कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी पर फैसला लेगी कमेटी, हिमाचल सरकार ने वित्त-कार्मिक सचिव को सौंपा जिम्मा

राज्य ब्यूरो प्रमुख-शिमला

हिमाचल में अब सरकारी क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी रहेगी या जाएगी, इस बारे में फैसला फाइनांस सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी लेगी। इसी कमेटी को यह भी देखना है कि हिमाचल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से कॉन्ट्रैक्ट सर्विस के सभी वित्तीय लाभ देने संबंधी आए फैसलों के बाद इन्हें लागू कैसे करना है। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने फाइनांस सेक्रेटरी देवेश कुमार की अध्यक्षता में इस कमेटी का गठन किया है। इसमें कार्मिक विभाग के सचिव डा. अमनदीप गर्ग को भी लिया गया है, जबकि वित्त एवं कार्मिक विभाग के विशेष सचिव इसके मेंबर सेक्रेटरी होंगे। कमेटी की पहली बैठक बुधवार 27 मार्च को निर्धारित की गई है। इसमें फाइनांस और कार्मिक विभागों के बीच उलझे मामलों को भी चर्चा में लिया जाएगा।

हिमाचल में कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी की शुरुआत इसलिए की गई थी ताकि सरकारी कर्मचारियों को रेगुलर करने में कई साल लग जाएं। इससे राज्य सरकार की वित्तीय देनदारी कम हो रही थी। हालांकि इनका सिलेक्शन रेगुलर कर्मचारियों की तरह ही भर्ती एजेंसियों के माध्यम से हुआ था। इसी कारण अदालतों में सरकार इस पॉलिसी को डिफेंड नहीं कर पाई। शिक्षा, सिविल सप्लाई, स्वास्थ्य और आयुर्वेद जैसे कई विभागों से अनुबंध अवधि का पेंशन लाभ देने, अनुबंध अवधि की सीनियोरिटी देने और अनुबंध अवधि को सभी तरह के वित्तीय लाभों के लिए कैलकुलेट करने के आर्डर हिमाचल हाईकोर्ट से हुए हैं, जिन पर सुप्रीम कोर्ट से भी मोहर लग गई है। आयुर्वेद विभाग के शीला देवी केस में अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिनने को कहा है।

जबकि सिविल सप्लाई के ताज मोहम्मद केस में अनुबंध अवधि यानी प्रथम नियुक्ति से सीनियोरिटी का लाभ भी देना पड़ेगा। इन मामलों में राज्य सरकार हार गई है, इसलिए आगे का रास्ता तय करने के लिए कमेटी में चर्चा जरूरी थी। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बताया कि विभिन्न अदालतों से आए फैसलों के बाद एक तरह का निर्णय लेना जरूरी है। कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार अगली कार्रवाई करेगी।

2004 में लागू हुई थी पॉलिसी

हिमाचल में सरकारी विभागों के लिए कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी 2004 में लागू हुई थी। 2003 में इस पॉलिसी पर काम शुरू हुआ था। शुरू में कर्मचारियों को आठ साल अनुबंध पर लगाने पड़ रहे थे। फिर कुछ साल के बाद यह अवधि पांच साल हो गई। चुनाव से पहले पूर्व सरकारों ने इसे घटकर तीन साल कर दिया। इसी तरह एक साल की और कटौती हुई और वर्तमान में कॉन्ट्रैक्ट पॉलिसी दो साल की है। पहले इसमें रेगुलर करने के लिए साल में दो अवसर दिए जाते थे। वर्तमान सरकार ने अब सिर्फ 31 मार्च की डेट को ही रखा है, लेकिन पैसा बचाने के जिस उद्देश्य के लिए इस पॉलिसी को लाया गया था, कोर्ट के फैसलों के बाद अब यह संभव नहीं है।