गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

बारह आदित्य से तात्पर्य है सूर्य द्वारा बनने वाले बारह महीने। आठ वसु का अर्थ है अग्रि, वायु, जल, सूर्य, नक्षत्र, पृथ्वी, आकाश और चंद्र। साध्य का अर्थ है कि निराकार परमेश्वर की उपासना करने वाले साधक…

गतांक से आगे…
शोक 11/22 में श्रीकृष्ण महाराज से अर्जुन कह रहे हैं कि जो ग्यारह रुद्र एवं बारह आदित्य और आठ वसु साध्यगण अर्थात वेदानुसार निराकर ब्रह्म की उपासना करने वाले साधक विश्वेदेव और दोनों अश्विनी अर्थात सूर्य एवं चंद्रमा और मरुदगण उनचास वायु और पितरगण तथा गंधर्वों, यक्ष, असुर सिद्ध पुरुषों का संघ सब ही विस्मित हुए आपको देखते हैं। भावार्थ- यहां रुद्र उसे कहते हैं जो जीव रूलाने वाला है। प्राण, अपान आदि दस और ग्यारहवां जीवात्मा जब शरीर से निकल जाता है तब उसके भाई बंधु रोते हैं, अत: ग्यारह रुद्र यहां कहे गए हैं। बारह आदित्य से तात्पर्य है सूर्य द्वारा बनने वाले बारह महीने। आठ वसु का अर्थ है अग्रि, वायु, जल, सूर्य, नक्षत्र, पृथ्वी, आकाश और चंद्र। साध्य का अर्थ है कि निराकार परमेश्वर की उपासना करने वाले साधक।

इस विषय में अथर्ववेद मंत्र 7/79/2 में कहा कि मैं ही अमावस्या हूं, शुभ कर्म करने वाले देव मुझमें निवास करते हैं। (साध्या: च) साध्यजन अर्थात जो निराकार परमेश्वर की उपासना करते हैं (च) और जो सिद्ध पुरुष अर्थात जो साधना करते-करते उच्च अवस्था को प्राप्त हो गए हैं, वह भी (उभयो) दोनों ( मचि समगच्छंत) मुझमें संगति करते हैं अर्थात जो नित्य यज्ञ करते हैं और अमावस्या के दिन विशेष यज्ञ करते हैं उनमें ही देव अर्थात दिव्यगुण आने लगते हैं। अभिप्राय यह है कि जो मनुष्य योनि में मनुष्य विद्वान देव और सिद्ध पुरुष आदि हैं, वह जब देवों को आचार्य से सुनते हैं, वेदों का मनन आदि करते हैं, तब भी वेदों में कही तीनों विद्याएं अर्थात विज्ञान, कर्म कांड एवं उपासना आदि की विराट रहस्यमयी तत्त्व को सुन-सुनकर चकित हो जाते हंै। -क्रमश: