गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

यहां ऐसा अलंकार प्रयोग हुआ है। इस महान शक्ति को जानने वाले विद्वान भय के कारण बेचैन हैं, क्योंकि आज भी प्रत्येक प्राणी मौत से भयभीत है, पहले भी था और आगे भी रहेगा…

गतांक से आगे…
शोक  11/23 में बहुत भयंकर दाड़ों का भाव है कि निराकार परमेश्वर संसार की व्यवस्था, वैदिक नियम के अनुसार एवं कर्मानुसार छोटे-बड़े भयंकर, पशु-पक्षी सबको काल का ग्रास बनाता रहा है। अत: वेदों में उसे रुद्र अर्थात रूलाने वाला भी कहा है। इससे अधिक और क्या कहें कि पल भर में ही वह समस्त संसार का संहार करके अपने अंदर आश्रय देकर रखता है। इसी गुण के कारण उस निराकार परमेश्वर को शोक  11/23 में भयंकर दाड़ों वाला कहा है अर्थात जैसे कोई शेर और हिंसक पशु अपने शिकार को दाड़ों में दबाकर निगल जाता है, परमेश्वर नित्य सबको काल का ग्रास बनाता रहा है।

मानो परमेश्वर समस्त संसार को अपनी भयंकर दाड़ों में दबाकर निगल जाता हो। यहां ऐसा अलंकार प्रयोग हुआ है। इस महान शक्ति को जानने वाले विद्वान भय के कारण बेचैन हैं क्योंकि आज भी प्रत्येक प्राणी मौत से भयभीत है, पहले भी था और आगे भी रहेगा।
‘स्वरस्वाही विदुषोऽपि तथा रूढ़ोडभिनिवेश:’

अर्थात चाहे ज्ञानी हो, चाहे मूर्ख हो, मृत्यु सभी पर आती है। सबको काल एक दिन खा जाता है। आज भी प्राणी कर्मों का भोग देखकर प्राय: भयभीत होकर ही जीवन व्यतीत कर रहा है। क्योंकि कोई मुकदमों से, कोई रोगों से, कोई परेशानियों से, कोई गृहस्थ से, कोई धन की कमी से, कोई ज्यादा पैसे रखकर चोरी आदि के डर से भी अत्यंत भयभीत सा होकर रहता है।

अथर्ववेद कांड चार, सूक्त 35 में कहा,
‘मृत्यम अति तराषि’ कि हे प्राणियों, रोगों एवं मृत्यु आदि पर चलकर परेशानियों, रोगों एवं मृत्यु आदि पर विजय प्राप्त करो। अंत में अर्जुन कहता है कि हे योगेश्वर श्रीकृष्ण मैं भी यह सब सोच-सोचकर व्यथित हूं। – क्रमश: