रोजगार के आदर्श बदलें

बेरोजगारी की चीखों के बीच नीतियों का इंतखाब करना भी मुश्किल हो गया है। सरकार गेस्ट टीचर के लिए स्कूलों के गेट नहीं खोल पाई तो इसलिए कि इस नीति की घोषणा ने युवाओं के सुर बिगाड़ दिए। कुछ इसी तरह जेओए-817 की परीक्षा पर तरस खाने का मुद्दा भी रहा। जिस परीक्षा प्रणाली के भ्रष्ट तंत्र ने हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को उखाड़ फेंका, उसी के तहत हुई जेओए परीक्षा को बचाने का प्रयास जारी है। ये परीक्षार्थी अब फरियादी हैं, तो सरकार की अदालत बदल रही है। जाहिर है बेरोजगारी की चीखों की सत्ता अनदेखी नहीं कर सकती, लेकिन मंत्रिमंडल के बीच नैतिकता का विभाजन स्पष्ट रहा। अब मुख्यमंत्री जेओए परीक्षा को तमाम संशय से दूर रखते हुए नौकरी के आवरण से ढांपना चाहते हैं। बहरहाल मसला सरकारी नौकरी को लेकर पुन: खिदमत कर रहा है, तो आंसू पोंछने के लिए मुख्यमंत्री के मुलायम हाथ स्पर्श कर रहे हैं। रोजगार के बाजार में सरकार की आस्था सदा बदलती रही है और यही वर्र्तमान सरकार की परीक्षा और गारंटी है। एक लाख नौकरियों की बिसात पर अब कुछ ऐसे ही टोटके काम आएंगे। जाहिर है जेओए परीक्षा अगर बरी हो जाए, तो सरकारी रोजगार के आंकड़े कुछ तो काम आएंगे। नौकरी और रोजगार के अवसर पैदा करने का अंतर आज तक हिमाचल की नीतियों को समझ नहीं आया। हालांकि स्टार्टअप के जरिए वर्तमान सरकार की ग्रीन नीति रोजगार के अवसर सृजित करने को तत्पर है या पर्यटन के जरिए सरकार रोजगार को स्वरोजगार का पुष्पगुच्छ सौंपना चाहती है, लेकिन एक कहानी निवेशक की भी है। बीबीएन जैसे हिमाचल के सबसे बड़े औद्योगिक केंद्र से अगर कुछ उद्योग पलायन करने का सोच रहे हैं, तो यह रोजगार के बिंदुओं पर भी हताशापूर्ण वातावरण है।

आश्चर्य यह है कि प्रदेश की राजनीति और नेताओं के वक्तव्य केवल सरकारी नौकरी की बात करते हैं, जबकि रोजगार की संभावना के अन्य क्षेत्र खामोश हैं। सरकार गांव के द्वार भी ऐसी ही घोषणाएं चुन रही है, जहां साधारण कालेज को स्नातकोत्तर बनाने की उपलब्धि गिनी जा रही है। हमें लगता है जिस दिन हमारे मंत्री-मुख्यमंत्री युवाओं के प्रयास से शुरू हो रहे व्यवसायों, शोरूमों, बस-टैक्सी संचालन या पर्यटन इकाइयों का आगे बढक़र शुभारंभ करेंगे, हिमाचल के आदर्श और उदाहरण बदल जाएंगे। हम स्कूलों-कालेजों के वार्षिक समारोहों में नेताओं को बुलाकर बच्चों के मन में सियासी प्रभाव का आभामंडन कर रहे हैं, जबकि होना यह चाहिए कि वहां निजी क्षेत्र के सफल व्यावसायियों, युवाओं, डाक्टरों तथा नामी व्यक्तियों को बुलाकर रोजगार की क्षमता की नई पैरवी शुरू की जाए। आश्चर्य यह कि सरकारें शिक्षा के घुंघरू पहनकर नाच रही हैं, जबकि हमारे परिसर नाकाबिल हो चुके हैं। प्रदेश के तीन सामान्य विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त केंद्रीय यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में ऐसा क्या है कि राष्ट्रीय स्तर के मानव संसाधन पैदा नहीं हो रहे। प्रदेश में तीन दर्जन कालेज एवं विश्वविद्यालय एमबीए के पाठ्यक्रम का मुखौटा पहने उच्च शिक्षा का उच्चारण कर रहे हैं, लेकिन डिग्रियां बेरोजगारी की मुजरिम बन गईं। इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग को लेकर ही अगर बीबीएन में एक राज्यस्तरीय संस्थान पैदा करते, तो काम करने का कोड बदल जाता।

अभी हाल ही में मुख्यमंत्री ने फिल्म शूटिंग को सरल बनाने के लिए एक वांछित घोषणा करके सिने पर्यटन के उद्गम को टटोला है। अगर हिमाचल सिनेमा उद्योग से पींगें बढ़ा ले। गरली-परागपुर में फिल्म सिटी की अवधारणा में अधोसंरचना तथा एक राज्य स्तरीय फिल्म एवं टीवी प्रशिक्षण कालेज शुरू कर दे, तो रोजगार से रेवेन्यू के उद्गार निकलेंगे। हिमाचल की प्रतिभा से निकल रहे स्वरोजगार की पहचान की जाए तथा इसे उचित अवसर दिए जाएं तो रोजगार के मायने बदलेंगे। इसके लिए प्रदेश के सांस्कृतिक, धार्मिक तथा मेलों को सर्वप्रथम एक मेला विकास प्राधिकरण के तहत लाना होगा। रोजगार को सरकारी नौकरी से हटाकर अगर परिभाषित नहीं किया गया, तो यूं ही रोजगार के उपनाम बदलकर ‘गेस्ट फैकल्टी’ जैसे मुहावरों पर शक रहेगा। रोजगार के अवसर बढ़ाने के फलक पर प्रोत्साहन बढ़ा कर सरकार को नौकरी की पुरानी मान्यताएं तोडऩी होंगी।