बड़े विजन के रंग निर्देशक थे डा. कैलाश

वह अपने जेहन में पहले ही तय कर लेते थे कि क्या और कैसे करना है। वह सबकी बात सुनते थे…

खालिद शरीफ ने कहा है, ‘ बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई। इक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।’ 20 जनवरी 2024 की सुबह 5 बजे डा. कैलाश आहलूवालिया साहित्य और रंगमंच की दुनिया को वीरान करके चले गए। हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और बॉम्बे तक उनके देहावसान की खबर से सन्नाटा पसर गया। शोकग्रस्त नामी गिरामी दोस्तों, रंगमंच, फिल्म और लेखकों की हस्तियों को जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। उत्तरायण काल में उन्होंने नश्वर देह का त्याग कर दिया और हंस अकेला अनंत उड़ान भर गया था। 30 जनवरी 1937 को डा। कैलाश का जन्म कांगड़ा जिले के डुहक गांव में हुआ था। बचपन के दौरान उनका गांव विकास की बलिवेदी पर चढ़ा दिया गया था। पौंग बांध के निर्माण में उनका गांव भी अधिग्रहण की चपेट में आया और देखते ही देखते उनका गांव पौंग बांध में समा गया। विस्थापन की इस टीस को उनकी अंग्रेजी में लिखी एक पुस्तक ‘बैरेज आफ मेमोरीज’ ( एन आटोबायोग्राफी आफ पौंग डैम आउस्टीज) और अन्य रचनाओं यथा कहानियों व कविताओं में देखी जा सकती है। एक बार उन्होंने जिक्र किया कि जब पौंग बांध बना और उनका गांव जलमग्न हुआ तब ऐसा लगा कि गांव डूबा ही नहीं, पर जितना पानी भर गया उतना तो हमारी आंखों से बह गया था। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरान्त उनका परिवार चंडीगढ़ आ गया था। पढ़ाई के साथ तरुण कैलाश ने चंडीगढ़ के साहित्यिक सांस्कृतिक माहौल में दस्तक देनी शुरू कर दी थी। 1954 में पहली बार चंडीगढ़ में ‘कोणार्क’ नाटक खेला गया था जिसका निर्देशन डा. वीरेंद्र मेहदीरत्ता ने किया और और नायक विश्व की भूमिका डा. कैलाश ने निभाई थी। इस तरह उनको चंडीगढ़ हिंदी रंगमंच का प्रथम नायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। नाटककार मोहन राकेश, रंग समीक्षक और कथाकार वीरेंद्र मेहदीरत्ता और अतुलवीर अरोड़ा जैसे साथियों के साथ खूब बैठकें जमती थी। बाद में युवा कैलाश को जब हिमाचल में अध्यापन का कार्य मिला तो अपनी रंगमंचीय लेखकीय अभिरुचियों के चलते मधुर व्यवहार से हिमाचल के साहित्यिक माहौल को और रंगमंच को उन्होंने 35 वर्ष से अधिक समय देकर खाद-पानी दिया। अध्यापन के अतिरिक्त उन्होंने हिमाचल के यूनिवर्सिटी और कॉलेज रंगमंच की दशा और दिशा संवारने में अन्यतम योगदान दिया। उनके संवारे रंगकर्मियों में अनुपम खेर, विजय कश्यप, जवाहर कौल, देवेंद्र गुप्ता, ओमपाल, जॉली (अश्वनी सूद), जावेद आदि के अतिरिक्त और भी रंगकर्मी ऊंचे मुकाम पर पहुंच गए हैं।

