हाथ जोड़ कर प्रार्थना

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…
साई बुल्लेशाह का मुरशद शाह इनायत उससे किसी कारण नाराज हो गया। उसने बुल्लेशाह को हुक्म दिया कि अब तू हमारे पास दरबार में कभी मत आना। प्रेम तुम्हारी कीमत से मिलता है। प्रेम के वियोग की चोट तो मौत से भी बढक़र दु:खदाई होती है। जिस कारण बुल्लेशाह को अपने मुरशद की जुदाई में एक पल के लिए भी जीना मुश्किल हो गया। वह इस बिछोड़े के कारण दिन-रात मछली की तरह तड़पने लगा। उन्हें कहीं एक पल के लिए भी चैन न आता। बुल्लेशाह की हालत पागलों की तरह हो गई। वह जिंदगी से तंग आने लगे। अंत में उन्होंने अपने सद्गुरु को मनाने का एक उपाय सोचा। शाह इनायत संगीत, नाच तथा गाने के बहुत शौकीन थे और अपने दरबार में कव्वाली व मुजरे करवाते रहते थे। अब बुल्लेशाह ने सोचा क्यों न मैं भी नाच गाना सीख लूं। यह सोचकर वो एक नाचने वाली के पास गया और उस से हाथ जोडक़र प्रार्थना की कि मुझे अपने घर सेवा करने का अवसर दो। मैं आपके घर के सारे काम करूंगा, इसके बदले में आप मुझे नाच गाना सिखा दो। आज से मैं तुम्हें माता कहूंगा। उस नाचने वाली ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और अपने घर पर आने की अनुमति दी। बुल्लेशाह बारह वर्ष तक उस नाचने वाली की सेवा करते रहे।

एक दिन उस नाचने वाली ने कहा, बुल्ले मैं तेरी सेवा से अति प्रसन्न हूं, बोलो मैं तुझे इस सेवा की क्या मजदूरी दूं? बुल्लेशाह ने बड़ी नम्रता भरे शब्दों में उसका धन्यवाद किया और कहा, माता मैं आपसे और कुछ नहीं मांगता। मेरी केवल एक ही इच्छा है कि जिस फकीर के आगे आप मुजरा करने जाती हैं, उसकी उपस्थिति में एक बार मेरा मुजरा करवा दो। मुझे पूरी आशा है आप मेरी यह विनती जरूर मान लेंगी। मैं आपका यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा। उस नाचने वाली ने बुल्लेशाह की इस विनती को बड़ी खुशी से स्वीकार कर लिया। एक दिन वह नाचने वाली फकीर शाह इनायत के दरबार में तन्मयता से मुजरा कर रही थी, तो फकीर शाह इनायत ने मस्ती में आकर कहा कि तेरे मुजरे से मैं बहुत प्रसन्न हूं, तेरी सेवा स्वीकार है। मांग, क्या मांगती है। तब उस नाचने वाली ने कहा, सच्चे पातशाह! आपका दिया सब कुछ है। शाह इनायत ने जब एक बार फिर कहा, तो उसने जवाब दिया महाराज मेरी एक शिष्या है, जो मेरे से भी अच्छा मुजरा जानती है।

आप कभी उसे यहां मुजरा करने की आज्ञा दे दीजिए। फकीर शाह इनायत ने स्वीकार करते हुए कहा, ठीक है उसे ले आना। घर आकर उस नाचने वाली ने बुल्लेशाह को बधाई दी और कहा कि तेरे मुरशद ने तुझे नाचने के लिए बुलाया है। उस औरत के कहे अनुसार बुल्लेशाह ने औरतों के वस्त्र पहन लिए और उसके साथ शाह इनायत के दरबार में जा पहुंचा और बड़े प्रेम से भक्ति में डूबकर सुंदर नाच किया। शाह इनायत बड़े प्रसन्न हुए। वो तो अंतर्यामी थे ही, पहचान गए और पूछ लिया तू कौन है? बुल्ले ने नम्रता से कहा, जी मैं भुल्ला (भूला हुआ)हूं। शाह इनायत ने कहा, तू भुल्ला नहीं, तू तो वही बुल्ला है,बुल्ला। जा तेरी पिछली सारी गलतियां माफ हो गईं, अब आ मेरे गले लग जा। मैं भी तेरे बिन तड़प रहा था, मैं जानता था एक दिन तू जरूर आएगा। क्योंकि तू मुरशद के बिना नहीं रह सकता। आगे से बुल्लेशाह कहते हैं, हे मेरे सच्चे पातशाह, मेरा रोम-रोम तेरे प्रेम के लिए तरस रहा है, तेरे बिन मुझे चैन नहीं, करार नहीं। -क्रमश: