महाशिवरात्रि : रोग-दोष खत्म करने वाला व्रत

महाशिवरात्रि अथवा शिवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसे शिव चौदस या शिव चतुर्दशी भी कहा जाता है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं। शिवरात्रि हर महीने में आती है, परंतु फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यंत शुभ कहा गया है…

महाशिवरात्रि
किसी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कही जाती है, किंतु माघ (फाल्गुन, पूर्णिमांत) की चतुर्दशी सबसे महत्त्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है। गरुड़पुराण, स्कंदपुराण, पद्मपुराण, अग्निपुराण आदि पुराणों में उसका वर्णन है। कहीं-कहीं वर्णनों में अंतर है, किंतु प्रमुख बातें एक सी हैं। सभी में इसकी प्रशंसा की गई है। जब व्यक्ति उस दिन उपवास करके बिल्व पत्तियों से शिव की पूजा करता है और रात्रि भर जागरण करता है तो शिव उसे नरक से बचाते हैं और आनंद एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिव हो जाता है। दान, यज्ञ, तप, तीर्थ यात्राएं, व्रत इसके कोटि अंश के बराबर भी नहीं हैं।

शिव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है।

शिवरात्रि से आशय
शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।

महाशिवरात्रि कैसे मनाएं
तिथितत्त्व के अनुसार इसमें उपवास प्रमुखता रखता है, उसमें शंकर के कथन को आधार माना गया है- ‘मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूं, जितना उपवास से।’ किंतु हेमाद्रि, माधव आदि ने उपवास, पूजा एवं जागरण तीनों को महत्ता दी है।

कैसे करें उपवास
रात्रि में उपवास करें। दिन में केवल फल और दूध पिएं। भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मंत्र
देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब॥
तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि॥
का यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से
युक्त भजन गाएं। ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें। रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यत: शामिल करना चाहिए।

शिव भक्तों का महापर्व
महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन फरवरी या मार्च में आता है। शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ है। भक्तगण विशेष पूजा आयोजित करते हैं, विशेष ध्यान व नियमों का पालन करते हैं। इस विशेष दिन मंदिर शिव भक्तों से भरे रहते हैं, वे शिव के चरणों में प्रणाम करने को आतुर रहते हैं। मंदिरों की सजावट देखते ही बनती है। हजारों भक्त इस दिन कांवड़ में गंगा जल लाकर भगवान शिव को स्नान कराते हैं। महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित दो कथाएं इस पर्व से जुड़ी हैं :

प्रथम कथा : एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौनसा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अघ्र्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।

द्वितीय कथा : इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का तांडव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा तांडव नृत्य से सृष्टि खंड-खंड हो जाए। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।