अक्षत के बिना पूजा अधूरी

हिंदू धर्म में चावल यानी अक्षत का विशेष महत्व है। देवी-देवताओं को पूजा में अक्षत चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जो आज तक निरंतर चली आ रही है। माना जाता है कि अक्षत के बिना की गई पूजा अधूरी होती है। अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। शास्त्रों में अन्न और हवन का विशेष महत्व माना जाता है। हिंदू पुराणों में पूजा के समय चावल या अक्षत चढ़ाने का उल्लेख मिलता है, जिसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि अन्न से हुए हवन से भगवान संतुष्ट होते हैं। वहीं यह भी माना जाता है कि भगवान को अन्न अर्पित करने से पितृ भी तृप्त हो जाते हैं। वहीं भगवान को हमेशा ऐसे अक्षत समर्पित किए जाते हैं जो खंडित न हो।

शुद्ध अन्न है अक्षत

हिंदू धर्म में पूजा के दौरान चावल चढ़ाने का विशेष महत्व होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना, जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है। चावल यानी अक्षत को शुद्ध अनाज माना जाता है। इसके पीछे का कारण यह है कि चावल धान के अंदर बंद होता है, जिसे पशु-पक्षी झूठा नहीं कर पाते। एक और मान्यता यह भी है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी, उस समय लोग भगवान को अक्षत अर्पित करते थे।

ईश्वर को संतुष्ट करने का साधन

शास्त्रों में अन्न को ईश्वर को संतुष्ट करने का मुख्य साधन बताया गया है। सबसे ज्यादा शद्ध और पवित्र होने की वजह से अक्षत भगवान को अर्पित किया जाता है। कहते हैं अक्षत ईश्वर को संतुष्ट करता है।