वाइस चांसलर बनने के लिए नए नियम, राज्य शिक्षण नियामक आयोग ने सख्त किए रूल्ज

स्टाफ रिपोर्टर-शिमला

प्रदेश की निजी यूनिवर्सिटी में अब वीसी बनने के लिए राज्य शिक्षण नियामक आयोग ने स्पष्ट आदेश जारी कर दिए हैं। योग्यता को लेकर लगातार उठ रहे सवालों पर विराम लगाने के लिए अब नियम आयोग ने यह फैसला किया है। किसी भी यूनिवर्सिटी में वीसी लगने के लिए कोई व्यक्ति आवेदन करता है तो पहले यूजीसी को उसे अपना पूरा प्रोफाइल भेजना होगा। यूजीसी अगर उस प्रोफाइल को मंजूर करती है तो ही नियामक आयोग उसे मानेगा और वीसी की नियुक्ति की जाएगी। इससे पहले लगातार प्राइवेट यूनिवर्सिटी में गड़बड़ी के मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में नियामक आयोग की ओर से पांच यूनिवर्सिटी के कुलपति को नोटिस भी जारी किए गए थे जिसके बाद पूरी जांच भी की गई है।

इसमें दो यूनिवर्सिटी के कुलपति की ओर से योग्यता संबंधी प्रमाण देना अभी बाकी है जबकि दो अन्य निजी विवि के कुलपति ने खुद ही अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था। भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए यूनिवर्सिटी ने अब नियम तय कर दिए हैं। निजी शिक्षण नियामक आयोग के सदस्य प्रो. शशिकांत लोमेश ने बताया कि वाइस चांसलर की नियुक्ति के लिए पूरी तरह से पारदर्शिता बरती जाएगी और किसी भी तरीके से इसमें नियमों की अनदेखी नहीं होगी। यूजीसी जिसे अप्रूव करेगी उसे ही निजी यूनिवर्सिटी का वीसी नियुक्त किया जाएगा।

इन नियमों को ध्यान से पढ़े

यूजीसी के नियम कहते हैं कि कुलपति बनने के लिए अच्छे शिक्षाविद को प्रोफेसर पद पर कम से कम दस साल का अनुभव होना चाहिए। कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए पब्लिक नोटिफिकेशन होना अनिवार्य है। राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति के चयन में इन दोनों नियमों की अनदेखी की जाती है। राज्य निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की जांच रिपोर्ट के अनुसार पांच निजी विवि के कुलपति बिना पीएचडी किए ही प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। प्रोफेसर के पद पर सेवाएं देते हुए इन्होंने पीएचडी की। इन कुलपतियों के पास बतौर प्रोफेसर दस साल सेवाओं का अनुभव भी नहीं था। दो कुलपतियों की 70 वर्ष से अधिक आयु थी और एक कुलपति के पास इस पद पर नियुक्त होने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता ही नहीं थी।