हर विधायक निवेश ढूंढे

एक बार फिर नई उम्मीदों के साथ करीब डेढ़ सौ निवेशकों की ओर हिमाचल ने हाथ बढ़ाया है। दुबई में बसे हिमाचली प्रवासियों के साथ मुख्यमंत्री की मुलाकात के परिणाम जनवरी के सम्मेलन में तय होंगे, लेकिन निवेश का नजरिया जरूर बदल रहा है और साधन संपन्न प्रवासी देश-प्रदेश को कुछ आर्थिक सहयोग लौटाने का जज्बा लिए हाजिर हैं। जाहिर तौर पर पर्यटन, ऊर्जा, फिल्म सिटी, मीडिया जैसे अनेक क्षेत्रों में निवेश के मायने रोजगार व प्रदेश की आर्थिकी को मजबूत करेंगे। निवेश की इच्छा, संभावना व परिकल्पना अपनी जगह सही है, लेकिन इसके लिए वातावरण, संवेदना, सुविधा तथा सरल प्रक्रिया की जरूरत सदैव रहती है। यह केवल सरकार का पक्ष नहीं, बल्कि विपक्ष तथा सामाजिक, दृष्टि का संयोग होना चाहिए। उदाहरण के लिए पिछले तमाम संकल्प खंगालने होंगे ताकि पता चले कि निवेशक का उत्साह क्यों शिथिल होता रहा। अब तक की निवेश परियोजना में कुल्लू का स्की विलेज राजनीति के कारण अपनी सारी संभावनाएं खो बैठा। आश्चर्य यह कि तब फोर्ड जैसी कंपनी तीव्रता से सारी औपचारिकताएं पूरी करने जा रही थी, लेकिन बीच में देव संस्कृति का हौआ खड़ा कर दिया गया। प्रदेश आज तक एक भी एसईजेड यानी विशेष आर्थिक जोन विकसित नहीं कर पाया तो इसलिए कि सियासत के खंभे हर जगह पहरेदारी कर रहे हंै। धूमल सरकार एविएशन क्षेत्र में ऊना में विशेष आर्थिक जोन विकसित करना चाहती थी, लेकिन वहां इसके खिलाफ दूसरा पक्ष खड़ा हो गया। जाहिर तौर पर हिमाचल में अवैध कब्जों के तहत सरकारी जमीन को खुर्दबुर्द करने का एक वोट बैंक रहा है जो ऐसी परियोजनाओं के खिलाफ इस्तेमाल होता है। कुछ वर्ष पहले एमिटी विश्वविद्यालय ने धर्मशाला में पांव रखा, लेकिन तत्कालीन विधायक किशन कपूर इसके विपरीत दिखाई दिए। दूसरी ओर यही किशन कपूर जब ‘अक्षर धाम’ के निर्माण से एक बहुत बड़ा निवेश धर्मशाला ला रहे थे, तो उनकी परियोजना के खिलाफ अपनी ही सत्ता का रसूख खड़ा हो गया।

अगर हर विधायक को निजी निवेश का राजदूत बना दिया जाए, तो हर विधानसभा क्षेत्र में कुछ तो परिवर्तन आएगा, बशर्ते सरकार व व्यवस्था पूर्ण सहयोग करे, वरना इसकी फाइल-उसकी फाइल पर भारी पड़ जाएगी या राजनीति हावी हो जाएगी। इस दिशा में उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्रिहोत्री के उस प्रयास की सराहना होनी चाहिए जहां वह हर पटवार सर्किल में लैंड बैंक की स्थापना पर जोर देते हैं। पाठक इस बात के गवाह हैं कि हमने हमेशा इस विषय को लेकर गांव से शहर तक हर स्थानीय निकाय के स्तर पर भूमि बैंक बनाने तथा नगर नियोजन के तहत विकास योजनाएं बनाने की सदा तरफदारी की है। इतना ही नहीं हिमाचल में निजी निवेश की सबसे बड़ी अड़चन वन एवं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम है जिसके तहत हिमाचल अपनी सत्तर फीसदी जमीन गंवा चुका है। ऐसे में महज तीस फीसदी भूमि पर हमें साग का खेत और सेब का बागीचा उगाना है, तो गांव से शहर तक भी बसाना है। ऐसे में निवेश या विकास की जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त वन भूमि चाहिए। पंजाब-हरियाणा अगर पांच प्रतिशत से कम भूमि में जंगल उगा कर रह सकते हैं, तो हमारे अस्तित्व में सत्तर फीसदी वन भूमि की बाड़बंदी क्यों। हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना, मंडी, सिरमौर और बिलासपुर के कई समतल क्षेत्रों में जंगल उगाने के बजाय निवेश उगाना चाहिए या वन विभाग के जरिए ऐसा निवेश भी संभव है जहां जड़ी-बूटियां, जंगली खाद्य पदार्थ, फल-फूल के पौधे, चाय और काफी की प्लांटेशन तथा केनफ जैसी झाडिय़ां उगा कर फर्नीचर, बिल्डिंग मैटीरयल व वैकल्पिक लकड़ी पैदा की जा सकती है। इसी तरह हिमाचल में धारा 118 के पंजे में फंसी प्रक्रिया निवेश की सहजता को कठोर शीर्षासन की पटकथा बना देती है। अभी अभी मंत्रिमंडल में शामिल राजेश धर्माणी अगर हाई-वे के साथ नए औद्योगिक क्षेत्रों की संभावना देख रहे हैं, तो यह दौड़ निवेश केंद्रों के रूप में पूरी होनी चाहिए ताकि कहीं आधुनिक बाजार, कहीं हाई-वे पर्यटन, कहीं मनोरंजन पार्क और कहीं ट्रांसपोर्ट नगर निवेशकों को सुविधाजनक स्थान व अवसर दें। दुबई की तरह देश के विभिन्न राज्यों, मेट्रो शहरों व औद्योगिक केंद्रों में हजारों हिमाचली इस लायक हैं कि प्रदेश में निवेश कर सकें। मुंबई में हिमाचल मित्रमंडल के बाद फ्रेंड्स ऑफ हिमाचल तथा अन्य अनेक शहरों में हिमाचल की सामाजिक संस्थाओं को भी एक बार हिमाचल में एकत्रित करके उन्हें निवेश का न्योता दिया जाए, तो इसकी परिधि गांव से शहर और हर जिला तक एक समान फैल सकती है।