प्रकृति का कहर झेलता लिंडूर गांव

जिले के उच्च पदस्थ सेवानिवृत्त व सेवारत अधिकारीगण, कार्मिक तथा सामान्य जन इस गांव के लोगों के साथ मानसिक व भावात्मक रूप से जुडक़र, उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। गांव के लोगों को आशा है, प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न इन दुश्वारियों से निजात पाने की उनकी उम्मीदें शीघ्र ही विश्वास में बदल जाएंगी। बहरहाल, सभी यही मानकर अपने आपको तसल्ली दे रहे हैं। समय-समय पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया लिंडूर गांव की स्थिति के बारे में खबरें छापते व दिखाते रहे हैं। इस गांव की समस्याओं का समाधान होना चाहिए…

आजकल हिमाचल प्रदेश का एक गांव प्रकृति की दुश्वारियों का सामना कर रहा है जहां लोग डर और भय में जी रहे हैं। इस गांव का नाम है लिंडूर। यह लाहुल-स्पीति जिला के लाहुल की पट्टन घाटी में स्थित है। यह गांव ऊंची ढलान पर बसा हुआ है। मुख्य सडक़ और जाहलमा गांव से काफी ऊंचाई पर स्थित है। प्रकृति ने इस गांव पर अपनी कुदृष्टि क्या डाली, कि इस गांव के लोग अपने भाग्य को कोसने लगे हैं। इस गांव में एक धार्मिक पूजा स्थल गोम्पा सहित कुल पंद्रह घर अथवा परिवार हैं। इनमें सात घर पुरानी शैली के बने हुए और अन्य नए व पक्के हैं। गांव की कुल आबादी 250 के लगभग है। दरअसल गांव के साथ लगते जाहलमा नाले का पानी इसी के किनारे से उतरता है। सर्दियों में भारी हिमपात के पश्चात जब गर्मियों में यह बर्फ पिघलना शुरू होती है, तो पानी इतना बढ़ जाता है कि नाले में प्रति वर्ष बाढ़ आ जाती है। लेकिन इस वर्ष यानी जुलाई 2023 में आई भयंकर बाढ़ ने तबाही मचा दी है। इससे पूर्व के वर्षों में बाढ़ आते रहने से नाले के किनारे की जमीन का धीरे-धीरे कटान होता रहा है।

धरती कटान का यह दायरा लगातार बढ़ता ही रहा। परंतु इस वर्ष की बाढ़ ने पहले से कटती-दरकती हुई जमीन के दायरे को इतना बढ़ा दिया, कि यह गांव के घरों तक आ पहुंचा है। ये दरारें लगभग 2.50 किलोमीटर के दायरे तक पड़ चुकी हैं। इन दरारों की चौड़ाई फीटों के हिसाब से है। ये दरारें लगातार चौड़ी होती जा रही हैं। कुदरत अपना नर्तन कर रहा है। और गांव के लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं। गांव पर आई यह प्राकृतिक आपदा गांव तथा इलाके के लोगों के लिए किसी भारी संकट से कम नहीं है। जिले के कुछ प्रबुद्ध, शिक्षित लोगों, सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स, कार्मिकों ने प्रकृति से उत्पन्न इस आपदा के निराकरण अथवा मुसीबत के निदान हेतु अपने स्तर पर उचित माध्यम से कार्रवाई करते हुए आईआईटी मंडी तथा भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसे तकनीकी संस्थानों से इसके कारणों को जानने तथा इसके निदान हेतु उन्हें गांव का दौरा, निरीक्षण करने का अनुरोध किया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए आईआईटी मंडी ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करवाने के पश्चात अपने चार शोध छात्रों को लिंडूर गांव की धरती में पड़ती दरारों, उसके धंसने और फटने के कारणों का पता लगाने के लिए भेजा। दो शोधार्थी 500 बीघे कृषि भूमि तथा गांव के घरों में पड़ी चौड़ी दरारों का परीक्षण, जायजा लेते रहे। दो शोधार्थी नाले के साथ लगते 10 किलोमीटर चारागाह वाले क्षेत्र तथा ग्लेशियर के मुहाने की ओर जायजा लेने गए। वो अपने साथ ड्रोन आदि लेकर आए थे ताकि सही-सही तस्वीर मिल सके। पूरे इलाके और चारागाह अथवा वन क्षेत्र का अध्ययन, परीक्षण करने के उपरांत उनका यह मानना है कि यह गांव और गांव का पूरा इलाका ठोस चट्टान के ऊपर नहीं, बल्कि सालों-साल आते रहे ग्लेशियर के मलबे के ऊपर टिका हुआ है। इसी प्रकार भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुख्यालय लखनऊ की पहल पर विभाग के चंडीगढ़ स्थित कार्यालय से दो भू-वैज्ञानिक लिंडूर गांव का नवंबर माह में दौरा करके वापस चंडीगढ़ जा चुके हैं।

उनकी प्रारंभिक व औपचारिक रिपोर्ट आना अभी बाकी है। लेकिन अनौपचारिक तौर पर उनका आकलन अथवा अनुमान है कि ग्लेशियर द्वारा लाए मलबा, या कच्ची मिट्टी होने के फलस्वरूप खेत, धरती, चरागाह, घरों में दरारें पड़ रही हैं। जमीन और पक्के-कच्चे सभी प्रकार के घरों में बड़ी-बड़ी दरारे पड़ चुकी हैं। गांव के लोगों का आग्रह है कि किसी सुरक्षित स्थान पर प्रीफेब्रिकेटेड (पूर्वनिर्मित ढांचे) हट्स बनाए जाएं, जहां लोग उनमें सुरक्षित रह सकें। भले ही थोड़े समय के लिए सही, गांव वालों को उनमें ठहराने की व्यवस्था हो सके। वैकल्पिक तौर पर उन्हें अन्यत्र जमीन (नौतोड़) आंवटित करते हुए उनका पुनर्वास किया जाए। प्रस्ताव पर सरकार की सहानुभूति और सहमति अपेक्षित है। चूंकि यह गांव ढलानदार जमीन पर बसा हुआ है, इसलिए इसका किसी भी समय नीचे की ओर खिसक जाना संभव है। सर्दियां आ गई हैं। अब बर्फ पड़ेगी। जब फरवरी-मार्च के दौरान बर्फ पिघलना शुरू होगी तो पिघले बर्फ का पानी जमीन और गांव, घरों में पड़ी दरारों में भरेगा। दरारें और चौड़ी होती जाएंगी, बल्कि भयावह हो जाएंगी। वैसे भी, भूकंप का अधिकांश केन्द्र हिमालय ही रहता है।

यदि यहां भूकंप आया, तो कुछ भी हितकर होना असंभव है। मामले से संबंधित जिले का प्रतिनिधि सदस्य, हाल ही में स्थानीय विधायक, संबंधित मंत्री, मुख्यमंत्री के ओएसडी तथा मुख्यमंत्री से 14-11-23 व 24-11-23 को शिमला जाकर, उन्हें स्थिति की भयावहता से अवगत करा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने इस बारे सकारात्मक रुख अपनाते हुए, हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया है। उन्होंने जिलाधीश को स्थिति पर परम अग्रता आधार पर ध्यान देने की सलाह दी है। विभिन्न संस्थानों व राज्य सरकार के आश्वासन पर यहां के निवासियों में फिलहाल कुछ आशाओं का संचरण हुआ है। जिले के उच्च पदस्थ सेवानिवृत्त व सेवारत अधिकारीगण, कार्मिक तथा सामान्य जन इस गांव के लोगों के साथ मानसिक व भावात्मक रूप से जुडक़र, उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। गांव के लोगों को आशा है, प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न इन दुश्वारियों से निजात पाने की उनकी उम्मीदें शीघ्र ही विश्वास में बदल जाएंगी। बहरहाल, सभी यही मानकर अपने आपको तसल्ली दे रहे हैं। समय-समय पर प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया लिंडूर गांव की स्थिति के बारे में खबरें छापते व दिखाते रहे हैं। इस गांव की समस्याओं का समाधान होना चाहिए।

शेर सिंह

साहित्यकार