मक्रर संक्रांति का महत्त्व

श्रीश्री रवि शंकर

भारत में यह फसल पकने का मौसम है। यह मौसम किसानों के परिश्रम का लाभ मिलने का समय होता है और हम ऋतु की पहली फसल को सभी के साथ बांट कर उत्सव मनाते हैं। प्राचीन समय में यह अनुष्ठान था कि जब लोग पहले गन्ने की कटाई करते थे अथवा धान की पहली बोरी की कटाई करते थे, तो इसे समाज में सभी लोगों के साथ साझा करते थे। संक्रांति ईश्वरीय विधान और मनुष्य के रूप में हमारे दायित्व की याद दिलाती है कि हमारे पास जो कुछ है उसे साझा करें। साझा करने की संस्कृति, संक्रांति का सबसे सुंदर तत्व है और इसे केवल वस्तु या फसल तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। यह उस असीम उदारता की याद दिलाती है जो परमात्मा हर समय हम पर बरसा रहा है। इस पर्व पर हमें स्वयं को, कम भाग्यशाली लोगों के साथ मिल-बांटने और दूसरों के कल्याण के लिए पुन:प्रतिबद्ध करना चाहिए। भारतीय पर्वों के विषय में उत्तम बात यह है कि इन पर्वों पर किए जाने वाले अनुष्ठानों और रीतियों के पीछे गहरा ज्ञान निहित होता है। प्रत्येक पर्व उन सभी दिव्य गुणों को पहचानने और सम्मान करने का एक अवसर है जो मनुष्य को प्राप्त है।

मकर संक्रांति पर तिल के साथ गुड़ बांटना एक प्रचलित अनुष्ठान है। क्या आप इस प्रथा का महत्त्व जानते हंै? तिल ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि में मानव अस्तित्व के सबसे छोटे पहलू को दर्शाता है और गुड़ मिठास का प्रतिनिधित्व करता है। जब हम किसी को तिल और गुड़ देते हैं, तो हम कामना करते हैं कि व्यक्ति विनम्र, प्रसन्न, मधुर और अहंकाररहित रहे। संक्रांति वह समय है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कौन हैं। क्या हम बिलकुल तिल के समान नहीं हैं? इस सृष्टि में हमारा क्या महत्त्व है और हम कब तक यहां रहेंगे? इस विशाल सृष्टि में हमारा जीवन क्या है, केवल एक छोटे से तिल के बीज की तरह, लगभग कुछ भी नहीं, बस एक कण मात्र! देखा जाए तो तिल बाहर से काला होता है, लेकिन भीतर से श्वेत होता है, जो हमें आंतरिक पवित्रता बनाए रखने की याद दिलाता है और थोड़ा सा रगडऩे से ही तिल बाहर से भी सफेद हो जाता है। हमें बस नकारात्मकता और तनाव के इन बाहरी आवरणों को गिराना है और तब हम पाएंगे कि हर कोई शुद्ध है। हम लघु और मृदु हैं, तिल की तरह विनम्र हैं और गुड़ की तरह मीठे हैं। जिस क्षण अहंकार या भ्रम होता है कि ‘मैं कुछ हूं’ या ‘मैं शक्तिशाली हूं’ पतन शुरू हो जाता है। यह एक अनुभवजन्य सत्य है। हम बहुत से लोगों के जीवन में ऐसा होते हुए देखते हैं। इसे पहचानना और स्वयं को इन हानिकारक अनुभवों से बचाना आध्यात्मिक ज्ञान के सार में से एक है। वर्ष भर की बारह संक्रांतियों में से मकर संक्रांति को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे तब मनाया जाता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।

यह सर्दियों की भीषणता के बाद प्रचुर धूप की शुरुआत का प्रतीक है। यह शीतकाल की कठोरता है, जो वसंत के आह्लाद को महिमामंडित करती है। जीवन में विरोधी मूल्य भले ही विपरीत लगते हों लेकिन वे एक-दूसरे के पूरक होते हैं। इसी प्रकार जीवन में भी आप किसी भी स्थिति को दो दृष्टिकोण से देख सकते हैं। यह सीखना है कि इसका महिमामंडन कैसे किया जाता है। विपरीत परिस्थितियां आपके भीतर के गुणों की श्रेष्ठता को व्यक्त करती हैं और उन्हें खिलने में सहायता करती हैं। जब कहीं कोई बुराई होती है तभी अच्छाई निखर कर सामने आती है। जब सब कुछ सुखद हो तब भी अच्छाई का मूल्य होता है, लेकिन यह उन स्थितियों में और अधिक चमकती है जब चीजें इतनी अनुकूल नहीं होती हैं। जब परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो आपकी करुणा, धैर्य, सहनशक्ति और प्रेम का महत्त्व है।