बदले मुद्दे, बदला मौसम

हिमाचल सरकार की निरंतरता में अब नए कदम भले ही सामान्य परिस्थितियां मान कर चलें, लेकिन जो शिकारी थे वे मोर्चे पर ही देखे गए। पहले एक ही नदी में दो धाराएं थीं अब ये धाराएं अलग-अलग नदियां हैं और कहीं समुद्र का वर्चस्व इन्हें समेटने की जुर्रत में भले ही कुछ पल शांत दिखे, मगर मौसम को अब ज्वार भाटों की आदत है। बहरहाल दिल्ली का जलबा हिमाचल में कांग्रेस को कुछ सफेद फूल और हरी झंडियां देकर लौट गया, लेकिन पर्वतीय राज्य में कबूतरों के रंग पर संदेह बढऩा स्वाभाविक है। जो छोड़ गए, वे अतीत के पन्नों पर कुछ सख्त जरूर लिख गए, लेकिन भविष्य के अध्यायों में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह को फिर से अमन लिखना है। हालांकि जब शिमला में सब कुछ सामान्य दिखाई दे रहा था, तो लाहुल-स्पीति के विधायक रवि ठाकुर के घर की सडक़ पर वन विभाग का अड़ंगा उग रहा था। धर्मशाला में सुधीर शर्मा के पक्ष और विरोध में एक-एक पुतला संघर्ष कर रहा था। हम इन दो घटनाओं की पहरेदारी में राजनीति का एक ऐसा पक्ष देख सकते हैं, जो हिमाचल की परिस्थितियों और परंपराओं को घातक बनाने के लिए एक तरह से उतावलेपन को इंगित करता है। सियासत के वर्तमान माहौल में छाई अनिश्चितता से अस्थिरता का अंदेशा होना स्वाभाविक है, लेकिन आगे चलकर अगर यह कहीं आचरण में तबदील हो गया, तो यह राज्य पूर्वात्तर की तरह फंस सकता है। कांग्रेसी पर्यवेक्षकों की गवाही में सरकार के वर्तमान को सशर्त चलाने का वादा राज्य से हुआ है, लेकिन कार्यकर्ताओं के जश्र में कांग्रेस को बांटने का अगर दृश्य पैदा होता है तो कई हाशिए टकराएंगे। यह मानना पड़ेगा कि सत्तारूढ़ पार्टी के हाशिए न होते, तो छह विधायकों ने इस कद्र के कदम उठाए न होते। अंतत: खुद को सहेजने के लिए कांग्रेस को अपने दरबार, अपने व्यवहार और अपने संकल्प बदलने होंगे। छह विधायकों से निजात पाना अगर उद्देश्य था, तो खबर यह होनी चाहिए कि सत्ता ने एक सांसद खोया है, ये विधायक खोए हैं।

इन छह विधायकों की भरपाई के लिए अब मुद्दे और मौसम बदल गए हैं। टकराव की आंधियों में अगर अपनों के खोने का जश्र है, तो विरोधियों की खुशी में क्यों न शरीक हुआ जाए। कांग्रेस के जिस हिस्से में लड्डू फूट रहे हैं, वे इन छह विधानसभा क्षेत्रों के बागी मुद्दों को पकड़ के दिखाएं। मसलन धर्मशाला में पुतले लेकर घूम रहे कांग्रेसी बताएं कि केंद्रीय विश्वविद्यालय के जदरांगल परिसर के पुतले को भी वे आग लगाएंगे। यह छह विधायकों से कांग्रेस को आजादी नहीं मिली, बल्कि सत्ता में वापसी का हुनर कहीं तबाह हुआ है। जनता यह क्यों न सोचे कि कांग्रेस में अब सरकारें चलाने की प्रतिभा नहीं रही। जरा सोचें कि विधानसभा अध्यक्ष ने मौके की नजाकत में दुरभि संधियां न तोड़ी होतीं या आलाकमान ने तीव्रता से कार्रवाई न की होती, तो युद्ध क्षेत्र में यह डंका न बजता। अब कांग्रेसी मिजाज और सत्ता के व्यवहार में अगर अंतर नहीं आता, तो आत्मचिंतन को भूल कर सत्ता में चूर होने से कौन रोक सकता है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व द्वारा विधायक समन्वय समिति का गठन अगर इसकी भावना में होता है, तो आगे का सफर समन्वित हो सकता है। प्रदेश की राजनीति के लिए कांग्रेस को मिला जनादेश सफलतापूर्वक चलना चाहिए। छह विधायकों की गाड़ी छूटने के बाद कांग्रेस का दायित्व राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी बढ़ जाता है। हिमाचल में कांग्रेस सरकार का आना पूरी पार्टी के मनोबल को बढ़ा गया था। इसी मॉडल पर हुए प्रहार ने जिन आशंकाओं को बढ़ाया है, उन्हें निरस्त करने के लिए वर्तमान सुक्खू सरकार को अब और मेहनत करनी होगी। सत्ता का कारवां जहां से चला और जहां पहुंचा, वहां के खंडित अध्यायों में फिर से खूबसूरत हस्ताक्षर चाहिए और यह कार्य हड़बड़ी का नहीं, संयम और विवेक का है।