जदरांगल में शिक्षा का पानीपत

इस हमाम में सब नंगे हैं-क्या भाजपा, क्या कांग्रेस। अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के जदरांगल परिसर का संताप वही भाजपा कर रही है, जो इसकी कतरब्यौंत की जिम्मेदार है। नाखून सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालय के मुद्दे पर नहीं चढ़े, बल्कि हिमाचल में हर सत्ता की टोह में कुर्बानियां यूं ही लिखी जाती हैं, वरना जिस धर्मशाला में ब्रिटिश विरासत के तहत आजादी के पहले से ही शिक्षा व चिकित्सा के सबसे अव्वल मुकाम लिखे गए, उससे यह साजिश न होती। पहला दौर चिकित्सा का आया और यहां की तत्कालीन विधायक चंद्रेश कुमारी से मेडिकल कालेज की नींव छीन कर जीएस बाली टांडा ले गए। प्रदेश के बड़े अस्पतालों में शुमार अस्पताल, जो कभी चंबा, ऊना व हमीरपुर के मरीजों को उपचार देता था, उसे धर्मशाला से बाकायदा छीना गया। इसके बाद वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय विश्वविद्यालय की सौगात को धर्मशाला में चिन्हित किया, तो धूमल सरकार ने सियासी वास्तुकला के तहत इसका बोरिया बिस्तर समेटा और इस अजूबे को अंजाम देने के लिए तत्कालीन धर्मशाला के विधायक किशन कपूर ने संकल्प लिया कि इस तरह के संस्थान योग्य यह विधानसभा क्षेत्र नहीं है। यह पहला संस्थान था जिसे सियासत की हांडी में खिचड़ी की तरह उबाला जा रहा है। ऐसा वातावरण तैयार किया गया कि धर्मशाला की जमीन को अभिशप्त किया जाए और कारिंदे बदलते गए। तत्कालीन मंत्री रविंद्र सिंह रवि ने सर्वप्रथम धर्मशाला की जमीन को खड्डों-नालों और भूकंप की जननी बता कर यहां की जनता का अपमान किया, तो यह तोहमत वर्तमान सरकार की चुप्पी तक पसर रही है। जिस स्थान में हिमाचल के सबसे बड़े और विश्व के अनूठे क्रिकेट स्टेडियम में पच्चीस हजार लोगों का जमावड़ा कोई हाय तौबा नहीं करता, उसी के बगल में जदरांगल सीयू की प्रस्तावित जमीन को कभी दिल्ली के पर्यावरण मंत्रालय, तो कभी कोलकाता के भूगर्भीय सर्वेक्षण की सतत निगरानी में अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है और अब एक साल से राज्य सरकार अनावश्यक अवरोध लगा रही है जबकि ढाई सौ करोड़ का बजट भी मुहैया है।

हम इसे कांगड़ा की राजनीतिक नामर्दी भी कह सकते हैं या यह मान सकते हैं कि यह क्षेत्र सत्ता का पिछलग्गू हो गया है। आश्चर्य यह कि जिस परिसर के पक्ष में दो बार के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार बार-बार दरख्वास्त कर रहे हैं, उस पर शिमला की सत्ता खामोश है। ऐसे में क्या चार बार के विधायक व पूर्व मंत्री रहे सुधीर शर्मा के विधानसभा क्षेत्र को अभिशप्त करने की कोई कोशिश है या कांगड़ा के लाभ अब हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की बपौती हैं। आश्चर्य यह कि वर्तमान सरकार हमीरपुर के सांसद अनुराग ठाकुर के सपने को साकार करती हुई देहरा व धर्मशाला परिसर के बीच घात-प्रतिघात कर रही है। बहरहाल भाजपा के विरोध एवं चक्का जाम ने जदरांगल परिसर की बिसात पर कांग्रेस से लोकसभा चुनाव का मुद्दा छीन लिया है। जदरांगल परिसर के एक छोर में धर्मशाला, दूसरे में पालमपुर, तीसरे में नगरोटा और चौथे में शाहपुर-कांगड़ा के सरोकार समाहित हैं। ऐसे में कांग्रेस एक मुद्दा भाजपा के सुपुर्द कर रही है। करीब महीने से आंदोलन पर बैठी जनता से बेखबर कांग्रेस सरकार शायद अपने लिए ऐसी सियासत चुन रही है, जिसका न कोई तर्क और न ही आधार है। जो सरकार मंडी विश्वविद्यालय के औचित्य पर प्रश्र टांक चुकी है, उससे यह अपेक्षा रही है कि जदरांगल की जमीन पर अपने नक्शे पुख्ता करती। इस दौरान विश्वविद्यालय की परतों के पीछे अगर कुछ गौण हुआ तो उसका अर्थ शिक्षा की कृपणता में देखा जा रहा है। औचित्य की बाजी में केंद्रीय विश्वविद्यालय की व्यस्तताएं एक खास रंग में रंगी हैं।

अधिकांश नियुक्तियां कांग्रेस के बौद्धिक कौशल से विपरीत ऐसी सीढिय़ां तैयार कर चुकी हैं, जो संस्थान को एक खास विचारधारा के करीब खड़ा कर रही हैं। हिमाचल की फैकल्टी के बजाय विचारधारा की फैकल्टी में यह संस्थान कम से कम अपने आचरण में हिमाचल से दूर खड़ा है और यहां आयोजित संगोष्ठियों, कार्यक्रमों तथा पाठ्यक्रमों में देखा जा रहा है। विश्वविद्यालय की जिज्ञासा में हिमाचल के संदर्भ, प्रदेश के सरोकार और प्रदेश का अनुसंधान अगर खड़ा नहीं हो रहा, तो इसकी इमारतों के गुंबद पर शिक्षा की आत्महत्या ही हमें देखने को मिलेगी। शायद तब यह तमगा हासिल करके दोनों पार्टियां प्रसन्न हो सकती हैं, कि उन्होंने जदरांगल में पानीपत की लड़ाई जीत कर हिमाचल के शैक्षणिक संभावना को खुर्द-बुर्द करने में अहम भूमिका निभाई।