स्वर्ग तक पहुंचने के लिए अढ़ाई सीढिय़ां बनानी ही बाकी रह गई थीं और फिर कुछ ऐसा हो गया

सुनील दत्त—जवाली

पौंग झील के मध्य में स्थित पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान निर्मित ऐतिहासिक बाथू दी लड़ी स्थल के जल से बाहर निकलते ही पर्यटकों का आवागमन शुरू हो गया है। पौंग झील का जलस्तर बढऩे के साथ ही यह स्थल पानी में समा जाता है और 6 माह तक पानी में ही समाया रहता है तथा जैसे ही जलस्तर कम होता है, तो यह स्थल बाहर निकल आता है।

करीब चार माह तक यह स्थल पानी से बाहर रहता है तथा इस दौरान मंदिर में हिमाचल के अलावा बाहरी राज्यों से पर्यटक आते हैं। इस बार सरकार द्वारा पर्यटकों को झील में घुमाने के लिए मोटरवोट लगाई गई है, जिसमें बैठ कर पर्यटक झील में घूम रहे हैं। लोगों ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि इस स्थल पर पुलिस कर्मी लगाए जाएं, ताकि झील में डूबने से किसी पर्यटक की मौत न हो। कथानुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों के अज्ञातवास के दौरान स्वर्ग को जाने के लिए किया था। इस स्थल पर प्रवेशद्वार व निकासी द्वार बनाया गया है। द्रोपदी को नहाने के लिए कुआं निर्मित किया गया है तथा पूजा के लिए मंदिर बनाया गया है।

इसका निर्माण एक ही रात में करना था। पांडवों ने छह माह की एक रात बना डाली। अभी स्वर्ग तक पहुंचने को अढ़ाई सीढिय़ां ही शेष बची थीं कि तेलिन के चिल्लाने की आवाज आई, जिसके सुनते ही पांडव इसको अधूरा छोडक़र आगे चले गए। सारी सीढिय़ां भी गिर गईं। इसकी काफी मान्यता है तथा यह स्थल विश्व के पटल पर अपनी पहचान बना चुका है। एसडीएम जवाली विचित्र सिंह ने कहा कि पुलिस की गश्त लगवाई जाएगी तथा पर्यटकों से भी आग्रह किया है कि झील में नहाने न उतरें।