जनसंघ के रामरतन शर्मा ने 22 हजार रुपए में जीत लिया था लोकसभा चुनाव, बनाया था यह रिकॉर्ड

1971 के चुनावी रण में कम खर्च में बनाया था जीतने का रिकॉर्ड

लोकसभा चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी पानी की तरह पैसा बहाते हैं। अनाप-शनाप खर्च पर अंकुश लगाने के लिए निर्वाचन आयोग ने 70 लाख रुपए खर्च की सीमा निर्धारित की है, जबकि 50 साल पहले लोकसभा चुनाव बांदा चित्रकूट संसदीय सीट से प्रत्याशी रहे रामरतन शर्मा ने मात्र 22 हजार रुपए खर्च कर जीत लिया था। उस समय भी अन्य प्रत्याशी चुनाव जीतने पर लाखों रुपए खर्च करते थे। इतने कम रुपए में चुनाव जीतकर रामरतन शर्मा ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया था, जिससे अन्य प्रत्याशियों को प्रेरणा लेनी चाहिए। इस समय लोकसभा चुनाव में धन और बाहुबलियों का बोलबाला है। जो मतदाताओं को अपने पाले में खींचने के लिए अनाप-शनाप पैसा खर्च करते हैं।

मतदाताओं को पैसे का प्रलोभन देते हैं, इसके अलावा तमाम गिफ्ट का लालच देकर उन्हें अपने पक्ष में वोट डालने के लिए बाध्य करते हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। अपनी पसंद का प्रत्याशी चुनने के लिए मतदाता बिना किसी लालच के अपने मताधिकार का प्रयोग करते थे। यही वजह है कि तब प्रत्याशियों को चुनाव जीतने के लिए लाखों रुपए नहीं फूंकने पड़ते थे। अगर हम यूपी के बांदा चित्रकूट संसदीय क्षेत्र की बात करें, तो यहां से 1971 में जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े रामरतन शर्मा ने कम खर्च में चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया था।

धनबल से नहीं, पसीना बहाकर जीता जाता था इलेक्शन

इस बारे में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष और दिवंगत पूर्व सांसद रामरतन शर्मा के पुत्र अशोक त्रिपाठी जीतू बताते हैं कि उनके पिता रामरतन शर्मा को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुत चाहते थे। सन् 1971 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ के टिकट पर पिताजी जी प्रत्याशी बनाए गए थे। तब चुनाव धनबल से नहीं पसीना बहा कर जीता जाता था। प्रत्याशी लग्जरी गाडिय़ों के बजाय साइकिल, बैलगाड़ी और पैदल ही प्रचार करते थे। प्रचार के दौरान प्रत्याशियों को जिस गांव में भूख लगती थी उस गांव में किसी मतदाता के दरवाजे पर रुक जाते थे और वही भोजन पानी भी कर लेते थे। इसकी वजह से उनका चुनाव खर्च कम होता था।

पार्टी ने दिए थे 40 हजार रुपए,18 हजार बचाकर वापस लौटाए

अशोक त्रिपाठी जीतू बताते हैं कि उनके पिता राम रतन शर्मा को चुनाव लडऩे के लिए पार्टी की ओर से 40 हजार रुपए दिए गए थे। चुनाव जीतने के बाद पिताजी के पास उस फंड के 18 हजार रुपए बच गए थे। इस तरह उन्होंने मात्र 22 हजार रुपए में ही पूरा चुनाव जीत लिया था। चुनाव जीतने के बाद पिताजी ने शेष 18 हजार रुपए पार्टी को वापस कर दिए था, लेकिन अब बहुत बड़ा परिवर्तन आ गया है। आजकल लाखों रुपए फंड मिलने के बाद भी प्रत्याशी चुनाव लडऩे के लिए चंदा वसूल करते हैं और फिर चुनाव जीतकर पांच साल कमाई के लिए जुट जाते हैं।

2019 के चुनाव में 60000 करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए

बताते चलें कि सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने 2019 लोकसभा चुनाव की जो रिपोर्ट दी है। उसके मुताबिक 2019 में कुल 60000 करोड़ रुपए चुनाव में पानी की तरह बहाया गया था। इस लिहाज से देखें तो औसतन हर मतदाता पर 700 रुपए खर्च किए गए, जबकि देश के पहले लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने प्रति मतदाता पर केवल 60 पैसे खर्च किए थे। जो 2004 में बढक़र 17 रुपए और 2009 में 12 रुपए इसके बाद 2014 में बहुत उछाल आया जो खर्च बढक़र 46 रुपए हो गया और 2019 में सर्वाधिक 700 रुपए तक पहुंच गया।