गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

श्लोक 11/21 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि निश्चय ही यह देवताओं के संघ आप में प्रवेश करते हैं। कोई-कोई डरे हुए हाथ जोडक़र स्तुति करते हैं, महर्षि और सिद्ध पुरुषों के समूह कल्याण होवे इस प्रकार कहकर श्रेष्ठ वेद मंत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं…

गतांक से आगे…

यह हमारा दुर्भाग्य है यदि हम वेदाध्ययन द्वारा समस्त विद्याओं का ज्ञान प्राप्त न करें। भाव यह है कि रुद्र का अर्थ यह है कि भयंकर एवं पापी को दंड देकर रूलाने वाला। इसी निराकार परमेश्वर को श£ोक 11/20 में ‘उग्रम रूप’ कहा है। ऋग्वेद मंत्र 7/41/1 में कहा कि ‘ब्रह्मणस्पतिम’ वेद एवं ब्रह्मांड के स्वामी परमेश्वर की, जो ‘रुदम’ अर्थात भयंकर है और पापियों को रूलाने वाला है, उसकी हम ‘हुवेम’ स्तुति करें। सामवेद मंत्र 269, 272 में और अन्य वेदों में भी ईश्वर को ‘परमज्या:वृत्रहन’ अर्थात शत्रुओं का नाश करने वाला और बाधाओं को मार भगाने वाला और ‘वज्रिणम’ दुष्टों को दंड देने वाला परमेश्वर कहा है। यह परमेश्वर के उग्र रूप है।

समस्त संसार ईश्वर के न्याय से डरता है कि वह पापियों को रूलाता है, दंड देता है। श£ोक 11/20 में जो ‘उग्रम रूपम’ पद कहे हैं वह भी उस निराकार परमेश्वर के लिए ही है, जिसे जानकर तीनों लोक व्यथा को प्राप्त होते हैं अर्थात दु:खी होते हैं। भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज का वैदिक प्रवचन है। वस्तुत: यह महान गं्रथ व्यास मुनि रचित महाभारत के भीष्म पर्व से लिया गया है। अत: भगवद्गीता व्यास मुनि जी की रचना है जो पूजनीय है और आचरणीय है। श£ोक 11/21 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि निश्चय ही यह देवताओं के संघ आप में प्रवेश करते हैं। कोई-कोई डरे हुए हाथ जोडक़र स्तुति करते हैं, महर्षि और सिद्ध पुरुषों के समूह कल्याण होवे इस प्रकार कहकर श्रेष्ठ वेद मंत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं। श£ोक 11/6 एवं 15 में 33 संपूर्ण देवों का (सामवेद मंत्र 96) ऋषियों आदि का तथा लोक 11/20 में तीनों लोकों आदि का वर्णन है। – क्रमश: