दाऊजी का हुरंगा : मथुरा का उत्सव

दाऊजी का हुरंगा एक प्रसिद्ध उत्सव है जो बलदेव, मथुरा, उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध दाऊजी मंदिर में आयोजित होता है। यह उत्सव होली के बाद मनाया जाता है। यहां होली खेलने वाले पुरुष हुरियारे तथा महिलाएं हुरियारिन कही जाती हैं…

आयोजन स्थल

दाऊजी का हुरंगा मथुरा के प्रसिद्ध ग्राम बलदेव में स्थित दाऊजी मंदिर में आयोजित होता है। इसमें देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु शामिल होते हैं। शेषनाग के अवतार कहे जाने वाले श्रीकृष्ण के बड़े भाई दाऊजी (बलराम) के सान्निध्य में होने वाला हुरंगा यहां का अद्वितीय पर्व है। हुरंगा की शुरुआत दोपहर बारह बजे से होती है।

ग्वाले तथा हुरियारिनें

ग्वालों का समूह अपने नायक बलराम को हुरंगा खेलने का आमंत्रण देता है। इसके बाद मंदिर में हुरंगा अपने रूप को धारण करता है। गोपों का समूह हुरियारिनों पर रंग की बरसात करता है जबकि हुरियारिन गोप समूह के वस्त्रों को फाडक़र कोड़े बनाती हैं और फिर कोड़ों की बरसात गोप समूह पर करती हैं। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु आनंद की तरंग में मस्त होकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। हुरंगा में कल्याण देव वंशज पंडा समाज ही शामिल होता है। पंडा समाज हुरंगा की महिमा का वर्णन करते हुए इस अवसर पर गायन करता है- ‘नारायण यह नैन सुख मुख सौं कहयो न जाए।’ हालांकि यहां मंदिर में वसंत पंचमी से ही धमार गायन के बीच अबीर-गुलाल खेलने की शुरुआत हो जाती है।

रंगों का प्रयोग

दाऊजी की होरी (होली) जितनी प्रसिद्ध है, उससे कहीं ज्यादा प्रसिद्ध ‘दाऊजी का हुरंगा’ है, जो धुलेंडी के अगले दिन दाऊजी महाराज के मंदिर प्रांगण में खेला जाता है। इस हुरंगा की खास बात होती है इसमें प्रयोग होने वाला रंग, जो टेसू के फूलों को पानी की होदों में भिगोकर तैयार किया जाता है। मंदिर की छत पर गुलाल से भरी बोरियां रखी होती हैं जिनके उड़ाने से मंदिर प्रांगण और दाऊजी का वातावरण पूरा होरीमय हो जाता है।