जनादेश के निहितार्थ

राज्यों के विधानसभा चुनावों के जनादेश प्रमुख तौर पर भाजपा के नाम ही रहे। पार्टी ने उत्तर भारत के दो बड़े और प्रमुख राज्यों-मध्यप्रदेश और राजस्थान-में जनादेश हासिल किया है। मप्र में तो 160 से अधिक सीट जीत कर भाजपा को ‘प्रचंड बहुमत’ मिला है, जबकि राजस्थान में 110 से अधिक सीटों का स्पष्ट बहुमत कमतर नहीं है। इसे भाजपा के पक्ष में सत्ता की लहर माना जा सकता है, क्योंकि ये जनादेश अनपेक्षित और अप्रत्याशित हैं। यह जनादेश प्रधानमंत्री मोदी, ‘कमल’ और पार्टी काडर के नाम भी रहा, क्योंकि दोनों ही राज्यों में भाजपा ने ‘मुख्यमंत्री का चेहरा’ पेश नहीं किया था। सामूहिक संठन ने एकजुट होकर चुनाव लड़े थे। राजस्थान में सत्ता का रिवाज नहीं बदला जा सका और कांग्रेस की ‘गारंटियां’ भी जनता ने खारिज कर दीं। खासकर 50 लाख रुपए की ‘चिरंजीवी’ स्वास्थ्य योजना पर जनता ने भरोसा नहीं किया, क्योंकि राज्य का बजट ही बेहद कम है। तो 8 करोड़ राजस्थान वासियों को मुफ्त इलाज की गारंटी कैसे संभव थी? इसकी तुलना में ‘प्रधानमंत्री की गारंटी’ पर सभी राज्यों की जनता ने भरोसा किया। हालांकि ये तमाम गारंटियां ‘मुफ्तखोरी’ की श्रेणी में ही आती हैं। बौद्धिक विशेषज्ञों की एक जमात ‘मुफ्त की रेवडिय़ों’ को भी उचित मानती है। उसकी दलील है कि सरकार का बुनियादी दायित्व ‘कल्याणकारी योजना’ का है और गरीब आदमी की पहली अपेक्षा सरकार से ही होती है। राजस्थान में ‘सांप्रदायिक रक्तपात’ और ‘सर तन से जुदा..’ सरीखे मुद्दों ने भाजपा के पक्ष में धु्रवीकरण को गति दी और तुष्टिकरण के खिलाफ वोट पड़े। नतीजतन मेवाड़, मारवाड़, जयपुर आदि क्षेत्रों में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की। छत्तीसगढ़ का जनादेश सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने माना है कि इतने व्यापक ‘अंडर करंट’ का एहसास भाजपा को भी नहीं था। बहरहाल छत्तीसगढ़ में सत्ता-परिवर्तन हो रहा है और भाजपा की सरकार बनना लगभग तय है। यह लिखने तक मुख्यमंत्री बघेल और उनके अधिकतर मंत्री चुनाव हार रहे थे। भाजपा को 50 से अधिक सीटें मिल रही हैं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 46 है। 2018 के जनादेश की तुलना में कांग्रेस ‘आधी’ से भी कम हो गई है। यह बेहद गंभीर पराजय है। जनता के इस मूड को कोई भी ‘एग्जिट पोल’ और विश्लेषण भांप नहीं पाया। देश में सबसे ज्यादा आदिवासी छत्तीसगढ़ में रहते हैं और मप्र में इनकी 21 फीसदी आबादी है। दोनों ही राज्यों में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की है। मप्र और राजस्थान के जनादेश इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि वहां लोकसभा की क्रमश: 29 और 25 सीटें हैं। जनादेश से स्पष्ट है कि 2024 के आम चुनाव की लहर भाजपा के पक्ष में बह रही है। मप्र में बीते 18 साल से भाजपा सत्तारूढ़ है। उसके बावजूद दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 60,000 से अधिक वोट से आगे थे। जनादेश से दो निष्कर्ष बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक तो सत्ता-विरोधी लहर नहीं थी। दूसरे, जनता भाजपा सरकार की योजनाओं और उनके क्रियान्वयन को लेकर आश्वस्त है। राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ में करीब 50 फीसदी महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया। कमोबेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की 1.31 करोड़ ‘लाडली बहनों’ ने ऐसा जनादेश देकर स्पष्ट कर दिया है कि अब जनाधार किस दिशा में काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने विभिन्न योजनाओं के जरिए जो ‘लाभार्थी समूह’ तैयार किया है, वह भी पूरी तरह भाजपा के पक्ष में वोट कर रहा है। बहरहाल कांग्रेस के लिए एकमात्र राजनीतिक हासिल यह रहा है कि तेलंगाना में उसकी सरकार बन रही है। वहां चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी ‘बीआरएस’ 10 साल की सत्ता के बाद विदाई लेंगे। जनादेश वहां के मुसलमानों के नाम भी रहा, जिनके करीब 83 फीसदी मतदाताओं ने कांग्रेस को ही वोट दिए।