दियोटसिद्ध बाबा बालक नाथ

यह पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोटसिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर है। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं, जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। भागवत पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में वर्णन आता है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे, वहीं सिद्ध भी शामिल थे। नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है। इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है…

हिमाचल प्रदेश में अनेक धर्मस्थल प्रतिष्ठित हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोटसिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्धपीठ है। यह पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोटसिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर है। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं, जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। भागवत पुराण के छठे स्कंद के सातवें अध्याय में वर्णन आता है कि देवराज इंद्र की सेवा में जहां देवगण और अन्य सहायकगण थे, वहीं सिद्ध भी शामिल थे। नाथों में गुरु गोरखनाथ का नाम आता है।

इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। बाबा बालक नाथ जी के बारे में प्रसिद्ध है कि इनका जन्म युगों-युगों में होता रहा है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार ही माना जाता है। श्रद्धालुओं में ऐसी धारणा है कि बाबा बालक नाथ जी 3 वर्ष की अल्पायु में ही अपना घर छोड़ कर चार धाम की यात्रा करते-करते शाहतलाई नामक स्थान पर पहुंचे थे।
शाहतलाई में ही रहने वाली माई रतनो नामक महिला ने, जिसकी कोई संतान नहीं थी, इन्हें अपना धर्म का पुत्र बनाया। बाबा जी ने 12 वर्ष माई रतनो की गउएं चराई। एक दिन माता रतनो के ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं। इस घटना की जब आसपास के क्षेत्र में चर्चा हुई, तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है, तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा, परंतु बाबा जी के इंकार करने पर गोरखनाथ बहुत क्रोधित हुए।

जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा, तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए, जहां आजकल बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा है। बाबा जी की गुफा के सामने ही एक बहुत सुंदर गैलरी का निर्माण किया गया है, जहां से महिलाएं बाबा जी की सुंदर गुफा में प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन करती हैं। सेवकजन बाबा जी की गुफा पर रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए, तो यहां एक (दियोट) दीपक जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोटसिद्ध के नाम से भी जानते हैं। लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाएं, वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। यहां एक महीने तक वार्षिक मेला लगता है।

 जो हर वर्ष 14 मार्च से शुरू होकर 13 अप्रैल तक मनाया जाता है। मेलों के दौरान श्रद्धालुओं के ठहरने की पूरी व्यवस्था की जाती है। मेलों के दौरान चौबीस घंटे मंदिर खुला रहता है। मेले के दौरान सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से सुदृढ़ रहे इसके लिए भी पूरी व्यवस्था प्रशासन की ओर से की जाती है। साथ ही श्रद्धालुओं को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए स्वास्थ्य विभाग और आयुर्वेद विभाग के चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मचारी 24 घंटे तैनात रहते हैं।