शेषनाग झील

समुद्र तल से 11,870 फुट की ऊंचाई पर स्थित शेषनाग झील बेहद पवित्र और प्राचीन झील है। यह पहलगाम से 10 किमी. की दूरी पर है और अमरनाथ गुफा जाने के रास्ते में पड़ती है। सर्दियों के मौसम में जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों पर जोरों की बर्फबारी होती है। जिसके कारण पूरी वादियां बर्फ से ढंक जाती हैं। ऐसे में प्राचीन शेषनाग झील भी जम जाती है। इस दौरान यहां का तापमान भी बहुत कम हो जाता है। इस झील को चारों ओर से ग्लेशियर ने घेरा हुआ है। इस मौके पर जानते हैं हिंदुओं के तीर्थ स्थल शेषनाग झील का महत्त्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा।

शेषनाग करते हैं वास- पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव मां पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ ले जा रहे थे, तो भगवान शिव चाहते थे कि उनकी अमर कथा किसी को न सुनाई दे, क्योंकि जो भी इस कथा को सुनता, वो अमर हो जाता। इस कारण अमरनाथ जाते हुए भगवान शिव ने अनंत नागों (सांपों) को अनंतनाग में, नंदी को पहलगाम में और चंद्रमा को चंदनवाड़ी में ही छोड़ दिया था। इसके बाद उनके साथ केवल शेषनाग ही रह गए थे, जो काफी आगे तक उनके साथ गए। भगवान शिव ने शेषनाग को आदेश दिया कि इस स्थान के आगे कोई न आने पाए। तब शेषनाग ने खुद ही झील खोदी और यहां वास करने लगे। मान्यता है कि आज भी शेषनाग यहां वास करते हैं और दर्शन भी देते हैं। यह चमत्कार ही है कि यहां झील में कई बार शेषनाग की आकृति दिखाई देती है। साथ ही कई बार शेषनाग के दर्शन भी होते हैं।

कोई नहीं कर सकता झील को पार- यह प्राचीन शेषनाग झील 250 फीट गहरी है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि शेषनाग आज भी यहां रहते हैं और आज भी इस झील को कोई पार नहीं कर सकता है। पर्वतमालाओं के बीच करीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली नीले पानी की यह झील बेहद खूबसूरत दिखाई देती है। सर्दियों के मौसम में यह झील जम जाती है।