गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

श्लोक 11/22 में अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज को कह रहे हैं कि हे योगेश्वर श्रीकृष्ण ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, साधयगण, विश्वेदेव अर्थात सब विद्वान अश्विनों, सूर्य, चंद्रमा, मरुतगण अर्थात वायु सब पितर लोग और गंधर्व, यक्ष, सिद्ध पुरुष के समूह सब ही आश्चर्यचकित हुए आपको देख रहे हैं…

गतांक से आगे…
कितने ही वेद मंत्रों में कहा कि जो मनुष्य ईश्वर की शरण अर्थात वेदों एवं विद्वानों की शरण में चला जाता है वह अभय हो जाता है। जैसा अथर्ववेद मंत्र 19/15/6 में कहा, ‘अभयं मित्रादभयम-मित्रादभयं ज्ञाताभयं’ अर्थात हे प्रभु हमें मित्र-अमित्र एवं ज्ञात तथा अज्ञात स्थान से प्रतिदिन तथा दिन एवं रात्रि में भी अभय प्रदान करो क्योंकि हम तुम्हारी शरण में हैं।

भाव यही है कि इस ब्रह्म ज्ञान को जानने के लिए वेद एवं शांति पर्व में व्यास मुनि भी कहते हैं कि शब्द ब्रह्म अर्थात वेदों को जानो। ऋग्वेद मंत्र 1/164/50 में कहा कि जो विद्वान यज्ञ द्वारा ईश्वर की पूजा करते हैं, ब्रह्मचर्य आदि गुणों को धारण करते हैं वे ही यहां (पूर्व) जिन्होंने पूर्व में विद्या प्राप्त की (साध्या:) और साधकगण हैं वह ही मोक्ष को (सचन्त) प्राप्त होते हैं। भाव यह है कि साध्या पद हमें वेदों की ही देन है। ‘विश्वदेव:’ पद का अर्थ ऋग्वेद मंत्र 5/51/13 में आया है कि जिसमें कहा ‘अद्या’ आज विश्वदेवा: संपूर्ण देव जन अर्थात सब वेदों के ज्ञाता विद्वान ‘न:स्वस्तये’ हमारे लिए कल्याणकारी हों।

‘अश्विनो’ पद का अर्थ है सूर्य एवं चंद्रमा। ‘मरुत:’ पद का अर्थ है वायु है। वस्तुत: इन सब पदों के अर्थ पीछे गीता के श£ोकों में कर चुके हैं। ‘उष्मय:’ का अर्थ है पितरगण। अथर्ववेद मंत्र 8/9/8 में कहा (यश्रम) उपासनीय देव (एजति) प्राप्त होता है। ‘यज्ञम’ पद का अर्थ है उपासनीय देव। ‘गंधर्व:’ सामवेद का गायन करने वाले को कहते है। श£ोक 11/22 में अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज को कह रहे हैं कि हे योगेश्वर श्रीकृष्ण ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, साधयगण, विश्वेदेव अर्थात सब विद्वान अश्विनों, सूर्य, चंद्रमा, मरुतगण अर्थात वायु सब पितर लोग और गंधर्व, यक्ष, सिद्ध पुरुष के समूह सब ही आश्चर्यचकित हुए आपको देख रहे हैं। – क्रमश: