गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

यही ईश्वर की विचित्र रचना आदि देखकर सुनने वाला भी आश्चर्यचकित हो जाता है, यही श्लोक के भाव है। हम भगवद्गीता के अनुसार वेदाध्ययन, योगाभ्यास आदि द्वारा केवल इस ही निराकार परमेश्वर की पूजा करें अन्य की नहीं…
गतांक से आगे…
अत्यधिक आश्चर्य तो ईश्वर की अनुभूति करने वाले धर्ममेघ समाधि को प्राप्त हुए कपिल मुनि, गुरु वशिष्ठ, व्यास मुनि जैसे अनंत ऋषि-मुनियों को होता आया है जो अपने स्वरूप को भूलकर भी यजुर्वेद मंत्र 37/2 के अनुसार अपना मन और बृद्धि ईश्वर में समाहित कर देते हैं। द्युलोक, पृथ्वीलोक, चंद्रमा आदि तो जड़ पदार्थ हैं, यह सब भी तो उसी निराकार परमेश्वर के आश्रित हैं, क्योंकि वह एक ही निराकार, सर्वव्यापक, सृष्टि रचयिता परमेश्वर ऋग्वेद मंत्र 10/129/7 के अनुसार जड़ और चेतन दोनों ही तत्त्वों का स्वामी है और दोनों ही तत्त्वों को आश्रय देकर अपने अंदर सुरक्षित रखा हुआ है। यही ईश्वर की विचित्र रचना आदि देखकर सुनने वाला भी आश्चर्यचकित हो जाता है, यही शोक के भाव है।

हम भगवद्गीता के अनुसार वेदाध्ययन, योगाभ्यास आदि द्वारा केवल इस ही निराकार परमेश्वर की पूजा करें अन्य की नहीं। हमें रहस्यों को जानने के लिए और पाखंड व झूठ का नाश करने के लिए पुन: वेदों की ओर लौटना होगा। शोक 11/23 में अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज से कह रहे है कि हे महान शक्तिशाली भुजाओं वाले श्रीकृष्ण आपके बहुत मुख वाले तथा बहुत नेत्रों वाले, बहुत बाहु, जंघाओं और पैरों वाले, बहुत उदरों वाले, बहुत भयंकर दाड़ों वाले महान रूप को देखकर सब लोक व्यथित अर्थात बेचैन हो रहे हैं और मैं भी व्यथित हो रहा हूं। भाव- बहुत मुख, बहुत नेत्र, बहुत भुजाएं, जंघाएं और बहुत उदर(पेट) मनुष्य शरीर धारण करने वाले किसी भी मनुष्य आदि के नहीं होते हैं। यह अलंकार युक्त भाषा केवल एक निराकार, अनादि, अनंत गुणों वाले, सर्वव्यापक परमेश्वर पर ही लागू होती है, क्योंकि परमेश्वर कभी मनुष्य आदि का शरीर धारण नहीं करता। – क्रमश: