परमात्मा से प्रार्थना

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

प्रेम नींव है भक्ति रूपी महल की। प्रेम से परमात्मा और परमात्मा से प्रार्थना। प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति होती है। चाहे दुनिया की कोई भी भाषा हो पर महत्त्व प्रेम को ही दिया गया है। प्रेम को पाओ। जिसमें प्रेम नहीं वह सिर्फ मांस हड्डियों का ढेर है। एक महात्मा ने अपने शिष्य से पूछा बताओ तुम्हें जीवन में किन-किन चीजों की आवश्यकता है?

उस शिष्य ने कहा, महात्मा जी मुझे एक दिन का समय दें तो मैं सोचकर बताऊंगा। महात्मा ने कहा, ठीक है, कल बता देना। दूसरे दिन वो शिष्य एक लंबी लिस्ट बनाकर ले आया और महात्मा को दे दी। महात्मा ने लिस्ट को बहुत गौर से पढ़ा। अच्छी पढ़ाई, अच्छा कारोबार, सुंदर पत्नी, नौकर-चाकर, गाड़ी और घर-परिवार के सुखों की सभी वस्तुएं लिस्ट में लिख लाया। महात्मा ने लिस्ट के ऊपर अपनी कलम से एक महान लाइन लिख दी प्रेम आनंद। सबसे पहले प्रेम आनंद को जीवन में लाएं, बाकी वस्तुएं बाद में। हर वस्तु का आनंद मिलेगा अगर हृदय में पे्रम है। प्रेम है तो शांति भी होगी, करुणा भी होगी, भक्ति भी होगी और मानवता भी होगी। प्रेम में अहंकार छूट जाएगा। भक्ति की पहली सीढ़ी प्रेम है, जो निरंकार परमात्मा तक ले जाएगी। प्रेम शक्ति है, प्रेम संपदा है। प्रेम के बिना मनुष्य दरिद्र है। प्रेम से प्रार्थना की जाती है, सत्संग किया जाता है और सेवा का आनंद मिलता है।

प्रेम में डूब जाना ही भक्ति का फल है। प्रार्थना करते-करते आंसूओं की धारा बहने लगी। तन्मयता से भूल जाए कि वो प्रार्थना कर रहा है और आनंद में सराबोर हो रहा है। वह आनंद ही उसका पुरस्कार है। निरंकार के निकट इतना हो गया कि प्रार्थना प्रेम बन गई और आंखों से आनंद की धारा बहने लगी। अब प्रार्थना प्रेम भरा गीत बन गई। अब हृदय से प्रभु के गीत निकलने लगे। सब चाहो की एक चाह बन जाना ही मनुष्य के भीतर उस शक्ति को पैदा करता है जो उसे निरंकार परमात्मा में एकरस, एकाकार, प्रेमपूर्ण संपत्ति का मालिक बना देती है। अब मेरे मालिक के ही विचार मन में उत्पन्न हो रहे हैं। यह मालिक सदा मेरे साथ है। अब कोई चिंता नहीं, कोई भय नहीं। अब निरंकार रक्षा करेगा। अब मेरा एक ही धर्म है, एक ही कर्म है कि मैं प्रेम करूं।

प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना,
प्रेम से प्रकट होहि मैं जाना।

निरंकार प्रभु तो सर्वव्यापक है। कोई प्रेमी ही अपनी प्रेमा भक्ति से इसे प्रकट कर सकता है। ऐसे ही भक्त बुल्लेशाह थे, जो सद्गुरु की खोज के लिए कई स्थानों पर गए। किसी ने बताया निरंकार परमात्मा को प्राप्त करना है तो शाह इनायत मुरशद के पास जाओ। बुल्लेशाह पूछते-पूछते शाह इनायत के खेत में जा पहुंचे। शाह इनायत अराईं जाति के थे जो सब्जियां बोने और बेचने का काम करते थे। बुल्लेशाह जब उनके पास पहुंचे तो शाह इनायत प्याज की पनीरी लगा रहे थे। बुल्लेशाह ने पूछा साई जी रब (ईश्वर) को पाने का कोई आसान तरीका है। शाह इनायत ने प्याज लगाते हुए उत्तर दिया।

बुल्लया रब दा की पावणा,
एधरों पुटणा ते औधर लावणा।

बुल्लेशाह ये सुनकर उनका संकेत समझ गए और उनके चरणों में गिर पड़े और हाथ जोडक़र प्रार्थना की कि मैं रब के दर्शनों का बड़ा ही प्यास हूं, मेरी प्यास बुझाओ। तब गुरु इनायत शाह ने उन्हें ब्रह्मज्ञान करवाया। बुल्लेशाह निरंकार के दर्शन करके नाच उठे और सद्गुरु के दरबार में नित्य प्रति आने लगे। -क्रमश: