सौभाग्यशाली हूं कि राम मंदिर बनाने में योगदान दे पाया; राम मंदिर को लेकर क्या सोचते हैं शांता, जानें यहां

अयोध्या में 22 दिसंबर को होने वाली श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश ही नहीं, दुनिया भर के रामभक्तों में खास उत्साह देखा जा रहा है। राम मंदिर आंदोलन की रूपरेखा आज से 34 साल पहले पालमपुर में रखी गई थी। पालमपुर पूर्व मुख्यमंत्री एवं दिग्गज भाजपा नेता शांता कुमार का होमटाउन है। राम मंदिर को लेकर क्या सोचते हैं शांता कुमार, इस सवाल का जवाब जानने के लिए ‘दिव्य हिमाचल’ के धर्मशाला ब्यूरो प्रभारी पवन कुमार शर्मा ने उनसे विशेष बातचीत की। पेश है वार्ता के मुख्य अंश…

दिव्य हिमाचल : क्या आपको लगता है कि कांगड़ा सियासत के नक्शे पर गौण हो रहा है। क्या नेता कांगड़ा की आवाज नहीं उठा पा रहे हैं।
शांता कुमार : हां, यह बात बिलकुल सच है। कांगड़ा के नेता एकजुट नहीं है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के 30 करोड़ जमा न करवा पाने के लिए सीधे तौर पर कांगड़ा का नेतृत्व दोषी है। कांगड़ा दुर्भाग्य से लावारिस हो गया है। यह बात नेताओं को सोचनी होगी। सभी को मिलकर कांगड़ा के मु्ददों पर आवाज उठानी चाहिए।

दिव्य हिमाचल : सबसे पहले आपको राम मंदिर बनने की हार्दिक बधाई।

शांता कुमार : मुझे ही नहीं, पूरे भारत वर्ष के लिए यह गौरव के पल हैं।

दिहि : प्रदेश की मौजूदा राजनीति का जो चेहरा सामने आ रहा है उसे प्रदेश कितने गर्त में जा रहा है और क्या लगता है और कितने गर्त में जाएगा।

शांता कुमार : मैंने पहले कहा कि राजनीति केवल सत्ता के लिए हो गई है, जबकि राजनीति समाज के लिए होनी चाहिए, मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा परिदृश्य में ऐसा कम देखने को मिल रहा है, जो बेहद चिंताजनक है। इसमें सुधार कैसे होगा, यह कहना बहुत कठिन है। कुल मिलाकर आज की सत्ता कुर्सी तक ही सीमित रह गई है। इसमें सुधार कैसे होगा, यह सोचने का विषय है।

दिहि : हिमाचल प्रदेश की जो आर्थिक स्थिति है और सरकारों द्वारा काम करने का जो तरीका है, उससे क्या कभी हिमाचल आत्मनिर्भर बन पाएगा। आप प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या पांच सुझाव देंगे?

शांता कुमार : बेशक हिमाचल आत्मनिर्भर बन सकता है, लेकिन जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि हिमाचल गरीब राज्य है। इसलिए सत्तासीन सरकार को कामकाज में सादगी लाते हुए अनावश्यक खर्चों में कटौती कर बचत पर फोकस करना चाहिए। जब हमारी सरकार सत्ता में आई थी, तो हमने अनावश्यक खर्चों पर रोक लगाकर 50 करोड़ रुपए की बचत एक साल में की थी। जब मुझे मेरे टेबल पर तीन टेलिफोन दिखे, तो मन में ख्याल आया कि तीन की जगह दो से भी काम चल सकता है। इसलिए तुरंत एक फोन बंद करवा दिया और ऐसा लगभग सभी विभागों में किया गया। हमने निर्णय लिया कि लैटर पैड व टिकट का खर्चा बचाने के लिए क्यों न पोस्ट कार्ड का उपयोग किया जाए। हमने सीएम के साथ चलने वाले काफिले को भी कम कर दिया था। सरकारी गाडिय़ां शुक्रवार को अपने अपने ऑफिसों में खड़ी हो जाती थीं। छुट्टी वाले दिन सरकारी गाडिय़ां सडक़ पर नहीं दिखती थीं। ऐसी छोटी छोटी बातों से बड़ी बचत हुई। मुझे खुशी है कि मैने जब सत्ता छोड़ी, तो प्रदेश पर एक पैसे का कर्ज नहीं था।

दिव्य हिमाचल : पालमपुर में राम मंदिर के प्रस्ताव से लेकर मंदिर निर्माण तक आप व्यक्तिगत रूप से जुड़े रहे। आपकी भागीदारी क्या रही और आगे कहां तक देखते हैं?

शांता कुमार : (मुस्कराते हुए) यह सौभाग्य की बात है कि राम मंदिर बनाने के लिए 500 वर्षों से प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन पालमपुर में आखिरी सफल प्रयास हुआ। हालांकि पूरे देश में विश्व हिंदू परिषद ने जन जागरण किया था, लेकिन जब तक राजनीतिक तौर पर कोई इसका नेतृत्व नहीं करता था, तब तक यह काम थोड़ा मुश्किल था। इसलिए 34 वर्ष पहले भाजपा ने इसका बीड़ा उठाया और उसकी शुरुआत पालमपुर से की गई। उस समय मैं भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष था और सारी व्यवस्था करने का मुझे मौका मिला। मैं अपने आप को बहुत सौभाग्यशाली समझता हूं कि प्रभु राम का मंदिर बनाने में मैं भी अपना योगदान दे सका।

दिव्य हिमाचल : आपने जहां से राजनीति की शुरुआत की, जिस संकल्प के साथ सियासत का आगाज किया था, क्या मौजूदा परिदृश्य में उसके कुछ अंश बाकी हैं या राजनीति पूरी तरह से बदल गई है?

