कालीस्थान मंदिर

हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां देवी-देवताओं में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था और श्रद्धा है। ऐसा ही मां काली का सिद्धपीठ है कालीस्थान मंदिर, जो नाहन में स्थित है। मां काली यहां पिंडी रूप में विराजमान है। रियासत कालीन शहर नाहन में ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर का निर्माण रियासत के राजा विजय प्रकाश ने अपनी रानी के आग्रह पर सन् 1730 ई. में करवाया था। यह रानी कुमाऊं के राजा कल्याण चंद की सुपुत्री थी, जोकि देवी की परम भक्त व उपासक थी।

ऐसा माना जाता है कि राजा की सुपुत्री के साथ मां काली का साक्षात वास था। सिरमौर के राजा विजय प्रकाश के साथ रानी के विवाह के बाद मां काली साक्षात रूप में नाहन रियासत आई थीं। रानी के आग्रह पर ही आज कालीस्थान मंदिर में मां काली पिंडी रूप में साक्षात विराजमान हैं, जो भक्तों की रक्षा के साथ उनकी मनोकामना को भी पूर्ण करती है। पिंडी रूप में विराजमान होने के बाद राजा ने यहां मां के मंदिर का निर्माण करवाया। दशहरे और नवरात्र के अवसर पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते थे। श्रद्धालु और सिरमौर का राजा एक साथ मिलकर पूजा में सम्मिलित होते थे। पहले नवरात्र में राजा लकड़ी के बक्से में जौ बीजने के बाद एक खांडे यानी दोधारी तलवार को रख देते हैं तथा नवमी को रियासत के राजगुरु जोकि नाथ संप्रदाय के होते हंै इस खांडे अथवा दोधारी तलवार को प्राप्त कर म्यान में रखते है। कालीस्थान मंदिर परिसर में भगवान शिव, शनि मंदिर, भैरव मंदिर, हनुमानजी के साथ-साथ विश्वकर्मा बाबा का मंदिर भी स्थापित है। वहीं परिसर में राधाकृष्ण मंदिर, मां बाला सुंदरी मंदिर तथा जाहरगोगा महाराज का मंदिर भी विराजमान है। मंदिर में पूजा-अर्चना का संचालन राजगुरु की उपाधि प्राप्त नाथ संप्रदाय के संतों द्वारा किया जाता है। नवरात्रों के अवसर पर यहां विशाल भंडारों का आयोजन होता है। वहीं लगभग 11 समाधियां राजगुरुओं की रिसायत कालीन दौर से स्थपित हैं। इस शक्तिपीठ में श्रद्धालुओं की मुरादें शीश झुकाते ही क्षण भर में पूरी होती हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में नतमस्तक होकर मां का आशीर्वाद प्राप्त
करते हंै।