को पांच-पांच लाख की कॉस्ट भी लगाई थी। पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल प्रदेश, पंजाब व हरियाणा से बीबीएमबी के तीन पावर प्रोजेक्टों 1325 मेगावाट भाखड़ा, 396 मेगावाट पौंग व 990 मेगावाट बीएसएल में हिस्सेदारी मांग रहा है। हिमाचल प्रदेश को तीनों पावर प्रोजेक्टों से 13066 मिलियन यूनिट बिजली बकाया के एवज में मिलनी है। इतना ही नहीं हिमाचल की सरकारें आज तक चंडीगढ़ में प्रदेश की हिस्सेदारी लेने को लेकर कोशिशें जरूर करती रही हैं, लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने 26 सितंबर को अमृतसर में उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में जहां केंद्र सरकार से आपदा राहत के पैकेज में बदलाव लाने की मांग की, वहीं उन्होंने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के पास हिमाचल प्रदेश के हिस्से के मुआवजे के रूप में लगभग 4250 करोड़ और शानन जलविद्युत परियोजना को हिमाचल को हस्तांतरित करने की मांग उठाई है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है और उन्होंने चंडीगढ़ की जमीन पर हिमाचल की 7.19 फीसदी हिस्सेदारी और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड प्रोजेक्ट से रॉयल्टी लेने के लिए कैबिनेट सब कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत अंतर राज्यों के बीच हुए समझौतों को खंगालेगी और सरकार को बताएगी कि किस प्रकार हिमाचल को चंडीगढ़ में उसकी हिस्सेदारी दिलाई जाए। चौधरी चंद्र कुमार की अध्यक्षता में बनाई कैबिनेट सब कमेटी उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान एवं राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी को सदस्य बनाया गया है, जबकि ऊर्जा सचिव को सब कमेटी का सदस्य बनाया गया है।

यह कमेटी बताएगी कि इस समय बीबीएमबी की तरफ से संचालित भाखड़ा बांध परियोजना (1478 मैगावाट), ब्यास सतलुज (990 मैगावाट) व पौंग बांध परियोजना (396 मैगावाट) में किसी प्रकार की मुफ्त बिजली की रॉयल्टी राज्य को क्यों नहीं मिल रही है? जाहिर है हिमाचल की इस मांग पर पंजाब सरकार ने इसे सियासी साजिश करार देते हुए कहा कि ऐसी बेतुकी मांग पूरी नहीं होने दी जाएगी। एक अन्य मुद्दा शानन जलविद्युत परियोजना का भी है। शानन जलविद्युत परियोजना मंडी जिले के बरोट में स्थित 110 मेगावाट की पनविद्युत परियोजना है जिसे 1932 में कमीशन किया गया था। हालांकि वर्तमान में यह पंजाब सरकार के नियंत्रण में है। जोगिन्द्रनगर उपमंडल में शानन जल विद्युत परियोजना की रोजाना आमदनी करीब 80 लाख रुपए से अधिक है। यह पावर हाऊस पंजाब विद्युत बोर्ड के आधिपत्य में संचालित है। इसको लेकर मार्च 1925 में तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्र सेन तथा सैक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके अनुसार आगामी 2024 तक यथास्थिति रहनी है और तदोपरांत इस परियोजना का हस्तांतरण हिमाचल सरकार को होना तय है। शुरुआत में इस विद्युत परियोजना पर 25343709 रुपए का खर्चा हुआ था। शानन पावर हाऊस के 1932 में तैयार हो जाने के बाद 10 मार्च 1933 को इसका उद्घाटन लाहौर में हुआ था। ऊहल नदी प्रोजेक्ट स्कीम में बनाए गए इस पावर हाऊस का निर्माण उस समय के पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बैटी ने करवाया था। 110 मेगावॉट क्षमता वाली शानन विद्युत परियोजना को पंजाब सरकार हिमाचल को देने के मूड़ में नजर नहीं आ रही है। यह न्याय की मांग है कि केंद्र सरकार हिमाचल को उसकी संपदा का न्यायोचित मुआवजा दिलाए।

अनुज कुमार आचार्य

स्वतंत्र लेखक