कालीखोह माता मंदिर

विंध्याचल धाम हमेशा से ही तंत्र साधना के लिए विशेष जगह मानी जाती है। विंध्याचल पर्वत पर स्थित है माता महाकाली का मंदिर। लोग इस मंदिर को कालीखोह माता का मंदिर कहते हैं। पूरे विश्व का यह एकमात्र मंदिर है, जहां पर महाकाली माता खेचरी मुद्रा में है। आज इस मंदिर के रहस्य से आपको रू-ब-रू करवाते हैं। शक्ति आराधना के लिए विंध्य पर्वत पुरातन काल से ही प्रसिद्ध है। यहां पर विंध्यवासिनी मां, अष्टभुजा माता, मां महाकाली का मंदिर स्थित है। महाकाली मंदिर को लोग कालीखोह वाली माता के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में तंत्र साधना का विशेष महत्त्व है। काली खोह मंदिर में तंत्र साधना के लिए तांत्रिक देश-विदेश से आते हैं। माता महाकाली की साधना एवं उपासना करते हैं एवं सिद्धि प्राप्त करते हैं।

कैसे किया था यह रूप धारण

मान्यता है कि जो भी भक्त माता महाकाली का दर्शन करते हैं, उन्हें तंत्र विधाओं की सिद्धि बहुत ही आसानी से हो जाती है। जिसकी वजह से तांत्रिकों का जमावड़ा यहां पर रहता है। सभी भक्त यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए मां के दर्शन एवं पूजा आराधना के लिए आते हैं। इस मंदिर की विशेषता सबसे अलग है। मां का मुख यहां पर खेचरी मुद्रा में स्थित है यानी कि ऊपर की तरफ है। पुराने समय में रक्तबीज नामक दानव ने स्वर्ग लोक पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और सभी देवताओं को वहां से भगा दिया था। तब सभी देवताओं ने माता से प्रार्थना की जिसकी वजह से विंध्यवासिनी ने महाकाली का ऐसा रूप धारण किया, जिससे भक्तों का कल्याण होता है।

मां के मुंह में डाला गया प्रसाद कहां गया पता नहीं चलता

रक्तबीज नामक दानव को जब ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था कि उसका अगर एक भी बूंद खून पृथ्वी पर गिरेगा, तो उससे लाखों राक्षस जन्म लेंगे। इसी दानव को समाप्त करने के लिए महाकाली ने रक्त पान करने के लिए अपना मुख ऊपर की ओर खोल दिया था, जिससे धरती पर एक भी बूंद न गिरे। रक्तबीज नामक दानव का वध करने के बाद मां का एक ऐसा भी रूप प्रकट होता है कि माता के मुख में चाहे जितना भी प्रसाद, फल और फूल चढ़ा दीजिए। कहां जाता है इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है। वैज्ञानिक भी इस चमत्कार को देखकर हैरान रहते हैं।

पूरी होती है मनोकामना

कालीखोह माता के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। इसलिए यहां पर देश-विदेश से काफी संख्या में भक्त आते हैं। नवरात्रों के दौरान पूरे विंध्याचल धाम को दीयों और फूलों से सजाया जाता है। इस दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ एकत्रित होती है।