शौर्य पर्यटन का स्मारक

पहली बार किसी गैर सरकारी संगठन ने अपने दायित्व की मचान पर दूर तक देखा, न•ार आया कि इस तरह चलें तो मंजिलें आसमान तक पहुंच जाएंगी। धर्मशाला युद्ध स्मारक की देखरेख और प्रबंधन कर रही युद्ध स्मारक विकास समिति ने इसके विस्तार को ‘अंतरराष्ट्रीय शौर्य पर्यटन’ का मक्का बनाने की ठान ली है। पिछले एक दशक में स्मारक में आए बदलाव व निखार अब ऐसे मुकाम को आवाज देने लगे हैं कि आने वाले समय में वीर योद्धाओं का यह प्रदेश, इस स्मारक की वजह से राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन जाएगा। सोसायटी ने बारह लाख खर्च करके एक ऐसा मास्टर प्लान बनाया है जिसके तहत पचास करोड़ की लागत से यह स्थल, पीढिय़ों के द्वारा पूजा जाता रहेगा। परियोजना का महत्त्व और उद्देश्य हिमाचल की शौर्य व बलिदान परंपरा को ही आगे नहीं बढ़ा रहा, बल्कि राष्ट्रीय संवेदना की मूर्त उपस्थिति को चिन्हित भी कर रहा है। कहना न होगा कि यह स्थल पहले भी किसी देवस्थल या राष्ट्रीय स्तंभ के रूप में अपनी पवित्रता, मर्यादा व परिकल्पना के कारण एक आदर्श लिए हर सैलानी को यहां राष्ट्रीय स्वाभिमान में तल्लीन पाता है। इसलिए स्मारक समिति ने आगामी परियोजना के संकल्प में प्रदेश की पृष्ठभूमि को अलंकृत किया है। खास बात यह है कि समिति इस स्थल को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर की शौर्य गाथा में एक पात्र की तरह परिमार्जित करना चाहती है। दूसरी ओर यह एक ऐसा संकल्प है जहां समाज, देश, देश के कारपोरेट जगत तथा हिमाचल को अपनी प्राथमिकताओं की छांव में ऐसी परियोजना को आगे बढ़ाना है।

ऐसे अनेक दायित्व हैं जिन्हें अगर समाज ओढ़ ले तथा सियासत से ऊपर उठकर समझा जाए, तो यह हमारे अस्तित्व, सभ्यता, शिष्टाचार और राष्ट्रीय आचरण के प्रतीक बन सकते हैं। विडंबना यह है कि हम जिस भौतिकवादी युग में प्रवेश कर चुके हैं, वहां घर की सफाई से भी अपने परिवेश को डरा रहे हैं। जाहिर है हर कार्य सरकार नहीं कर सकती और न ही हर कार्य सरकार को करना चाहिए, लेकिन समाज के कार्यों में अड़चनें न आएं, इस पर जरूर गौर करना चाहिए। इस परियोजना के कार्यान्वयन में भी प्रक्रिया की कई दरख्वास्तें और रास्ते लांघने पड़ेंगे। हमारा मानना है कि हिमाचल की किसी भी बड़ी परियोजना की बाड़बंदी के लिए सबसे पहले वन विभाग आगे आता है, फिर कुछ फसली पर्यावरणविद टर्राने लगते हैं। धर्मशाला युद्ध स्मारक के साथ समीपवर्ती वन भूमि का हस्तांतरण भी हो जाए, तो परियोजना का विस्तार आगामी सदी तक, अपने साथ ईको टूरिज्म की खूबियों के साथ निरंतर होता रहेगा, वरना कल ईंट-पत्थर और सीमेंट से सने सार्वजनिक हाथ आसपास की जमीन पर इमारतों के खंडहर खड़े कर देंगे। समिति को इस स्थल की पवित्रता के लिए ऐसे अधिकार मिलने चाहिए ताकि इसके सीमा क्षेत्र में कोई पोस्टर या होर्डिंग खड़ा न कर सके। युद्ध स्मारक के करीब ही राज्य युद्ध संग्रहालय भी अपनी अनुपम छवि के साथ शिरकत कर रहा है। बेहतर होगा परिसर की दीवारें आपस में एक समान लक्ष्य लेकर चलें, यानी राज्य युद्ध स्मारक एवं संग्रहालय एक ही तरह की प्रबंधकीय व्यवस्था के वृतांत में आगे बढ़ें। अगर हमें ‘शौर्य पर्यटन’ के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचना है, तो ऐसी गतिविधियां भी शुरू करनी होंगी जो सामाजिक भागीदारी और नागरिक समाज के दायित्व को पुख्ता कर सकें। शहीदों की याद में स्मारक का प्रत्येक पल आदरांजलि बन जाए, इसके लिए वर्ष में एक बार देश के चर्चित कलाकारों के साथ कम से कम एक सप्ताह का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाए। इसी के साथ हर दिन कुछ सेरेमनी आयोजित करने के नियम लागू हों। मसलन हर शाम तय समय पर शहीदों की याद में दीप प्रज्वलन समारोह का आयोजन प्रायोजित ढंग से किया जा सकता है। कोई भी नागरिक साल के एक दिन का व्यय वहन कर सकता है। इस तरह सैकड़ों लोग अगर दीप प्रज्वलन समारोह के लिए एक दिन की सुनिश्चित राशि अदा करके आदरांजलि दें, तो यह परंपरा मनोरंजन के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति कत्र्तव्य और शहीदों के प्रति बड़ा सम्मान होगी। इसी के साथ राष्ट्रीय व सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों के विशेष आयोजन भी इस स्थल पर प्रायोजित हो सकते हैं।