चारों तरफ अदालतें

हिमाचल की राजनीतिक अनिश्चितता के बीच कई ऐसे संबोधन भी हैं जो पूरी तरह प्रदेश के लिए हैं। इन्हीं में से एक जोगिंद्रनगर की शानन विद्युत परियोजना है जो कायदे से अब तक हिमाचल की हो जानी चाहिए थी और अब तो लीज भी खत्म हो गई, तो इस अधिकार पर पर्दा क्यों। राजनीतिक अस्थिरता के बीच पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने शानन विद्युत परियोजना पर सबसे गैरराजनीतिक सामंजस्य मांगा है ताकि हिमाचल स्वाभिमान के साथ आत्मनिर्भर बन सके। विडंबना यह है कि हिमाचल के जनप्रतिनिधि अब अपने ही चुने हुए फैसलों के पराधीन हो गए हैं, तो मुद्दों की बैसाखी पर चलती हुई जनता चुनावी हार-जीत में सिर्फ वादों की खिडक़ी तक ही पहुंच पा रही है। जिस तरह राज्यसभा की एक सीट के चुनाव ने अरमानों के धुर्रे बिखेर दिए, उससे यह अनुमान लगाना कठिन है, किसका तीर-किसका तुक्का आइंदा सफल होगा। प्रदेश का मुकद्दर मोहलत मांग रहा है, तो सारी कार्यप्रणाली का दस्तूर और प्राथमिकताओं का वजूद पनाह मांग रहा है। जो सरकार अभी-अभी बजट में शिरोमणि हो रही थी, उसके लिए राजनीतिक तिजोरी को बचाना बेहद जरूरी हो गया है। ऐसे में क्या शानन परियोजना का मुद्दा और क्या आत्मनिर्भरता का सवाल। इसी अस्थिरता के बीच हिमाचल के असली विषय अब नकली की तरह दूर हो गए, तो अपनों पर शक करता सत्ता पक्ष कुटुंब से बाहर रहने लग पड़ा। सरकार के साथ सियासत के कई चुंबक होते हैं, लेकिन यहां तो नार्थ और साउथ पोल के बीच कई सिंहासन टूट गए।

अस्थिरता के बीच कांगड़ा को पर्यटन राजधानी बनाने का संकल्प और स्वागत मार्ग पर बिछा चूना खुर्दबुर्द हो गया। कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार का कडक़ फैसला और अगली सदी का रास्ता, इस अस्थिरता के कोपभवन में रो रहा है। किसी भी अस्थिर सरकार के आजू-बाजू खड़े लोग भी सीधे नहीं देख पाते, लिहाजा छिन्न-भिन्न हो जाने का खतरा अब दिमाग पर चढ़ रहा है। मंत्रिमंडल की बैठक से अचानक दो मंत्रियों के बाहर निकल आने के कदम अशांत थे या मंजिलें अब परेशान कर रही हैं सोने के महल की। इन पिंजरों से क्यों आजाद होना चाहते हैं पंछी, यहां दाने दाने पर क्यों मिट रहा खाने वाले का नाम। ऐसे में कल तक जो सरकार आजाद थी, आज इरादों में बेडिय़ां, शक्ति में एडिय़ां क्यों दुखने लगीं। कल तक जो मंच जनता की राहत में न्यायालय बने हुए थे, आज उन्हीं का मुकदमा जनता सुन रही है। चारों तरफ अदालतें और गवाहों के शोर में कठघरे तौबा कर रहे। गारंटियां अंगुलियों में खारिश कर रहीं, लेकिन हथेलियां गुस्से में चल रहीं। राजनीति की इस तासीर को क्या कहें, जो जनता के सपनों की महफिल उजाड़ कर भी बेखौफ है। बेशक सरकार अब अपने ही इरादों की पहरेदार बनकर दनादन फैसले ले सकती है और ताज्जुब नहीं होगा अगर अगले कुछ दिनों में मंत्रिमंडल की बैठकें आसमान से बातें करती दिखें। शनिवार की बैठक ने एक खूबसूरत तस्वीर बनाते हुए सांस्कृतिक परिदृश्य में कई समारोहों के रुतबे बढ़ा दिए, तो स्कूलों के अलंकरण में गौरव पुरुषों का नामकरण हो गया। जाहिर है सरकार दो वजह से गीतिशील होना चाहती है।

ये दोनों कारण राजनीतिक होते हुए भी प्रशासनिक तौर पर सराकर की क्षमता व स्थिरता के मुखर उदाहरण बनना चाहेंगे। सरकार के हर फैसले में आगे बढऩे की उत्कंठा, विरोध को सबक सिखाने की मंशा, सत्ता के बचे हुए पक्ष को संतुष्ट बनाने की अनुशंसा तथा विपक्ष को ताकत बताने की दक्षता प्रकट होने जा रही है। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले सत्ता की घोषणाएं, शासन का आचरण, कर्मचारी उदारता का संस्करण और एकजुटता का अनुसरण करने की व्याख्या में रोचक, नवीन और नवऊर्जा से सुसज्जित निर्णयों की खेप उतरती रहेगी, जब तक घोड़ों की काठियों पर सैनिक आगे बढऩे का दम भरते रहेंगे।