चुनाव विपक्ष-मुुक्त नहीं

सिर्फ केजरीवाल की गिरफ्तारी के आधार पर इस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता कि 2024 के आम चुनाव ‘विपक्ष-मुक्त’ हैं अथवा चुनावी रण समतल नहीं है। केजरीवाल के मुद्दे पर तो संयुक्त विपक्ष की रैली का आह्वान किया गया है, लेकिन हेमंत सोरेन भी झारखंड के चुने हुए मुख्यमंत्री थे। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था। सोरेन की मासूमियत पर विपक्ष ने इतना शोर नहीं मचाया, जितना केजरीवाल को लेकर प्रलाप किया जा रहा है कि एक पदासीन मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया है। ईडी ने अदालत में बिंदुवार आरोप गिनाते हुए केजरीवाल को शराब घोटाले का ‘सरगना’ और ‘मुख्य साजिशकार’ करार दिया था। हवाला के जरिए करोड़ों रुपए कहां और कब पहुंचाए गए, उनके भी ब्योरे दिए गए हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने जब ईडी के दस्तावेजों और साक्ष्यों को देखा, तो वे चौंक क्यों गए? केजरीवाल को संरक्षण देने से इंकार क्यों किया? परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी की अनुमति क्यों दी? यह कैसे संभव है कि केजरीवाल के समर्थक प्रवक्ता तो सही सवाल उठा रहे हैं कि जांच एजेंसियों को बीते दो साल के दौरान घोटाले की चवन्नी तक बरामद नहीं हुई और अदालतें गलत हैं? बुनियादी सवाल यह है कि क्या केजरीवाल ही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा हैं? क्या एक पदासीन मुख्यमंत्री को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, यदि वह करोड़ों के भ्रष्टाचार में संलिप्त है? विपक्ष के महत्वपूर्ण घटक उप्र, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा आदि राज्यों में सक्रिय और प्रासंगिक हैं। वे भाजपा-एनडीए के लिए चुनौती ही नहीं, उन्हें पराजित भी कर सकते हैं।

फिलहाल वे ‘इंडिया’ गठबंधन की छतरी तले एकजुट होने का दिखावा कर रहे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीकात्मक ही है, क्योंकि ताजा संकेतों के मुताबिक, उनमें बिखराव के हालात अभी समन्वय में तबदील नहीं हुए हैं। यकीनन केजरीवाल की उपस्थिति इन राज्यों में गायब है। वे केजरीवाल की राजनीति के मोहताज नहीं हैं, लिहाजा ऐसी व्याख्या करने से बचना चाहिए कि 2024 के चुनाव विपक्ष-मुक्त हैं। लोकतंत्र और संविधान भी बिल्कुल सुरक्षित हैं। कमोबेश इस वक्त का विपक्ष उन्हें बचाने का ढोंग नहीं कर सकता। लोकतंत्र और संविधान इतने कमजोर नहीं होते कि एक मुख्यमंत्री को जेल हो गई, तो वे ध्वस्त हो गए! ईडी, सीबीआई, आयकर आदि ने पहले की सरकारों के दौरान भी विपक्ष के खिलाफ कार्रवाइयां की थीं और आज भी सिलसिला जारी है। कुछ आंकड़ों का औसत कम-ज्यादा हो सकता है। केजरीवाल ही लोकतंत्र और संविधान की आधार-भूमि नहीं हैं। केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) राजधानी दिल्ली की 7 और पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर जनादेश की दिशा और दशा तय करने में सक्षम हो सकती हैं, लेकिन संसदीय चुनाव में दिल्ली के 50 फीसदी से अधिक मतदाता भाजपा के पक्ष में वोट करते रहे हैं, ऐसे चुनावी रुझानों का इतिहास साक्षी रहा है। दिल्ली और पंजाब में कुछ हद तक मतदाताओं की सहानुभूति केजरीवाल के पक्ष में कारगर साबित हो सकती है, लेकिन वह चुनावी लहर की दिशा नहीं बदल सकती।

कांग्रेस अपने बैंक खातों को फ्रीज किए जाने को लोकतंत्र का दमन मान रही है। ये दुष्प्रचार भी विपक्ष की रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। दरअसल बैंक खाते पूरी तरह आयकर विभाग ने फ्रीज नहीं कराए हैं। अब भी खातों में पर्याप्त पैसा है और कांग्रेस 115 करोड़ रुपए छोड़ कर शेष राशि चुनाव या अन्य मदों पर खर्च कर सकती है। यह भी दुष्प्रचार किया जा रहा है कि भाजपा सरकार विपक्ष के उन मुख्यमंत्रियों अथवा नेताओं को भी जेल में डलवा सकती है, जो उसके लिए राजनीतिक खतरा पेश कर सकते हैं। भारत एक संवैधानिक देश है, जहां सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के भी कई फैसलों को पलटा है। बहरहाल चुनाव अपेक्षाकृत निष्पक्ष व स्वतंत्र हों, चुनाव आयोग इस प्रयास में है।