क्या चीन निशाने पर…?

पाकिस्तान में दो वारदातें ऐसी हुई हैं, जिनका निशाना चीनी नागरिकों की तरफ लगता है। पाकिस्तान की सुरक्षा समस्याएं एक बार फिर बदतर होती जा रही हैं। एक घटना बीते सोमवार को हुई, जब ‘बलोच मुक्ति सेना’ के चरमपंथियों ने पाकिस्तान के नौसेना बेस ‘पीएनएस सिद्धिक’ में घुसने की कोशिश की। यह खबर जानबूझ कर छिपा दी गई, अलबत्ता इसके फलितार्थ बेहद गंभीर हो सकते थे। यह हमलानुमा प्रयास ग्वादर बंदरगाह क्षेत्र पर किए गए हमले के करीब एक सप्ताह बाद किया गया। हालांकि सुरक्षा बलों ने हमले को नाकाम कर दिया। ग्वादर चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का केंद्रीय स्थान है, जबकि नौसेना बेस चीनी ड्रोन्स का आतिथ्य करता है। यदि बलोच चरमपंथी नौसेना अड्डे में घुसने में कामयाब हो जाते, तो न जाने क्या हो सकता था? पाकिस्तान के अशांत क्षेत्र-खैबर पख्तूनख्वा-में ‘बलोच मुक्ति सेना’ अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रही है। खनिजों से सम्पन्न बलूचिस्तान पाकिस्तान के व्यवहार, रवैये और वहां की हुकूमत को ‘साम्राज्यवादी’ करार देता रहा है। वहां के चरमपंथी पाकिस्तान की फौज पर भी हमले करते रहे हैं। चूंकि आर्थिक कॉरिडोर को ‘बलोच चरमपंथी’ पाकिस्तान के औसत गरीब को लूटने वाली परियोजना मानते रहे हैं। इससे फौज के जनरलों के ‘संभ्रांत वर्ग’ को ही फायदा है, क्योंकि उन्हें करोड़ों डॉलर के नए कर्ज चीन से मिलते रहे हैं। बहरहाल दूसरी वारदात एक आतंकी हमले सरीखी थी।

बीते मंगलवार को पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में एक आत्मघाती हमले में चरमपंथियों ने 5 चीनी इंजीनियरों और एक पाकिस्तानी वाहन चालक को मार दिया। हमलावरों ने विस्फोटकों से भरे वाहन से उनकी गाड़ी को टक्कर मारी और विस्फोट जानलेवा साबित हुआ। चीनी इंजीनियर एक पनबिजली परियोजना पर काम कर रहे थे। हमला उस वक्त किया गया, जब वे इस्लामाबाद से कोहिस्तान की ओर जा रहे थे। आत्मघाती हमले से साफ है कि पाकिस्तान में आर्थिक कॉरिडोर के लिए सब कुछ ठीक नहीं है। चरमपंथी हुकूमत और फौज के प्रिय दोस्तों, चीनियों को, भी निशाना बना रहे हैं। हालांकि ऐसे चीनी इंजीनियरों को पाकिस्तान में पर्याप्त सुरक्षा-व्यवस्था मुहैया कराई जा रही है, लेकिन हमले रुक नहीं पा रहे हैं। 2023 में भी ग्वादर में चीनी नागरिकों पर हमला किया गया था, जिसमें चार चीनी मारे गए थे। पाकिस्तान आतंकवाद को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में ‘मास्टर’ है। ‘बलोच मुक्ति सेना’ वर्षों से इस्लामाबाद के लिए ‘कांटा’ साबित होती रही है। पाकिस्तान के लिए आतंकवाद कई मायनों में स्वीकार्य है। हालांकि वहां भी आतंकवाद ने हजारों मासूम नागरिकों की जिंदगी छीनी है, फिर भी आतंकी हमलों से पाकिस्तान न तो चिंतित होता है और न ही बेचैन होता है। अब चीनी इंजीनियरों की हत्या को लेकर पाकिस्तान अपनी पुरानी दलीलें दे सकता है, लेकिन चीन भी उससे विमुख नहीं हो सकता, क्योंकि कॉरिडोर पर अरबों डॉलर खर्च किए जा चुके हैं और यह चीन के लिए बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना है।

पाकिस्तान के नौसेना और हवाई सेना के कई अड्डों पर चीन का अघोषित कब्जा है। यह रणनीतिक तैनाती भी वह छोड़ नहीं सकता। पाकिस्तान आतंकवाद के कई अन्य मोर्चों पर नाकाम रहा है। मसलन-इस्लामाबाद से नवम्बर, 2022 में युद्धविराम समाप्त होने के बाद पाक तालिबानियों ने हमलों की रफ्तार बढ़ा दी है। जब अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत बन रही थी, तब पाकिस्तान बहुत उछल रहा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘जंजीरों के टूटने’ की बात कही थी। तब पाकिस्तान तालिबानी लड़ाकों को प्रशिक्षण देने के पक्ष में था। अब वही तालिबान पाकिस्तान के लिए ‘भस्मासुर’ बने हैं। चीन को एहसास है कि उसने पाकिस्तान को जितना कर्ज दिया है, उसकी वापसी मुनासिब नहीं है, लेकिन चीन सार्वजनिक तौर पर यह कबूल भी नहीं कर सकता। उसे यह भी पता है कि पाकिस्तान सभी मौसमों के लिए उसका दोस्त है, तो सभी मौसमों की मुसीबत भी है। भारत ने पाकपरस्त घुसपैठ और आतंकी हमलों पर बहुत-सी बंदिशें लगा दीं। अब देखना है कि हालिया हमलों और हत्याओं का संज्ञान चीन किस तरह लेता है?