भ्रष्टाचार तो मन का वहम है जी…

देखो जी, मैं बाकी सारी चीज़ें बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन यह हरगिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई फिज़ूल में सरकार को पानी पी-पीकर कोसे और यह इल्जाम लगाए कि भ्रष्टाचार बढ़ गया है और सरकार सोई है। ऐसा भला कभी हो सकता है कि भ्रष्टाचार बढ़ गया हो और सरकार सोई हो? सरकार के पास इतनी फुर्सत ही कहां है कि वह घड़ी-दो घड़ी सोकर फ्रैश हो ले और मुल्क के रहनुमाओं के पास इतना समय ही कहां है कि वह घड़ी-दो घड़ी भ्रष्टाचार कर लें। उन्हें तो वैसे भी दूर-दूर तक कहीं भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता। केवल गरीबों की बदहाली दिखती है, लेकिन वे उनके लिए आखिर कर भी क्या सकते हैं। भ्रष्टाचार पर सरकार का स्टैंड भी स्पष्ट है और मेरा भी। हम दोनों के स्टैंड से एक नेताजी भी पूरी तरह सहमत हैं। उन्होंने भी भ्रष्टाचार कभी नहीं देखा। मैंने एक बार उन्हें कुरेद कर पूछा भी। वह बोले, ‘मिंया, आप भ्रष्टाचार देखने की बात पूछ रहे हो। मैंने तो चुनाव जीतने के बाद अपने हल्के की शक्ल भी पलट कर नहीं देखी।’ एक अन्य नेता से मैंने पूछा तो वह छूटते ही बोले, ‘मैं दावे से यह कह सकता हूं कि भ्रष्टाचार अंग्रेजों के दौर में कभी होता होगा, अब तो बिल्कुल भी नहीं है। अगर भ्रष्टाचार वाकई हो रहा होता तो अपना अलग-अलग काम करवाने के एवज में मुझे नोटों के बंडल थमानेे वाले लोग इतना ताना तो ज़रूर मारते कि आपके राज में भ्रष्टाचार हो रहा है। वैसे भी भ्रष्टाचार सुनी-सुनाई बात है, इस पर आपको यकीन नहीं करना चाहिए। अगर भ्रष्टाचार होता तो हमें रातों-रात अमीर बनने का मौका कहां से मिलता? हमारे पास पैट्रोल पम्प कहां से आता? हम विदेशी कार में कैसे घूमते। विदेशी बैकों में खाता कैसे खुलवाते और कहां से पैसे लाकर इन खातों में जमा करवाते? बड़े-बड़े होटलों में जाकर महंगी शराब कैसे पीते? क्लबों और पार्टियों का खर्च कहां से पूरा करते? भ्रष्टाचार नहीं है न, तभी तो हम बेफिक्र होकर यह देश सेवा कर रहे हैं।’ नेताजी की बात सुनकर मेरा यह भरोसा और पक्का हो गया कि भ्रष्टाचार इस मुल्क में कहीं नहीं है। फिर भी और अधिक तसल्ली करने के लिए मैंने एक आला अफसर से पूछा, ‘सर, आप भ्रष्टाचार बारे कुछ बता सकते हैं?’ वह सज्जन कुछ जल्दी में थे।

बोले, ‘एक ज़रूरी डील करने जा रहा हूं। फिलहाल डिटेल में नहीं बता पाऊंगा। आप सिर्फ इतना नोट कर लें कि भ्रष्टाचार के मामले में हमारी पालिसी बहुत सख्त है।’ आफिसर महोदय को थैंक्स सर कहने के बाद जैसे ही मैं पीछे मुड़ा, मेरा सामना एक कार्यालय के बाबू से हो गया। मैंने श्रद्धानवत अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए उनसे पूछा, ’हे सरकारी फाइलों के तारणहार, हे सरकारी तंत्र के घटाटोप में उम्मीदों के जलते-बुझते चिराग, क्या आपको भ्रष्टाचार के बारे में कोई जानकारी है?’ उस बाबू ने पहले मुझे गौर से ऊपर से नीचे तक देखा। फिर दार्शनिक अंदाज में बोला, ‘जैसे इस दुनिया में भूत, प्रेत, चुड़ैलें और डायनें वगैरह होती नहीं हैं, लेकिन तांत्रिक इनके अस्तित्व का हौव्वा खड़ा करके भोली-भाली जनता को डराते हैं, वैसे ही हमारे देश के कुछ सिरफिरे लोग भ्रष्टाचार का शगूफा छोडकऱ पब्लिक को डरा रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि मुल्क में भ्रष्टाचार नाम की कोई दुष्टात्मा है ही नहीं। अगर होती तो क्या आप महंगे-महंगे स्कूलों में अपने बच्चों को भिजवा पाते? उनके हाथों में महंगे-महंगे मोबाइल थमा पाते? आपकी पत्नियां किट्टी पार्टियों में जा पातीं? भ्रष्टाचार नहीं है, इसीलिए तो सब कुछ ठीक चल रहा है।’ आखिर में घर लौटते-लौटते मैंने एक पुलिस वाले से पूछ लिया, ‘आपने भ्रष्टाचार को कहीं देखा है?’ वह छूटते ही बोला, ‘सुबह एक अपराधी को तो इधर से भागते देखा था और दोपहर को एक टैक्सी वाला भी एक बुजुर्ग को टक्कर मारकर भागा था। दोनों मामलों को रफा-दफा होते भी देखा था, लेकिन भ्रष्टाचार बिल्कुल नहीं देखा।’ अब मुझे पूरी तसल्ली हो गई कि भ्रष्टाचार बारे मेरा स्टैंड बिल्कुल सही है। भ्रष्टाचार केवल मन का वहम है।

गुरमीत बेदी

साहित्यकार