शांता कुमार : यह सच है कि आज की सियासत में काफी कुछ बदल गया है। गुलाम भारत के समय राजनीति समाज सेवा के लिए थी, जबकि आजाद भारत की राजनीति कुर्सी के लिए अधिक हो गई है। वाजपेयी कहते थे, हम सत्ता के लिए नहीं समाज बदलने के लिए आए हैं, क्योंकि दल बदल या खरीद फरोख्त से सरकार तो बनाई जा सकती है, लेकिन समाज को नहीं बदला जा सकता है। जहां तक भाजपा की बात है तो अभी भी भाजपा कुछ हद तक मूल्य आधारित राजनीति कर रही है, लेकिन कभी कभार हमारी पार्टी भी समझौते कर लेती है, तो मन में बहुत पीड़ा होती है।

दिव्य हिमाचल : कांगड़ा के हितैषी होने के लिए क्या आप वीरभद्र सिंह को श्रेय देंगे। कांगड़ा में विधानसभा भवन बनाने की बात हो, शीतकालीन सत्र शुरू करने की बात हो या अन्य जनहित के निर्णय हों, वीरभद्र जैसा कोई और कांगड़ा हितैषी हो सकता है?

शांता कुमार : मैं उन्हें याद तो करता हूं, तो परंतु विधानसभा भवन के लिए नहीं। मैं इस बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूं। क्योंकि करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद कुछ दिनों के लिए ही सत्र होता है, जो कि पैसों की बड़ी फिजूलखर्ची है। विधानसभा भवन को बनाने के पीछे यह कहा जाता है कि प्रदेश के लोग शिमला नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए धर्मशाला में भवन का निर्माण किया गया, लेकिन यह बेमानी सा है। क्योंकि देश की राजधानी दिल्ली से चलती है, तो साउथ वाले भी वहां पहुंच जाते हैं तो कांगड़ा के लिए शिमला कितना दूर है।

दिव्य हिमाचल : धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहले चार धाम की योजना बनी। उसके बाद बनारस और अब अयोध्या। ऐसे ही क्या हिमाचल को भी धार्मिक पर्यटन में महत्त्व मिलेगा? क्या केंद्र से किसी बड़े पैकेज की मांग नहीं होनी चाहिए?

शांता कुमार : हां, हर सूरत में ऐसी पहल होनी चाहिए। हिमाचल भी स्विटजरलैंड से कम नहीं है। ईमानदारी से प्रयास किए जाएं, तो पर्यटन हिमाचल का बहुत बड़ा उद्योग हो सकता है। उसमें धार्मिक पर्यटन ऐतिहासिक पर्यटन हो सकता है। सरकार ने कांगड़ा को पर्यटन राजधानी बनाने की पहल की है, जो सराहनीय है, पर इसमें और अधिक प्रयास करने की आवयश्यकता है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मंडी के पूर्व सांसद राम स्वरूप शर्मा ने छोटी काशी मंडी के लिए शिव धाम बनाने की शुरुआत की थी, उसे आगे बढ़ाना चाहिए। वर्तमान सरकार पर्यटन को लेकर काम तो कर रही है, लेकिन जिस तरह से स्पीडअप होना चाहिए, वैसा नहीं हो पा रहा है। इसे गति देने की जरूरत है।

दिहि : वर्तमान मुख्यमंत्री कांगड़ा के कितने हितैषी हैं? सीयू के 30 करोड़ न देने के पीछे सरकार का क्या हित हो सकता है?

शांता कुमार : (तल्ख लहजे में) हितैषी होने का इसी से पता चलता है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के 30 करोड़ भी जमा नहीं करवाए जा रहे हैं। अगर देहरा में कैंपस का निर्णय किया जा सकता है, तो धर्मशाला में क्यों नहीं। सच में कांगड़ा लावारिस हो गया है। 30 करोड़ क्यों जमा नहीं करवाए जा रहे हैं, इसके पीछे क्या मंशा है, इस पर कयास लगाना संभाव नहीं है, लेकिन जिस तरह से अनदेखी हो रही है उससे एक बात साफ है कि कांगड़ा को दरकिनार किया जा रहा है। शिक्षा जैसे मसले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार को नेता अपने घर की तरह समझें। रेबडियां बांटने का काम नेता बंद करें।

दिहि : वर्तमान सरकार के मंत्रिमंडल में कांगड़ा को दो ही स्थान मिले हैं। क्या क्षेत्रीय संतुलन के लिए यह सही है ?

शांता कुमार : कांगड़ा से मंत्री दो हों या ज्यादा इससे फर्क नहीं पड़ता। इस वक्त सबसे बड़ी जरूरत यह है कि प्रदेश सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालय के 30 करोड़ रुपए जमा करवाए। कांगड़ा का हक रुकना नहीं चाहिए।

दिहि : कांगड़ा एयरपोर्ट के विस्तार पर क्या कहेंगे? यह कितना आवश्यक है?

शांता कुमार : पर्यटन को बढ़ाना है, तो एयरपोर्ट का विस्तार बहुत जरूरी है। दलाईलामा का मैं आभारी हूं कि उनके यहां आने से यहां के पर्यटन को भी नई दिशा मिली। क्योंकि दलाईलामा से मिलने के लिए दुनिया भर के अनुयायी आते हैं। इसलिए कांगड़ा एयरपोर्ट पर्यटन विकास के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन यहां से विस्थापित होने वाले लोगों के लिए एक सुनियोजित नगर भी बसाना चाहिए।