धर्मनिरपेक्ष का अर्थ

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

धर्मनिरपेक्ष का अर्थ किसी आस्था, विचारधारा या विश्वास प्रणाली से नाता तोडऩा नहीं है, बल्कि एक सामूहिक समझ है कि जैसे आपका अस्तित्व है, वैसे ही दूसरों का अस्तित्व है। यह आस्था को नकारना नहीं है, बल्कि हर किसी को खुशहाली और मुक्ति की खोज करने की आजादी देने का निर्णय है, उसके लिए वे चाहे जो भी तरीका चुनें…

धर्मनिरपेक्ष शब्द किसी प्रतिबद्ध समूह के बजाय पूरी दुनिया को संकेत करता है। वह समूह चाहे किसी भी धर्म, जाति, कुल, संप्रदाय या विचारधारा को समर्पित हो। जीवन के एक धर्मनिरपेक्ष तरीके का मतलब एक व्यापक और समावेशी वैश्विक दृष्टिकोण है, जिसमें देश के संविधान की दृष्टि में विभिन्न समर्पित समूहों के साथ पूरी बराबरी के साथ पेश आया जाएगा। हालांकि धर्म, जाति या संप्रदाय के प्रति पवित्र निजी निष्ठा हो सकती है, एक ऐसी व्यवस्था में सभी लोगों को प्रतिनिधित्व करने और देश पर शासन करने के बराबर अवसर प्राप्त होंगे।

इसलिए धर्मनिरपेक्ष का अर्थ किसी आस्था, विचारधारा या विश्वास प्रणाली से नाता तोडऩा नहीं है, बल्कि एक सामूहिक समझ है कि जैसे आपका अस्तित्व है, वैसे ही दूसरों का अस्तित्व है। यह आस्था को नकारना नहीं है, बल्कि हर किसी को खुशहाली और मुक्ति की खोज करने की आजादी देने का निर्णय है, उसके लिए वे चाहे जो भी तरीका चुनें। इसका मतलब है कि हर मत के व्यक्तियों को उसी देश में पूरी बराबरी से रहने देना। इसलिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में धर्मनिरपेक्ष शब्द पर सिर्फ कुछ राजनीतिक दलों, समूहों या व्यक्तियों का अपने ब्रांड के रूप में दावा है। जिनसे आप सहमत नहीं हो सकते या जिन्हें आप पसंद नहीं कर सकते, उन्हें अलग कर देना धर्मनिरपेक्ष होने का बिलकुल उल्टा है। साथ ही हमें सावधान रहना होगा कि हम किसी ऐसे मॉडल को गैर आलोचनात्मक रूप से न अपनाएं जो मूल रूप से हमारे पास दूसरे संदर्भ से आया हो। यह विचार कि जो धार्मिक है वह तर्क पर खरा नहीं उतरेगा, मूल रूप से एक यूरोपीय विचार है, जो आस्था और तर्कसंगतता के बीच कथित विभाजन पर आधारित है। ऐसे में जो उचित है वह धर्मनिरपेक्ष हो जाता है और जिस पर विश्वास किया जाता है वह धार्मिक हो जाता है। हालांकि इस उपमहाद्वीप में, धर्म का विचार हमेशा से अलग रहा है।

यह खोजियों की आध्यात्मिक संस्कृति है, विश्वासकर्ताओं की नहीं, तलाश की संस्कृति है, धर्मादेश की नहीं। यहां जिसे धार्मिक या पवित्र माना जाता है, उस पर बहस की जा सकती है। इसका पालन करना जरूरी नहीं होता। धर्मनिरपेक्ष शब्द की वर्तमान गलत समझ मूल रूप से विनाशकारी है। यह सोच कि हजारों सालों के आध्यात्मिक इतिहास को मिटाने और उसे एक आधुनिक संविधान से बदलने की जरूरत है, बस बचकानी ही नहीं, बल्कि गैर जरूरी है। जब सवाल मनुष्य के जीवन संरक्षण का होता है, तो आप यकीन दिला सकते हैं कि उनके जीवन के लिए प्रशासनिक दिशा-निर्देश काफी हैं। लेकिन जब व्यवस्था मौजूद होती है, जब आर्थिक, सामाजिक हालात अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं, तब प्रशासनिक दिशा-निर्देश कभी पर्याप्त नहीं होंगे।