पाकिस्तान बसाने को सीएए नहीं

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की व्याख्या ही बदलने की कोशिश की है। उन्होंने कुछ सवाल उठाए हैं, जो भावोत्तेजक हैं। उनकी मंशा हिंदू-मुसलमान से आगे बढक़र आर्थिक संसाधनों और स्थितियों पर केंद्रित करने की है, ताकि राजनीति की दिशा और दशा बदली जा सके। हालांकि ऐसी संभावनाएं नगण्य हैं। संयुक्त राष्ट्र नागरिकता को व्यक्तिपरक सुरक्षा का बुनियादी तत्त्व मानता है और प्रताडि़त, शोषित, मानवाधिकार कुचलन के शिकार लोगों को ‘शरणार्थी’ के तौर पर किसी भी देश में प्रवेश करने को ‘मानवीय कर्म’ मानता है। संयुक्त राष्ट्र ऐसे अंतरराष्ट्रीय समझौते का भी जिक्र करता है, जिसके तहत शरणार्थियों को नागरिकता भी दी जा सकती है। केजरीवाल ने उत्तेजित अवस्था में कहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के लोगों को भारत में बसाने का कानून बनाया गया है। कल हमारे देश में चोरियां, डकैतियां, बलात्कार होंगे। जगह-जगह दंगे भी भडक़ेंगे। देश की सुरक्षा-व्यवस्था का क्या होगा? केजरीवाल का आकलन है कि अब जो पलायन होगा, वह भारत-विभाजन से भी बड़ा और खतरनाक होगा। केजरीवाल के मुताबिक, तीनों पड़ोसी देशों से 2.5 करोड़ से अधिक लोगों का पलायन हो सकता है। भारत सरकार उन्हें कहां रखेगी? कहां घर देगी? कहां खाने को अनाज देगी? कितनी नौकरियां और रोजगार दिए जा सकेंगे? देश के आर्थिक संसाधन तो सीमित हैं। हमारे नौजवानों के लिए नौकरी, रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं हैं और भाजपा ने देश के भीतर एक और पाकिस्तान को बसाने का कानून बनाया है। केजरीवाल ने सीएए को भाजपा का वोट बैंक तैयार करने की रणनीति करार दिया है।

बहरहाल केजरीवाल के अपने तर्क और राजनीति-शास्त्र हो सकते हैं। वह सीएए पर सांप्रदायिक उन्माद फैलाने वाली भीड़ में शामिल नहीं होना चाहते, लिहाजा आर्थिक संसाधनों के आधार पर भावोत्तेजक राजनीति कर रहे हैं। विभाजन के दौर का वीभत्स और त्रासद सरकारी आंकड़ा यह है कि पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश), अफगानिस्तान तीनों पड़ोसी देशों से 72 लाख के करीब लोगों ने पलायन किया था। हालांकि अनौपचारिक आंकड़े ये हैं कि तब 2 या 2.5 करोड़ से अधिक लोगों ने पलायन किया होगा! ये आंकड़े विभिन्न संगठनों और मीडिया प्रतिनिधियों ने जुटाए थे। भारत-विभाजन से ज्यादा खौफनाक घटनाक्रम उस दौर में कोई और नहीं हुआ। हालांकि कुछ सालों के बाद तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा और हजारों नागरिकों ने, चीन से पलायन करके, भारत में शरण मांगी थी। तब के गरीब भारत ने उन्हें भी सम्मान से ‘शरणार्थी’ बनाया। आज भी तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमाचल के धर्मशाला में काम कर रही है। आज भी भारत के कई शहरों में तिब्बती ऐसे बसे हैं मानो वे भारत के ही नागरिक हों! दरअसल सीएए कोई निरंतर प्रक्रिया नहीं है। जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 तक आवेदन किया है अथवा भारत में शरणार्थी बने हैं, उन्हीं पर सीएए के तहत फिलहाल विचार किया जाएगा। यह तारीख सरकार ने तय की है, लेकिन वह यह भी मानती है कि इन तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों का उत्पीडऩ, अपहरण, धर्मांतरण, जबरन निकाह, पूजा-स्थलों के विध्वंस और अन्य अत्याचार लगातार जारी रहे हैं। फिर यह तारीख किस आधार पर तय की गई है? 1947 के बाद वाले दौर में भारत अपेक्षाकृत बहुत गरीब था, लेकिन आज तो विश्व की 5वीं सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है। सीएए पर जनता को उकसाना, भडक़ाना नहीं चाहिए।