मुझे भी उनके निर्देशन में कई नाटकों में अभिनय का मौका मिला था। वह मृदु भाषी और आहिस्ता से बोलने वाले प्राणी थे और बड़े ध्यानपूर्वक सुनना पड़ता था। वर्ष 1995 में हिमाचल प्रदेश क्रिएटिव राइटर्स फोरम ने उनके योगदान पर बचत भवन में एक भव्य समारोह का आयोजन करवाया जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कर रहे थे। कार्यक्रम में थोड़ा विलम्ब हो गया था। डा. कैलाश को सम्मानित करने के उपरांत जब डा. साहेब बैठने लगे तो सीएम साहेब से आशीर्वचन देने का अनुरोध आयोजकों ने किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज तो मैं डा. कैलाश आहलूवालिया से ही मिलने और उनको सुनने आया हूं। आज आप बोलेंगे। डा. कैलाश के ओजस्वी लेखकीय वक्तव्य सुनने के उपरात वीरभद्र जी इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा कि क्या ही अच्छा होता डा. कैलाश सेवानिवृत्ति के उपरान्त शिमला में बस जाते। इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता था। हमारे जमाने में शिमला कालेज में उनके तीन सहकर्मियों- प्रोफेसर अनिल विल्सन, डा. कमल अवस्थी और प्रोफेसर सुनील शर्मा और डा. कैलाश आहलूवालिया साहित्य संस्कृति जगत में ‘गैंग ऑफ फोर’ के नाम से जाना जाता था। यूथ फेस्टिवल्स और अन्य प्रतियोगिताओं के लिए चारों मिल कर तैयारी करते. ताकि ड्रामा के निर्देशक डा. कैलाश चन्द्र अगर किसी काम से उपलब्ध नहीं तो रिहर्सल कार्य निर्बाध चलता रहे। डा. कैलाश बड़े विजन के डायरेक्टर थे। वो अपने जेहन में पहले ही तय कर लेते थे कि क्या और कैसे करना है। सबकी सुनते थे? यदि कोई सुझाव उनकी निर्देशकीय परिकल्पना/स्कीम में फिट बैठता तो उसको यथोचित महत्त्व देते थे। कैसे और क्या करना है, के उपरान्त क्यों करना है, के लिए उसकी व्याख्या से वह तरुण अभिनेता को समझाते, फिर अभिनय के लिए खुला छोड़ देते थे। यही कारण था कि उनके निर्देशित नाटक यूथ फेस्टिवल्स में अव्वल आते थे। डा. कैलाश अभिनेता रंग निर्देशक होने के साथ साथ कवि, कहानीकार, आलोचक और संस्मरणकार भी रहे। बहुविध प्रतिभा के स्वामी डा. कैलाश आहलूवालिया अंग्रेजी भाषा में भी समान अधिकार से लिखा करते थे। भारतीय इंग्लिश लेखकों की श्रेणी में भी उनका सम्मानजनक स्थान था। अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ने सबका ध्यान आकृष्ट किया।

उनकी कहानियां, कविताएं और पुस्तक समीक्षाएं देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में समय समय पर छपती रही और काव्य तथा कथा संग्रहों से भी हिंदी का साहित्य संसार समृद्ध हुआ। यह दीगर है कि विस्थापन का चित्रण होने के कारण कुछ हिंदी आलोचकों ने उनको छोटा/बौना करने का कुत्सित प्रयास भी किया। वह कहते थे कि यही वो लोग हैं जो आपको और भी ज्यादा अच्छा लिखने की ऊर्जा प्रदान करते हैं। देवेन्द्र जी आपको भी ऐसे लोगों की पहचान कर लेना सीखना चाहिए। लेकिन आज मैं स्पष्ट कहना चाहता हूं कि कैलाश चन्द्र की कहानियों में गांव असली रूप में सामने आता है। मात्र नोस्टाल्जिया बन कर नहीं। देहात में हो रहे नित नए बदलाव को उन्होंने महसूस करते हुए नया कथावृत रचने में सफलता प्राप्त की है। तलछट्टी में लेटी झील, ओ अबाबील, कांच घर की मछली, पानी आ गया, खिलती धूप में बारिश आदि पुस्तकों ने उनके रचना संसार को समृद्ध किया है। उनकी रचनाशीलता पर चंडीगढ़ अकादमी ने रीडर्स एंड रायटर्स ऑफ इंडिया तथा अनेक साहित्यिक सांस्कृतिक एवं रंग संस्थाओं ने डा. कैलाश को सम्मानित कर अपने सम्मान में भी चार चांद लगाए। सोलन शहर में आयोजित होने वाले वार्षिक रंगायोजन फिल्फोट उनके मार्गदर्शन के बिना अधूरा रहता, यदि वह सक्रिय योगदान न देते। 1976 से 1983 तक मेरा उनसे गुरु और शिष्य का सम्बन्ध था। इस दौरान उनके साथ कई प्लेज खेले। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और अभिनय की बारीकियां सीखी। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रंगमंच की दुनिया उन्हें याद करती रहेगी।

डा. देवेंद्र गुप्ता

स्वतंत्र लेखक