शव संवाद-35

शहर के जादूगर उस दिन मंच पर थे और जनता बेसब्री से कुछ ऐसा देखना चाहती थी, जो उसके जीवन में संभव नहीं। दरअसल जादूगरों ने तय कर रखा था कि अब देश को जादू का विश्व गुरु बनाएंगे। जनता को देश की खातिर हर जादू और हर जादूगर मंजूर है, इसलिए इस तरह के शो कहीं भी हिट हो रहे हैं, बल्कि जहां कुछ भी संभव नहीं वहां भी जादू का शो कामयाब हो रहा है। सृष्टि में जादू पहले आया या ईश्वर पर भरोसा, इस बहस मेें कई धर्म निकल आए, लेकिन हर किसी को जादू पर यकीन रहा। जादू को चलाना पड़ता है और चलाने वाले हमारे आसपास ही रहते हैं। जो काम हम कर नहीं सकते, जादू कर सकता है, बल्कि अब कुछ हो जाए या होता हुआ प्रतीत हो, जादू जैसा लगता है। हम वर्षों से जादू देख-देख कर इतने परिपक्व हो गए हैं कि हर सरकार गरीबी और बेरोजगारी दूर करती हुई लगती है। हमें वास्तव में जनप्रतिनिधि चाहिए ही कहां, एक अदद जादूगर चाहिए जो हमें दूर से दिखाए और हम विश्वास कर लें। वैसे हमारा समाज अब खुद पर अविश्वास करता है, लेकिन विश्वास की खोज में हमें जादूगर पर भरोसा करना ही पड़ता है। बुद्धि और जादू अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में चाहे अपनी-अपनी मान्यता बढ़ाते हैं, लेकिन वजन जादू का ज्यादा है और यह प्रमाणित हो रहा है। आज के युग में बुद्धि सबसे हल्की और अमान्य है। हम जादू-जादू में लोगों को चला सकते हैं, कइयों का खेल बिगाड़ सकते हैं।

उस दिन जनता असल में जादू के जरिए यह समझना चाहती थी कि उसे वोट देना किसे चाहिए। मंच पर जादूगर कभी लोगों को खिलौना बना रहे थे, तो कभी कोई जादूगर उन्हें बुद्धि व तर्क से दूर ले जाकर करिश्मा दिखा रहा था। जादूगरों के सामने अगर जनता से संविधान बदलने के लिए भी पूछा जाता तो यकीनन वह किसी न किसी जादूगर के नाम सारे अधिकार कर देती, बल्कि यह माना जा चुका है कि अब जीने का रास्ता केवल जादूगर ही दिखाएगा। अंतत: जिस इंतजार में जनता अब सबसे बड़े जादूगर का इंतजार कर रही थी, वह अवसर आ गया। यह एक अकेला जादूगर ही सब पर भारी था। उसकी डे्रस, उसकी चाल और उसके अंदाज के आगे पहले से मौजूद उजड़ चुके थे। जादूगर ने देखते ही देखते दर्शकों को हल्की-हल्की कठपुतलियों में बदल दिया। सारे दर्शकों की हरकतें उसके काबू में थीं। जादूगर ने मायाजाल फेंका, तो दर्शकों का सारा ज्ञान व्हाट्स ऐप पर आकर हार गया, लेकिन वहां मौजूद बुद्धिजीवी पर कोई असर नहीं हो रहा था। अब दर्शक उसे कोस रहे थे। कठपुतलियां नाच रही थीं, लेकिन बुद्धिजीवी स्थिर था।

इसी बीच नाचती हुई एक कठपुतली यह देखकर बेहोश हो गई कि बुद्धिजीवी जादू के बावजूद होश में था। बुद्धिजीवी उसे होश में लाने का प्रयास कर ही रहा था कि कठपुतली बना दर्शक सदमे में मर गया। वहां मरे जैसे लोग जादू से लाश में जीवन की आशा कर रहे थे, लेकिन बुद्धिजीवी ने देखा कि महान जादूगर दृश्य से हट गया था। जादू से मरा दर्शक लाश बनकर भी कठपुतली की तरह दिखाई दे रहा था। बुद्धिजीवी ने शव के हाथ से मोबाइल लेकर खोला तो वहां उसी जादूगर का मैसेज आ रहा था, ‘बहनो और भाइयो, मुझे अगले पांच साल का मौका दो। अबकी बार ऐसा जादू करूंगा कि फिर देश में किसी को भी काम करने की जरूरत नहीं। मैं जादू से मुफ्त राशन, कर्ज माफी से देश की छवि को वहां पहुंचा दूंगा, जहां पूरा विश्व हमारा मुकाबला नहीं कर पाएगा। हम भारतीय अपने इतिहास से वो सारे पन्ने खोज लेंगे, जहां देश विश्व गुरु और मैं विश्व देवता बनकर हमेशा आपको आशीर्वाद देता रहूंगा।’

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक