पे एरियर व चतुर्वार्षिक श्राद्ध

सरकार हो तो ऐसी। जो न केवल अपने कर्मचारियों के इहलोक की चिंता करे बल्कि उनके परलोक के लिए भी ऐसे कल्याणकारी क़दम उठाए कि आने वाली पीढिय़ाँ भी अश-अश कर उठें। न उन्हें अपने सगे सम्बन्धियों की तेरहवीं की चिंता हो, न मासिक श्राद्ध की, न बरसी और न चतुर्वार्षिक श्राद्ध की। अगर कोई राज्य सरकार किसी के पिता या दादा के ज़रिए उन्हें बरसों तक किश्तों में मिलने वाले पे एरियर का बंदोबस्त कर दे तो हो सकता है कि वह उनकी बड़ी सी तस्वीर न केवल अपने घर के ड्राईंग हाल में लगाए बल्कि वह उन्हें अपना इष्ट देव भी मानने लगे। आज़ादी के इस अमृत काल में जब बेरोजग़ारी और महंगाई से जूझता आम आदमी थोथे राष्ट्रवाद और ज़ात-धर्म की अफीम खाकर विश्व जमुलानवाज़ को चार सौ पार करवाने के लिए अपना लंगोट कस चुका हो, ऐसे में हिमाचल सरकार का यह कल्याणकारी क़दम उसे हिमाचली नाटियों के बाद गिनीज़ बुक ऑव रिकॉर्ड में स्थान दिलवा सकता है। इस फार्मूले के आधार पर कर्मचारियों को अगले तीस सालों से अधिक एरिअर की अदायगी होती रहेगी। जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के ध्येय वाक्य की तरह अब हिमाचल सरकार का मोटो होगा, ‘जि़ंदगी के साथ भी, जि़ंदगी के बाद भी।’ हिमाचल सरकार ने अपनी छीछालेदर होने के बाद तीस साल से अधिक तक अदा होने वाले पे एरियर और महंगाई भत्ते की इस अधिसूचना को एक ही दिन में वापस ले लिया, पर इस फार्मूले के आविष्कार के लिए राज्य सरकार, उसके वित्त विभाग और लाल बाबु ज़ोरदार बधाई के पात्र हैं।

मुझे इस बात की जानकारी है कि हिमाचल सरकार के लालफीताशाहों ने इस अधिसूचना में सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को मिलने वाली पेंशन, बक़ाया भत्तों और एरिअर के लिए फार्मूला ईजाद किया था। पर पिछले हफ़्ते झुन्नू लाल ने मुझसे सवाल किया था, ‘ख़बरों में पे एरिअर की अदायगी का फार्मूला दिया गया है। पर यह नहीं बताया गया कि उन कर्मचारियों या पैंशनरों के मरने के बाद एरिअर की अदायगी किस तरह होगी जो रंडुत्व को प्राप्त हो चुके हों और जिनके बेटे-बेटियाँ पच्चीस साल से ऊपर हों। पता नहीं कि उनके स्वर्ग सिधारने के बाद उनका बकाया एरिअर मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में जाएगा या सरकार किसी ऐसे बोर्ड या निगम के गठन पर विचार कर रही है, जो उनके एरिअर से ऐसे कर्मचारियों की तेरहवीं, बरसी और चतुर्वार्षिक श्राद्ध की व्यवस्था करेगा।’ चूँकि राज्य सरकार अपनी इस कल्याणकारी अधिसूचना को वापस ले चुकी है, मेरे पास उनके इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। पर मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि वित्त विभाग के सचिव ने अपना फार्मूला तैयार करते वक्त झुन्नू लाल की इस समस्या पर ग़ौर फरमाते हुए इसके लिए सरकार को कोई हल अवश्य सुझाया होगा। यूँ भी प्रशासन की सभी विधाओं में पारंगत लालफीताशाहों (आईएएस) के पास देश की सभी समस्याओं का हल मौजूद होता है। उनके पास आम आदमी को मारने का हुनर भी होता है और उसे जिलाने का भी।

उनके इसी हुनर के चलते जब देश अर्ध मृत अवस्था में झूल रहा है तो आम आदमी की क्या औक़ात? पंचतंत्र के लाल बुझक्कड़ के बाद ये लालफीताशाह ही हैं जो खेतों में हाथियों के फसल रौंदने के बाद जानकारी दे सकते हैं कि सरकार ने देश में पिछले सात दशकों में जितने सघन वन लगाए हैं, उनके चलते खेतों में हाथियों के आने की संभावना नगण्य है। लेकिन खेत में जो बड़े पाँवों के निशान मौजूद हैं, उसके लिए वे शैतान हिरन जि़म्मेवार हैं, जिन्हें सरकार ने पिछले साल अफ्रीका से लाकर जंगलों में छोड़ा था। ये शैतान हिरन ही पाँव में चक्की बाँधकर खेतों में कूदे होंगे। आप चाहें तो इन बाबुओं को प्यार से लाल बुझक्कड़ की तजऱ् पर लाल बाबूशाह भी पुकार सकते हैं। लेकिन मुझे बेसब्री से उस अधिसूचना का इंतज़ार है जिसमें राज्य सरकार रंडुत्व को प्राप्त कर्मचारियों के मरने के बाद उनके पे एरिअर की अदायगी की जानकारी देगी।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक