प्रभु के सच्चे भक्त

बाबा हरदेव

गतांक से आगे..
सत्संग में बैठे लोगो में से किसी का ध्यान नामदेव जी पर गया और वह बोल उठा इसे मंदिर से बाहर निकालो। इसे ये भी ध्यान नहीं है चप्पल हाथ में लेकर आ गया है। दो-तीन आममियों ने पकड़ा और नामदेव जी को मंदिर से बाहर निकाल दिया। लोग कहने लगे इसे जरा भी नियम का ध्यान नहीं, बड़ा भक्त बनता है। ऐसे ही मीरा की भक्ति थी। प्रभु प्रेम में दीवानी। गली के लडक़े देखते कि मीरा आई है वो नाच नाचकर गाने लगते ताकि मीरा उनके साथ नाचे और गाए। सडक़ पर ही तालियां मार-मार कर नाच रही है मीरा। किसी की परवाह नहीं न घर-परिवार की न दुनिया की। उसे तो बस आनंद में रहना है। गहराई से सोचें कि छोटी प्याली में यदि सागर समा जाए तो प्याली पागल नहीं होगी तो क्या होगी? बूंद अगर सागर में मिल जाए तो सागर की तरह हो जाएगी, बूंद-बूंद न रही बल्कि लहरें बनकर नाच उठी। यही भक्ति है। मस्ती ही मस्ती है। भक्ति परम प्रेम रूप व अमृत स्वरूप है। क्योकि जिसने भी परम प्रेम को जाना फिर उसकी कोई मृत्यु नहीं। अहंकार की मृत्यु होती है। परमात्मा को भूल जाने का अर्थ अपने आपको भटका लेना है। दिशा खो जाती है तो संसार को चक्कर लगते रहते हैं। निरंकारी संत प्रताप सिंह जी का जीवन हमारे सबके सामने है। उनके जीवन का रोम-रोम सद्गुरु को समर्पित था। सद्गुरु की कल्याण यात्राओं में सेवा में आगे रहना, हर समय गुरु दर की सेवा के विषय में सोचना और बढ़ चढ़ कर सेवा करनी।

सबको यही कहते कि यह कलियुग का समय है, सद्गुरु की शरण में जुड़े रहो। स्वयं भी सद्गुरु पर अपने प्राण तक न्योछावर कर गए और हमें भी प्रेरणा देकर गए कि सद्गुरु से इतना प्रेम करो कि प्रेम प्राणों में बस जाए। सद्गुरु को खुश करना है तो सद्गुरु के संतों की सेवा करो, दु:ख दूर होंगे, भक्ति में रंग आएगा। भक्ति से स्वभाव शांत बन जाता है, गहरा प्रेम हो जाता है। हंसी, खुशी, उल्लास हृदय में छा जाता है। सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान मिला है। हृदय में एक बीज डाल दिया है, अब यह तो प्रफुल्लित होगा ही। इसे मुस्कराते, महकते, रंगों से भरे कोमल-कोमल फूल पत्ते लगेंगे। हां इसे सूर्य प्रकाश में रखना और समय-समय पर जल भी देना होगा तब इनसे आपका आंगन खिला-खिला महकता हुआ और सुगंधित हो जाएगा।

जीवन के आंगन में हृदय का फूल कोमल और भक्तिपूर्ण वातावरण में बदल जाएगा। इसलिए जुड़े हो तो जुड़े ही रहो सत्संग, सेवा से, सुमिरन से। इसे कोई साधारण बात न समझ लेना। सत्संग में आना यूं ही न जान लेना। सत्संग में आने वाले कैसे हैं, क्या कहते हैं, किस जाति के हैं, ये मत सोचो। केवल यह ही सोचो कि निरंकार सूक्ष्म है, ब्रह्मज्ञान सूक्ष्म है, आत्मा सूक्ष्म है। जब सूक्ष्म से सूक्ष्म जुड़ जाएगा तब भक्ति में आनंद की धारा बहने लगेगी। इस जीवन का लक्ष्य प्राप्त होगा। ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुखरासी। माया से मिलकर तू अपना वास्तविक स्वरूप भूल गया है। जो सहज सुखराशि था, वह दु:ख से बिलख रहा है। आनंद की उपलब्धि के लिए तुझे कुछ करना भी नहीं है। यह तो सहज स्वरूप है। सद्गुरु की कृपा से तू अपने आनंद स्वरूप को प्राप्त होगा। तभी तू प्रभु की भक्ति का आनंद प्राप्त कर पाएगा। प्रेम जीवन का प्राण है और प्रेम भक्ति का भी प्राण है। – क्रमश: