ब्रह्मांड के सिद्धांत

श्रीश्री रवि शंकर

आकाश को व्योम या व्याप्ति वर्णित किया जाता है, जिसका मतलब है जो सर्वव्यापी और सब में समाया हुआ है। आकाश से परे क्या है? आकाश से परे के बारे में सोचना अकल्पनीय है। सब कुछ आकाश में निहित है, सभी चार तत्व आकाश में ही हैं। सबसे स्थूल है पृथ्वी और फिर जल, अग्नि, वायु और आकाश। वायु अग्नि से अधिक सूक्ष्म है। आकाश सूक्ष्मतम है…

वाणी के चार स्तर होते हैं परा, पश्यंति, मध्यमा और वैखरी। मनुष्य केवल चौथे स्तर में बोलते हैं। जो भाषा में हम बात करते हैं वह वैखरी है। यह वाणी का सबसे स्थूल रूप है। वैखरी से सूक्ष्म, मध्यमा है। कुछ कहने से पहले उसका विचार हमारा मन सोच लेता है। जब आप उस स्तर को पकड़ लेते हैं तो वह मध्यमा है। पश्यंति संज्ञानात्मक है। शब्द बोलने की कोई जरूरत नहीं है। परा वह अनकहा, अप्रकट ज्ञान है जो इन सबके परे है। पूरा ब्रह्मांड गोलाकार है। उसका न ही कभी आदि हुआ और न ही कभी उसका अंत होगा। वह अनादि और अनंत है अगर ऐसा है तब ब्रह्मा रचयिता का क्या काम है? कहते हैं कि हर युग में बहुत सारे ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। समय और स्थान में यह होता चला आ रहा है। तो इस सृष्टि का स्रोत क्या है? ज्ञान आकाश से परे है। ज्ञान पांच तत्वों से भी परे है।

जिन्हें वेद समझा गया वे वैखरी नहीं हैं। उनकी अनुभूति आकाश से परे है। उसके विस्तार में सभी दिव्य स्पंदन समाहित हैं जो कि सर्वव्यापी है। आकाश क्या है? आकाश को व्योम या व्याप्ति वर्णित किया जाता है, जिसका मतलब है जो सर्वव्यापी और सब में समाया हुआ है। आकाश से परे क्या है? आकाश से परे के बारे में सोचना अकल्पनीय है। सब कुछ आकाश में निहित है, सभी चार तत्व आकाश में ही हैं। सबसे स्थूल है पृथ्वी और फिर जल, अग्नि, वायु और आकाश। वायु अग्नि से अधिक सूक्ष्म है। आकाश सूक्ष्मतम है। वह क्या है जो कि आकाश से भी परे है? वह है मन, बुद्धि, अहंकार और महत तत्त्व। यही तत्त्व ज्ञान है। ब्रह्मांड के सिद्धांत को जानना। जब तक आप ब्रह्मांड के सिद्धांत को नहीं जानेंगे तब तक आत्मा का भी पता नहीं लगा सकते हैं। जब आप आकाश से परे जाते हैं तो यह एक अनुभूति का क्षेत्र है। यह पूरा क्षेत्र आकाश से परे शुरू होता है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने पदार्थ और उसके गुण के बीच रिश्ते के बारे में बात की है।

एक बहुत ही दिलचस्प बहस चल रही है। क्या हम पदार्थ के गुणों को उससे अलग कर सकते हैं? यह पूरा दर्शन बहुत दिलचस्प है और इसका निष्कर्ष यह निकला कि आप पदार्थ के गुणों को पदार्थ से अलग नहीं कर सकते हैं। क्या चीनी की मिठास को चीनी से अलग किया जा सकता है? क्या वह तब भी चीनी कहलाएगी? क्या गर्मी और प्रकाश को आग से अलग किया जा सकता है? ऐसा होने पर क्या उसे आग कहा जाएगा? पदार्थ के गुण कहां से आते हैं। पहले क्या आता है गुण या पदार्थ? इस तरह के कई सवाल हैं।