प्रभु के सच्चे भक्त

बाबा हरदेव

गतांक से आगे..

अब भक्त में चमक आ गई। प्रेम ही पे्रम, आनंद ही आनंद हो गया। वह अब शुद्ध सोना है कोई मिलावट नहीं। सद्गुरु कहते हैं इसे व्यवहार में प्रयोग करो, संसार में प्रयोग करो। गुरसिखी में प्रयोग करोगे तो भक्ति का लाभ होगा। जब तुम प्रेम बांटोगे तो आनंद को महसूस करोगे। यह निरंकार प्रभु का विराट है। पानी को जब जीरो डिग्री ताप तक गर्म करोगे वह भाप बन जाएगा। भाप बनकर आकाश में जाकर विराट हो जाएगा। ‘तू ही तू, तू ही तू’ कहते-कहते तू हो जाएगा। एकत्व हो गया। ये सोच लो ये पढऩे वालों भक्ति में तुम, तुम नहीं रहोगे। तुम्हें पता नहीं चलेगा कि तुमसे क्या-क्या छूट गया। तुम जिस बुराई को पकड़े हुए हो, वह अपने आप छूट जाएगी। जो बुरी आदत पुरानी है, वह छूट जाएगी। एक राजा ने अपने महामंत्री को प्रश्र किया, क्या तुम यह बता सकते हो कि हमारे नगर में कितने भक्त हैं? महामंत्री ने बहुत सोचने के बाद उत्तर दिया, महाराज अभी तक इस विषय पर सोचा नहीं। कल तक मैं कुछ सोच-विचार करके इसका उपाय सोचूंगा कि कैसे भक्तों की संख्या का पता लगाया जाए। दूसरे दिन महामंत्री ने उपाय सुझाया कि हम अपने सारे नगर में यह घोषणा करवा देते हैं कि जो भी प्रभु का भक्त हो, वो एक सप्ताह के बाद सोमवार को राजदरबार में पेश हो, उनका कर माफ कर दिया जाएगा और उन्हें राजदरबार से प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा कि वो प्रभु के भक्त हैं।

राजा ने महामंत्री के इस सुझाव को मान लिया और नगर में इसकी घोषणा करने की महामंत्री को अनुमति दे दी। घोषणा सुनकर नगरवासी बहुत खुश हुए और सभी को सरकारी कर माफ करवाने का लालच आ गया और सोचने लगे कि चलो भक्त बन जाते हैं। सदा के लिए भक्त कहलाएंगे। अब लोगों ने संतों, भक्तों, साधुओं की वेशभूषा के लिए तैयारियां शुरू कर दीं। बाजार में मालाएं, खड़ताल, गीता, रामायण, एकतारा, चंदन, जंजू खूब बिकने लगे। लोग राजा की भी प्रशंसा करने लगे कि इसी बहाने कर भी माफ हो जाएगा और संतों का सम्मान भी बढ़ेगा। ये तो बहुत अच्छी बात है। अगले सोमवार राजमहल में भक्त, संत, साधू, संन्यासी सुबह ही आने शुरू हो गए। काफी संख्या में भक्त इक_े हो गए, किसी ने माथे पर तिलक लगाया हुआ है, कोई फूलों की माला पहने है।

किसी ने सिर मुंडवा रखा है तो कोई चोटी वाला बना हुआ है। किसी ने टोपी पहनी हुई है तो किसी ने पगड़ी पहनी हुई है। कोई राम-राम के लिखे हुए पीले वस्त्र पहने हुए है, तो कोई अपने बगल में पोथी, पांव में खड़ाव व माथे पर लंबा तिलक लगाए हुए है। साधु, संन्यासी भक्तों से राजदरबार पूरा भरा हुआ है। इतने में सामने ऊंचे स्थान पर महामंत्री आए और घोषणा की कि आप सभी को एकसाथ देखकर अति प्रसन्नता हो रही है। आज पता चला है कि हमारा नगर भक्तों, संतों से भरा हुआ है। अब महाराज पधारने वाले हैं। उनके सिंहासन पर विराजमान होते ही कार्रवाई शुरू हो जाएगी। इतने में राजा राजदरबार में पधारे और अपने सिंहासन पर विराजमान हुए।

जब उन्होंने राजदरबार के चारों ओर नजर दौड़ाई। देखकर बड़े प्रसन्न हुए कि इतनी अधिक संख्या में हमारे नगर में प्रभु भक्त हैं। तब राजा ने महामंत्री से कहा, लगता है हमारा नगर भक्तों, संतों का नगर है ये तो बहुत अच्छी बात है। महामंत्री ने कहा नहीं महाराज अभी पता चल जाएगा। इनमें कौन असली है और कौन नकली।