भाजपा की खातिरदारी में

पौधे फिर से जमीन से, उखड़े अपनी जमीर पर। कौन किसको झटका दे गया, कौन दे रहा और कौन दे पाएगा, इसको लेकर हिमाचल की राजनीति को खुद पर संशय है। भाजपा लगातार कांग्रेस को हैरान करने के सामथ्र्य में, अधिकांश भाजपाइयों को परेशान करने की जहमत उठा रही है। ऐसा जिगरा राजनीति के संदर्भों को पलटी मार रहा है या फैसलों की फेहरिस्त में अति आत्मविश्वास का खतरा पनप रहा है। पहले मंडी से कंगना और कांगड़ा से डा. राजीव भारद्वाज को उतार कर भाजपा ने कई कतारबद्ध पंक्तियां तोड़ी हैं, तो अब कल तक कांग्रेस के बागी विधायक ठहराए गए, आगामी उपचुनाव के गाल सहलाते हुए भाजपा के उम्मीदवार बने हैं। सभी छह पूर्व कांग्रेसी विधायक भाजपा की गलबहियों में ऐसा भविष्य संवारना चाहते हैं, जिसकी परिणति में अतीत और वर्तमान का बैर चस्पां है। इस फैसले का रायता कितना फैलता है, कुछ अंदाजा बेचारे मेहमानों के स्वागत पर छाई मायूसी बता रही है। पहले सवाल पचाने का है, फिर आगे बढ़ाने का है। ऐसा भी नहीं कि भाजपा की खातिरदारी में कोई कमी रहेगी, लेकिन चूल्हे पर चढ़ी तरकारी शिकायत कर रही। कमाल तो यह कि भाजपा द्वारा छह के छह पूर्व कांग्रेसी विधायकों को अपनाने के अपनत्व का घनत्व, गहरे राज लिए है। यह फांस किसके लिए संपूर्ण क्रांति लाती है, यह कहना ठीक से भले ही मुश्किल हो, लेकिन दलबल का जादू शीर्षासन अवश्य कर रहा है।

नई संगत में पारंगत होने की चुनौती देवेंद्र कुमार भुट्टो, चैतन्य शर्मा, रवि कुमार, इंद्रदत्त लखन पाल, राजिंद्र राणा से सुधीर शर्मा तक है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह भाजपा के भीतर ठनक रही थाली बता रही है। कुछ तो है तेरे मदीने में, वरना लोग क्यों घुटनों के बल फरियाद करते। जो आशंकाएं कंगना रनौत के आने से मंडी महसूस कर रही थी, उसका समाधान सोशल मीडिया कर रहा है। कंगना बनाम सुप्रिया श्रीनेत विवाद में झूमती राजनीति बता रही है कि उम्मीदवार दिया है तो भाजपा ने इंतजाम भी किया है। इसी तरह उपचुनाव में कांग्रेस के पूर्व विधायक झौंके हैं, तो घर और बाहर झाड़ू का इंतजाम किया है। यह सिर्फ नहले पे दहला का चुनाव न होता तो हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस राज्यसभा की सीट न गंवाती, लेकिन इस बार चुनावी घालमेल में बड़ा व्यापार और हिसाब होगा। यह हिसाब कांग्रेस को लगाना है कि अपने ही विधायकों द्वारा खाली की गई सीटों पर अब किसे खड़ा करे। दूसरी ओर भाजपा को अपना राजनीतिक व्यापार दिखा कर घर को शांत और कांग्रेस के मोहल्ले को परेशान कैसे करना है। मंडी की सीट पर कंगना रनौत के बहाने स्त्री अस्मिता के प्रश्र पैदा करके भाजपा ने अपने चक्रव्यूह की रेंज बता दी है। पार्टी के पुराने घोड़े भले ही भगदड़ की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन भाजपा के अस्तबल में नए दौड़ रहे हैं। आखिर जनता केंद्र में जिसकी सरकार आने का सोच रही है, उसी की निगाह में उपचुनाव तौले जाएंगे।

अगर दिल्ली में परिवर्तन की सुगबुगाहट सुनाई दी, तो सुक्खू के दिशा परिवर्तन में उपचुनाव लिखे जाएंगे, वरना फिर हिमाचल का मन ये उपचुनाव बताएंगे। आंकड़ों की रद्दोबदल में आरंभिक तौर पर कांग्रेस को बस एक कदम जीतना है, लेकिन दूसरे पलड़े का बढ़ता बोझ जख्मों को कितना सालता है, यह भी देखना है। कहना न होगा कि भाजपा फिर से घेराबंदी की फितरत में कांग्रेस को नचा सकती है, लेकिन इस बार घर के भीतर उठते बवाल को भी तो काबू में रखना होगा। निश्चित रूप से कांग्रेस के बागी विधायक इतने भी हल्के नहीं कि अपने हलकों में यूं ही शून्य हो जाएंगे। उन्हें सिर्फ यह वजह बतानी है कि क्यों अपनी ही सरकार की वजह से वे दरकिनार हुए। उनके पास सरकार के विरोध में सिर्फ तकरार नहीं, जनापेक्षाओं से जुड़े आंदोलन भी हैं। अपनी ही डेढ़ साल की सरकार की डींगों को पीटने के लिए मुद्दों के जमात, ये विरोधी उपचुनाव भी तो साबित हो सकते हैं।