भैया जी बन गए मंत्री…

भैयाजी मंत्री बन गए थे। उन्हें बधाई देना मेरे लिए लाजमी था, सो उनके निवास पर पहुंचा तो वे प्लेट में गुलाब-जामुन का ढेर लगाए उन्हें गटक रहे थे। मैंने कहा-‘यह क्या, आप अकेले-अकेले ही खा रहे हैं गुलाब-जामुन, मंत्री बनने की मिठाई तो हम भी खाएंगे।’ वे गुलाब-जामुन को गले से नीचे उतारकर बोले-‘अब तो अकेले ही खाना है शर्मा। चुनाव में तुमने कम खाया क्या? अभी तो मैं ढाबे वालों का हिसाब भी चुकता नहीं कर पाया हूं।’ मैं बोला-‘अब चुनाव प्रचार में भैयाजी अपने घर से परांठे-अचार थोड़े ही बांधकर ले जाता। तुम्हें तो पता होगा मैंने कितनी मेहनत की है आपको जितवाने में।’ ‘मुझे सब पता है शर्मा, लेकिन कान खोलकर सुन लो, अब मैं मंत्री बन गया हूं। तुम्हें तो पता होगा कि मंत्री की क्या महत्ता होती है तथा उसकी शक्तियां कितनी असीम हैं?’ मैंने कहा-‘लेकिन आप डरा तो नहीं रहे यह कहकर। मानता हूं आपने चुनाव में 50 लाख खर्च किए हैं, उनकी उगाही कम समय में करनी है, अल्पमत की गठबंधन सरकार है, पता नहीं कब कौन समर्थन वापस ले ले। आजकल सरकारों का भी पता नहीं कब गिर जाए। इसलिए दोनों हाथों से सूतना है?’ मेरी बात पर वे खुलकर हंसे, गुलाब-जामुन की खाली प्लेट को एक ओर सरकाया और बोले-‘चाय पियोगे?’ ‘अकेली चाय, सुबह से नाश्ता नहीं किया। कुछ साथ में खाने को भी मंगवा लीजिए।’ मैंने कहा, तो वे बोले कुछ नहीं, सब खांसते रहे। मैं बोला-‘क्यों खांसी हो गई है क्या?

’ वे विषयांतर करके बोले-‘देखो, जहां तक सूतने की बात है, मैं लम्बा ही हाथ मारूंगा, करोड़ों का घोटाला करूंगा। घोटाला करना मंत्री के लिए जरूरी हो गया है। किसी भी मद का पैसा खा जाऊंगा।’ यह कहते हुए उनके चेहरे पर आत्मविश्वास बहुत साफ झलक रहा था। मैंने तभी अपना प्रश्न दागा-‘इससे तो आपका कैरियर चौपट हो जाएगा। पद से हटा दिए जाओगे। मेरे विचार से भैयाजी पहले आप थोड़ा अपनी ‘इमेज’ बना लेते तो घोटाला आसान हो जाता।’ ‘शर्मा, मुझे मत समझाओ। मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा हैं, मैं वक्त बरबाद नहीं करूंगा। लाइसेंस, परमिट, ठेके और पता नहीं कितने मामले आ रहे हैं-जिनमें पांचों अंगुलियां घी में होंगी। देने को आश्वासन और धोखे के मेरे पास शेष बचा ही क्या है?’ ‘और जनसेवा?’ इस बात पर वह बोले, ‘मैंने जन को देख लिया। वोट के लिए उसने मुझे क्या-क्या पापड़ बिलाए हैं।’ जनसेवा शब्द पर उन्होंने क्रोध में दांत बजाए, मु_ियां भींची और तिलमिलाकर बोले-‘कैसा जन और कैसी सेवा, इन्हें मैंने अपने शब्दकोश से ही निकाल दिया है।’ मैं बोला-‘इसके बिना तो अगला चुनाव जीत पाना कठिन हो जाएगा।’ ‘चुनाव का नाम मत लो मेरे भाई, और नौबत भी आई तो चुनाव तो अब एक स्टंट है, जिसे जीतना अब मेरे लिए मुश्किल नहीं है। चुनाव जीतने के लिए मेरे पास शराब है, कम्बल है, जातिवाद है, क्षेत्रीयता है और साम्प्रदायिकता है। मैं सब गुर जान गया हूं और सुनो, इनके अलावा तुम्हारे जैसे एक हजार चमचे हैं, जो दुम हिलाते हुए आ जाएंगे अपना चारा खाने। यह क्यों भूल जाते हो कि चुनाव से तुम्हारा भी धंधा चलता है।’ भैयाजी बोले, तो मैं तनिक तुनककर बोला-‘आप मुझे चमचा समझते हैं, मैं आपको बड़ा भाई समझकर इज्जत करता रहा। आपने मेरा कद गिराया है भैयाजी, यह बात मुझे बुरी लगी है।’

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक